एमएसएमई के कंधों पर है विकसित भारत का सपना
केंद्र सरकार एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय) सेक्टर को भारतीय अर्थव्यवस्था का आधार बनाने की बात कर रही है, इसीलिए इस बार के बजट में सरकार ने एमएसएमई सेक्टर के लिए कई प्रोत्साहनों व स्कीमों की घोषणा की है। लेकिन अगर गहराई से देखें तो एमएसएमई की राहें अभी भी आसान नहीं हैं। औद्योगिक प्लॉट, पूंजी, तकनीक, मशीनरी, प्रशिक्षण, कच्चे माल की आपूर्ति, बिजली, परिवहन, मार्किट आर्डर व सबसे ऊपर बड़े देशी विदेशी उद्योग से मिलने वाली प्रतियोगिता ये तमाम बाधाएं किसी भी छोटे कारोबारी के लिए बड़े कारोबारी से ज्यादा कठिन होती हैं। देखने में आता है कि देश के अनेक छोटे उद्यमी कुछ सालों तक व्यवसाय करने के बाद उपरोक्त बाधाओं के आगे घुटने टेक देते हैं। इस बार के बजट में एमएसएमई यानी छोटे, लघु व मध्यम उद्योग को आगामी 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य का आधार मानकर उसे प्रोत्साहन देने के हर संभव उपाय घोषित किये गए हैं।
सरकार के मौजूदा प्रोत्साहनो के पीछे कई कारक हैं। जैसे कि देश की बहुत बड़ी आबादी जिसमें युवाओं की करीब दो तिहाई हिस्सेदारी है, बेरोज़गारी को लेकर स्वरोज़गार पर अधिकाधिक संबल देने की सरकार की नयी नीति, बड़े पैमाने पर बेरोज़गारों को कौशल विकास व इंटर्नशिप प्रदान कर निजी क्षेत्र को रोज़गार देने के लिए प्रोत्साहित करने आदि में इनकी भूमिका बड़ी मानी जा रही है। दूसरा देश की अर्थव्यवस्था में उत्पादन, रोज़गार, आमदनी, निर्यात, संतुलित क्षेत्रीय विकास तथा विकास के विकेन्द्रीकरण इन सभी को ध्यान में रखकर एमएसएमई अब सरकार द्वारा विकास की आगामी ब्यूह रचना का एक बेहद महत्वपूर्ण अवयव माने जा रहे है। यही वजह है कि अभी लघु मध्यम उद्योग को लेकर हो रहे विमर्श में अब कई नये पहलू जुड़ गए हैं। मसलन स्वरोज़गार, स्टार्टअप, कौशल विकास, सहकारी क्षेत्र उद्यमी, खाद्य प्रसंस्करण, रुफ टौप सोलर पैनल, हथकरघा, स्व.सहायता समूह व लखपति दीदी, आदिवासी ग्राम विकास योजना, पीएम विश्वकर्मा, आवास विकास योजना इत्यादि कई शब्दावलियां, स्कीमें व वित्तीय योजना एमएसएमई के विराट इकोसिस्टम में समाहित कर दी गई हैं। इस बार के बजट में ये बात भलीभांति देखने में आयी है कि सरकार लघु मध्यम उद्योगों के लिए कच्चे माल, मशीनरी, फायनेंस, मार्किट, प्रशिक्षण और राजकोषीय प्रोत्साहन इन सभी सुविधाओं का एक बहुस्तरीय प्रोत्साहन पैकेज शुरू करने को लेकर काफी गंभीर है। इसके तहत सरकार द्वारा एमएसएमई का दायरा काफी विस्तृत कर दिया गया है। जैसे कि छोटे उद्योग के तहत निवेश सीमा मौजूदा 1 करोड़ से बढ़ाकर 5 करोड़, लघु उद्योग की निवेश सीमा मौजूदा 10 करोड़ से बढाकर 50 करोड तथा मध्यम उद्योग की निवेश सीमा मौजूदा 50 करोड़ से बढाकर 250 करोड़ कर दी गयी है।
इस क्रम में नयी घोषणा ये है कि सेवा और विनिर्माण उद्योग को उनकी निवेश सीमा के मुताबिक पूरे तौर पर एमएसएमई के मातहत रख दिया गया है जिसकी सारी सुविधाएं व प्रोत्साहन इन्हें प्रदान की जायेंगी। तीसरी महत्वपूर्ण घोषणा ये है कि एमएसएमई सेक्टर को दिये गए सभी सप्लाई आर्डर का भुगतान 15 दिन तथा अधिकतम 45 दिन के अंदर करना होगा अन्यथा आर्डर देने वाले फर्म की टीडीएस कर देनदारी जब्त कर ली जाएगी। चौथी बात ये की गई है कि किसी मैन्यूफैक्चरिंग एमएसएमई को मशीनरी खरीदने के लिए क्रेडिट गारंटी लोन बिना किसी कोले टरल या थर्ड पार्टी की गांरटी के प्राप्त होंगी। इसी क्रम में मोदी सरकार की बहुप्रचारित मुद्रा लोन योजना में दी जाने वाली अधिकतम ऋण सीमा दस लाख से बढ़ाकर बीस लाख कर दी गई है। इस लोन को तीन श्रेणियों मसलन शिशु किशोर वयस्क में बांटा गया है जिससे अलग-अलग लेवल के स्वरोज़गार व्यवसाय को बढ़ावा दिया जा सके। एमएसएमई को लेकर इन सारे उपायों पर एक सरसरी निगाह डाली जाये तो इसमें दिक्कत बस ये दिखती है कि एमएसएमई सेक्टर को लेकर इस समय सरकार के पास एक नहीं अनेक चैनल व एजेंसियां हैं, लेकिन इनमें आपस में तादात्मय स्थापित होना बाकी है। मिशाल के तौर पर एमएसएमई मंत्रालय के अलावा केंद्र सरकार के कौशल विकास मंत्रालय, युवा विकास मंत्रालय, खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय, सहकारिता मंत्रालय, योजना मंत्रालय सभी एक तरह से छोटे उद्योगों के नोडल एजेंसी के बतौर कार्यरत हैं। इनके अलावा श्रम मंत्रालय व वित्त मंत्रालय अपनी-अपनी तरफ से परामर्श, दिशा-निर्देश व प्रोत्साहन प्रदान करते रहते हैं।
राज्य सरकारों की भी अपनी संस्थाएं और स्कीमें अलग हैं। ऐसे में एमएसएमई में पंजीयन से लेकर तमाम सरकारी सहयोग व सुविधाओं का एक विंडो बनाया जाना बेहद महत्वपूर्ण है। यदि हम देश में छोटे, लघु व मध्यम उद्योग की एक पूरी तस्वीर का अवलोकन करें तो देश में पंजीकृत एमएसएमई उद्योगों की कुल संख्या 3.64 करोड़ है जिनसे करीब 16 करोड़ लोगों की आजीविका चल रही है और यह हमारी कुल श्रमशक्ति का करीब 40 प्रतिशत है। इनमे देश के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र के कुल उत्पादन का 38 प्रतिशत तथा निर्यात क्षेत्र का 45 प्रतिशत योगदान है। हमारे सकल घरेलू उत्पाद में इसका कुल योगदान देखें तो यह 30 प्रतिशत है। बताते चलें कि 1990 के दशक में नयी आर्थिक नीति के बाद यह बहस तेजी से छिड़ी कि उदारीकरण व भूमंडलीकरण से देश के बचे छोटे मध्यम उद्योग बड़े उद्योग के साये तले मिट जाएंगे या उनकी प्रतियोगिता में नहीं टिक पाएंगे। लेकिन छोटेए लघु व मघ्यम श्रेणी के उद्योगों ने देश की अर्थव्यवस्था में अपनी पहचान बनाये रखी बल्कि उत्पादन, रोज़गार और निर्यात में भी अपनी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी बनाये रखी। घरेलू औद्योगिक पटल पर जहां बड़े उद्योग के मातहत मध्यम उद्योग भी टिके रहे, मध्यम उद्योग के मातहत लघु उद्योग भी टिके रहे और लघु उद्योग के मातहत छोटे उद्योग भी टिके रहे। सेवा व्यापार क्षेत्र में यदि शॉपिंग मॉल आए तो छोटे किराना दुकानदार भी अस्तित्व में रहे। कहना होगा कि मोदी सरकार की मिनिमम गवर्नमेंट और मैक्सिमम गवर्ननेन्स अभी भी जमीन पर नहीं उतर पाई है। हालांकि पिछले तीन दशक में लघु मध्यम उद्योग पहली बार सरकार की प्राथमिकता में अपनी महत्ता हासिल कर रहे है। उम्मीद है कि इस बार की बजट घोषणा में एमएसएमई सेक्टर को लेकर की गईं नयी कानूनी व नीतिगत पहल भारत की अर्थव्यवस्था में इसे एक नया स्वरूप प्रदान करने में मददगार साबित होगी।
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