शेख हसीना से हट कर भी सोचे कभी भारतीय विदेश नीति

सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की पूर्वी कमांड के अधिकारियों ने 23 जुलाई 2024 को कहा कि पिछले चार दिनों के दौरान बांग्लादेश से भारत में 4,315 छात्रों ने प्रवेश किया है, जिनमें से 3,087 भारतीय हैं, 41 बांग्लादेशी हैं, 1,118 नेपाली हैं, 66 भूटानी हैं, दो मालदीव के और एक कनाडा का छात्र है। इसके अतिरिक्त कुछ बांग्लादेशी नागरिकों ने भी पश्चिम बंगाल में शरण ली है। इससे बांग्लादेश की चिंताजनक स्थिति का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, जहां अनिश्चितकालीन कर्फ्यू लगा हुआ है। सेना सड़कों पर उतरी हुई है, देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए हैं। इंटरनेट सेवाएं बंद हैं, लेकिन हिंसक वारदातें रुकने का नाम ले रही हैं। हिंसक घटनाओं में अब तक 146 लोग मारे गये हैं, जबकि अपुष्ट खबरों के अनुसार मृतकों की संख्या 200 से अधिक है व घायलों की संख्या हज़ारों में है।
हालांकि 21 जुलाई 2024 को बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने स्वतंत्रता सेनानियों व उनकी सन्तानों के लिए सरकारी जॉब्स में विवादित आरक्षण को निरस्त कर दिया था जोकि आरक्षण विरोधी प्रदर्शनकारियों की मुख्य मांग थी, लेकिन अभी भी स्थिति सामान्य नहीं हुई है; क्योंकि प्रदर्शनकारी बड़ी संख्या में गिरफ्तार किये गये अपने साथियों की रिहाई की मांग करने के साथ ही आरक्षण नीति पर स्थायी कानून की मांग कर रहे हैं। साथ ही उनकी यह मांग भी है कि हिंसा के लिए प्रधानमंत्री शेख हसीना माफी मांगें। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि वर्तमान आरक्षण हिंसा के लिए शेख हसीना व उनकी अवामी लीग की तानाशाही व दमनकारी नीतियां ज़िम्मेदार हैं। इसलिए अवामी लीग सरकार के विरोध में दुनिया के अलग-अलग देशों में भी प्रदर्शन हुए हैं और विश्व भर के नेताओं ने निंदा व आलोचना की है। नई दिल्ली ने हमेशा ही ढाका में शेख हसीना का समर्थन किया है, लेकिन अब समय आ गया है कि वह शेख हसीना से अलग हटकर भी सोचे। आज बांग्लादेश में जो कुछ देखने को मिल रहा है, वह आरक्षण राजनीति, विपक्ष के लिए जगह का अभाव व निरंतर तानाशाह होती जा रही सरकार का घातक मिश्रण है। 
गौरतलब है कि शेख हसीना ने जनवरी 2024 में जो लगातार अपना चौथा टर्म जीता था, उस चुनाव का सभी मुख्य विपक्षी दलों ने बायकाट किया था। बांग्लादेश में अन्य कारणों से भी स्थिति बद से बदतर हो रही है। एक समय उसकी अर्थव्यवस्था विश्व में सबसे तेज़ी से विकास कर रही थी, लेकिन अब वह स्थिर हो गई है। महंगाई 10 प्रतिशत के आसपास घूम रही है और डॉलर रिज़र्व सिकुड़ते जा रहे हैं। युवाओं में बेरोज़गारी चरम पर है। 170 मिलियन की जनसंख्या में लगभग 32 मिलियन युवा काम या शिक्षा से बाहर हैं। ऐसे में जब 30 प्रतिशत जॉब्स 1971 के स्वतंत्रता सेनानियों के लिए आरक्षित कर दी जायेंगी और उनका विस्तार उनके पोते पोतियों तक कर दिया जायेगा तो युवाओं का गुस्सा फूटना स्वाभाविक है, विशेषकर इसलिए भी कि जब शेख हसीना ही अपने हक के लिए संघर्ष कर रहे छात्रों को रजाकार कहें और उन पर अपनी पार्टी की छात्र ईकाई ‘छात्र लीग’ से हमला कराएं। 
ध्यान रहे कि बांग्लादेश में ‘रजाकार’ मां बहन की गाली से भी अधिक अपमानजनक शब्द है; क्योंकि यह उन लोगों के लिए बोला जाता है, जिन्होंने 1971 के स्वतंत्रता आंदोलन में पाकिस्तान का साथ दिया था। आरक्षण विरोधी आंदोलन जब अपने चरम पर था तो 14 जुलाई, 2024 को शेख हसीना ने कहा था, ‘अगर स्वतंत्रता सेनानियों के पोता पोती को आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा, तो फिर यह लाभ क्या रजाकारों के पोता पोती को जायेगा? यह मेरा सवाल है, देशवासियों का सवाल है।’ इसके जवाब में छात्र यह नारे लगाने लगे- ‘तुम कौन हो? मैं कौन हूं? रजाकार, रजाकार। किसने कहा है यह? तानाशाह ने, तानाशाह ने।’ एक अन्य नारा यह लगाया गया- ‘मांगा था अधिकार, बना दिया रजाकार’। छात्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री ने उन्हें रजाकार कहकर गाली दी है और आरक्षण सुधार की उनकी मांग का अपमान किया है।
बांग्लादेश में आरक्षण का इतिहास 1971 से ही उतार चढ़ाव वाला रहा है। जब भी अवामी लीग सत्ता में रही तो आरक्षण को सख्ती से लागू किया गया, लेकिन जब बीएनपी व उसके सहयोगी दल सत्ता में आये तो आरक्षण को अनदेखा कर दिया गया। एक समय सरकारी नौकरियों में विभिन्न श्रेणियों का आरक्षण 58 प्रतिशत तक पहुंच गया था और धारण यह बन गई थी कि अवामी लीग आरक्षण के दम पर ही सत्ता में रहती है। अवामी लीग ने स्वतंत्रता सेनानियों व उनके वंशजों के लिए आरक्षण 30 प्रतिशत कर दिया था। जब इसका विरोध हुआ तो इसे 2018 में हटा लिया गया था, लेकिन 5 जून, 2024 को हाईकोर्ट ने सरकार में हर स्तर पर 30 प्रतिशत आरक्षण को स्वतंत्रता सेनानियों और उनके बच्चों व पोता पोती के लिए फिर से स्थापित कर दिया। इसके विरोध में शांतिपूर्ण प्रदर्शनों का पहला चरण 6-9 जून 2024 तक चला। प्रदर्शन को ईद के लिए स्थगित कर दिया गया और दूसरा चरण एक जुलाई 2024 से आरंभ हुआ और अब तक चल रहा है। यह भी विश्वविद्यालयों में शांतिपूर्ण ही चल रहा था कि अवामी लीग ने अपनी छात्र लीग, जुबो लीग व बांग्लादेश अन्सार से प्रदर्शनकारी छात्रों पर हमले करा दिये, जिससे आंदोलन कॉलेजों व विश्वविद्यालयों से बाहर निकलकर पूरे देश में फैल गया व हिंसक हो गया। 
2024 में चौथी बार सत्ता में लौटीं शेख हसीना व उनकी अवामी लीग के प्रति जनाक्रोश निरंतर बढ़ता जा रहा है। यह भारत के लिए सुरक्षा की असमंजस पूर्ण स्थिति उत्पन्न करता है। एक बात जो भारत के पक्ष में बिल्कुल नहीं होगी, और वह यह है कि शेख हसीना के बाद बांग्लादेश में ऐसे लोग सत्ता में न आ जायें जिनका रिमोट कंट्रोल इस्लामाबाद (पाकिस्तान) के हाथ में हो। अपने स्ट्रेटेजिक हितों को सुरक्षित रखने के लिए नई दिल्ली को अपना ट्रैक बदलते हुए बांग्लादेशी सियासत के सभी वर्गों में अपनी पैठ बनानी चाहिए यानी कभी शेख हसीना से अलग हट कर भी सोचना चाहिए। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर