राजस्थान के दौसा में बना था लाल किले पर फहराया गया पहला तिरंगा  

15अगस्त को पूरा देश आजादी के जश्न में तिरंगा झंडा फहराकर अपने आपको गौरवान्वित महसूस करता है। लेकिन बहुत कम लोग यह जानते हैं कि आजादी की प्रथम सुबह की वेला में वर्ष 1947 को दिल्ली के लाल किले पर फहराया गया आजादी का प्रतीक हमारा तिरंगा झंडा राजस्थान के दौसा ज़िले में बनाया गया था। यह तिरंगा झंडा दौसा ज़िले के आलूदा गांव के बुनकर चौथमल ने बनाकर गौरव हासिल किया था। ऐसा माना जाता है कि आजादी के प्रथम तिरंगे को लहराने की तैयारी हेतु चरखासंघ के देशपांडे  व जनरल टाड को यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी  सौंपी गई थी। इस दौरान देश के विभिन्न भागों से तीन  झंडे लाए गए थे। एक दौसा के आलूदा गांव से, दूसरा राजस्थान के ही अलवर ज़िले के गोविन्द नगर  से और तीसरा किसी अन्य स्थान से लाया गया था। 
अन्तत: दौसा के आलूदा गांव के बुनकर चौथमल के द्वारा बनाए गए झंडे को लालकिले पर फहराने की सहमति बन गई। वैसे इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है। लेकिन तिरंगे को लेकर दौसा का नाम तभी से इतिहास में जुड़ गया। 
देश में केवल तीन स्थानों पर ही तिरंगे के कपड़े का निर्माण होता है। इनमें महाराष्ट्र में नांदेड़, कर्नाटक में हुबली व राजस्थान में दौसा का नाम प्रमुखता से सामने आता है। दौसा में खादी समिति तिरंगे में प्रयुक्त होने वाले कपड़े का निर्माण करती है। यहां से खादी का कपड़ा मुंबई भेजा जाता है जहां एकमात्र खादी डायर्स एण्ड प्रिंटिंग में इस कपड़े से तिरंगे झंडे का निर्माण होता है। एक रोचक बात यह भी है कि आज़ादी  से ठीक पहले कांग्रेस अधिवेशन में पंडित जवाहर लाल नेहरू द्वारा फहराया गया तिरंगा ध्वज भी राजस्थान के अलवर ज़िले के नीमराना से संबंध रखने वाली अंजु नागर के मेरठ स्थित घर (हस्तिनापुर) में आज भी सुरक्षित रखा हुआ है। नागर के मौसेरे भाई तरुण रावल के अनुसार यह झण्डा सन् 1946 में कांग्रेस के अंतिम आयोजित अधिवेशन में मेरठ में फहराया गया था। यह ऐतिहासिक तिरंगा 14 फुट चौड़ा व 9 फुट लम्बा है, जो कि नागर परिवार के पास सलीके से रखा हुआ है। 

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