अलौकिक रहस्यों से भरी है पाताल भुवनेश्वरी गुफा 

उत्तराखंड की पहाड़ियों के बीच बसी पाताल भुवनेश्वरी गुफा किसी अलौकिक रहस्य से कम नहीं है। इसके भीतर कई रहस्य छिपे हुए हैं। उत्तराखंड की पहाड़ी वादियों के बीच बसे श्रीमांत कस्बे गांगोलीहाट की पाताल भुवनेश्वर गुफा किसी आश्चर्य से कम नहीं है। सृष्टि की रचना से लेकर कलयुग का अंत कब और कैसे होगा इसका पूरा वर्णन भी यहां पर है। यहां पत्थरों से बना एक शिल्प तमाम रहस्यों को खुद में समेटे हुए हैं। मुख्य द्वार से संकरी फिसलन भरी 80 सीढ़ियां उतरने के बाद एक ऐसी दुनिया नुमाया होती है जहां युगों युगों का इतिहास एक साथ प्रकट हो जाता है। ये एकमात्र ऐसा स्थान है जहां पर चारों धामों के दर्शन एक साथ होते हैं। शिव की जटाओं से बहती गंगा की धारा यहां नज़र आती है तो अमृतकुंड के दर्शन भी यहां पर होते हैं। ऐरावत हाथी भी आपको यहां दिखाई देगा और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वर्ग का मार्ग भी यहां से शुरू होता है। पाताल भुवनेश्वर दरअसल एक प्राचीन और रहस्मयी गुफा है जो अपने आप में एक रहस्मयी दुनिया को समेटे हुए हैं। गुफा में पहुंचने पर एक अलग ही अनुभूति होती है। जैसे कि आप किसी काल्पनिक लोक में पहुंच गए हों। गुफा में उतरते ही सबसे पहले गुफा के बाईं तरफ  शेषनाग की एक विशाल आकृति दिखाई देती है जिसके ऊपर विशालकाय अर्द्धगोलाकार चट्टान है जिसके बारे में कहा जाता है कि शेषनाग ने इसी स्थान पर पृथ्वी को अपने फन पर धारण किया है। कहा जाता है कि इस गुफा में पाताल से नीचे की ओर कुल सात तल यानि लोक स्थित है। गुफा के प्रथम तल में सर्वप्रथम शेषनाग के विशाल फन तथा उसके विषकुंड के दर्शन होते हैं। यहां शेषनाग क्षेत्रपाल के रूप में विराजमान हैं। ऐसा माना जाता है कि क्षेत्रपाल की अनुमति बिना भगवान भुवनेश के दर्शन संभव नहीं है। स्कंद पुराण के मानस खंड में एक कथा प्रसंग के अनुसार राजा परीक्षित के पुत्र जन्मेजय ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए इसी स्थान पर एक अद्भुत यज्ञ किया था। महान ऋषियों की तपस्थली इसी पवित्र गुफा में है। इन कन्दरायें मे भृगु ऋषि, दुर्वाशा ऋषि, मार्केण्डेय ऋषि तथा विश्वकर्मा आदि ऋषियों ने यहीं तपस्या की थी। कामधेनु गाय का धन भी यहीं सुन्दर शिला खंड में बना हुआ है जहां से जल की बूंदें एक निश्चित समयान्तराल में झरती रहती हैं। बताया जाता है कि पूर्व काल में यहां दूध की धारा सतत प्रवाहित रहती थी, जो ठीक नीचे ब्रह्मा जी के 5वें सिर पर गिरती थी, अब वर्तमान में जल से ही इस पंचानन का अभिषेक होता है। पौराणिक कथानुसार पांच मुख वाले सृष्टि नियंता ब्रह्मा जी का पहला सिर बद्रीनाथ धाम में है, दूसरा सिर गया में, तीसरा पुष्कर राज में, चौथा सिर जम्मू-कश्मीर प्रांत के रघुनाथ मंदिर में है तथा पांचवां सिर यहां पाताल भुवनेश्वर में है।
पाताल भुवनेश्वर गुफा के अन्दर भगवान गणेश जी का मस्तक है। हिंदू धर्म में भगवान गणेशजी को प्रथम पूज्य माना जाता है। गणेशजी के जन्म के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने क्रोध में गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था, बाद में माता पार्वती के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया, लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया, उसके बारे मे ऐसा माना जाता है कि वह मस्तक भगवान शिव ने पाताल भुवनेश्वर गुफा में रखवा दिया था। पाताल भुवनेश्वरी की गुफा में भगवान गणेश के कटे सिर की शिलारूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल के रूप की एक चट्टान है। इस ब्रह्मकमल से भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य पानी की बूंद टपकती है। मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई देती है। इस रहस्यमयी गुफा के भीतर सम्पूर्ण ब्रह्मांड में स्थित ग्रहों, नक्षत्रों, तारावलियों, विभिन्न लोकों तथा भुवनों के चित्र अंकित हैं। सभी देवी-देवता दैवीय शक्ति प्रतीक रूप में विराजमान हैं। एक स्थान से चार बड़ी-बड़ी गुफाएं विभिन्न दिशाओं को जाती हैं। इनकी लम्बाई चौड़ाई की कोई निश्चित जानकारी तो नहीं है लेकिन बताया जाता है कि एक गुफा मार्ग बद्रीनाथ धाम के लिए जाता है, दूसरा रामेश्वर के लिए और तीसरा मार्ग जागेश्वर धाम को जाता है। 
गुफा के प्रथम तल में उतरते ही थोड़ा आगे चलकर ठीक सामने लगभग तीन मीटर ऊंची चट्टान है। उस पर चढ़ना कोई सहज काम नहीं है। इस पर चढने के बाद एक विशाल गुफा निकलती है। कोई भी गुफा मार्ग में 10-20 कदम से आगे बढ़ने का साहस आज तक नहीं जुटा पाया है।
इस गुफा के भीतर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरुड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नज़र आती है। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

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