मोदी-ट्रम्प मित्रता तथा प्रवासियों के मामले
इस समय भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने मित्र डोनाल्ड ट्रम्प के देश अमरीका के दौरे पर हैं। प्रधानमंत्री को अमरीका के राष्ट्रपति कैसे सबज़बाग दिखाएंगे, इसका ट्रेलर वह 104 भारतीयों को ज़ंजीरों में बांध कर सैन्य विमान से अमृतसर के हवाई अड्डे पर उतार कर पेश कर चके हैं। सुरक्षा, निवेश और व्यापार से जुड़ी ताज़ा बैठक में कौन बाज़ी मारता है, समय बताएगा। ट्रम्प को पहली बैठक में अपने समकक्ष विदेशियों को गले लगाने की कला भी आती है और मेज़ पर बैठ कर पांसा पटलटने का पैंतरा भी। विशेषकर कम देकर अधिक प्राप्त करते समय जिस प्रधानमंत्री से अपने देश के कार्पोरेट अपने ही देश के किसानों को लूटने वाले काले कानून पास करवा सकते हैं, वह ट्रम्प जैसे रौबदार राष्ट्रपति के वश में आने से कैसे बच सकते हैं।
वर्तमान में भारत आर्थिक मंदी के इतना शिकार नहीं जितना युवकों की बेरोज़गारी का। अर्थव्यवस्था को मनमोहन सिंह सरकार बड़ी सीमा तक मार्ग पर ले गई थी, परन्तु युवा बेरोज़गारी एवं भटकन पहले की भांति कायम है। आर्थिक सुधारों में उलझे मनमोहन सिंह का व्यवसायक शिक्षा से आलसी रहना तो समझ आता है, परन्तु मौजूदा प्रधानमंत्री देश के युवाओं के लिए अमरीका से क्या लेकर आते हैं, इसके बारे कुछ नहीं कहा जा सकता है।
6 फरवरी को संसद में बोलते हुए विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, ‘गैर-कानूनी रूप में रह रहे भारतीयों को वापिस भेजने की प्रक्रिया कोई पहली बार नहीं हुई। 2012 से ही अमरीका से निकाले गए लोगों को सैन्य विमान से वापिस भेजा जाता रहा है। भारतीयों के साथ किसी किस्म का दुर्व्यवहार नहीं हुआ। गैर-कानूनी प्रवासियों को हथकड़ियां लगा कर भेजना अमरीका की नीति है जो सब देशों के लिए है।’ यह सही है कि पहले भी गैर-कानूनी प्रवासी भारतीयों को निकाला जा चुका है। 2009 से अब तक लगभग 16 हज़ार (15,700) गैर-कानूनी भारतीय प्रवासियों को निकाला जा चुका है, परन्तु जिस प्रकार इस बार उन्हों अमृतसर के हवाई अड्डे पर लाया गया है, विदेश मंत्री ने इस बारे अधिक बात नहीं की। अमरीकी नीति का हवाला दिया है, परन्तु यह नहीं बताया कि जब अमरीका ने कोलम्बिया के गैर-कानूनी प्रवासियों को सैन्य विमान सी-17 से वापिस भेजने का फैसला सुनाया था तो कोलम्बिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पैट्रो ने अमरीका को स्पष्ट कह दिया था कि वह यह विमान कोलम्बिया में उतरने नहीं देंगे। पैट्रो ने अपने यात्री विमान भेजे और जब वे लोग कोलम्बिया पहुंचे तो राष्ट्रपति अपने लोगों को लेने स्वयं हवाई अड्डे पर पहुंचे और उन्होंने कहा, ‘अब आप आज़ाद हो, अपनी जन्म भूमि पर हो, निराश न हों।’ उन्होंने सरकारी मदद का भरोसा भी दिया ताकि वे सम्मान का जीवन जी सकें, परन्तु जिस समय निकाले गए भारतीय अमरीका के सैन्य विमान से अमृतसर उतरे, प्रधानमंत्री महाकुम्भ के दौरान संगम में डुबकियां लगाने के बाद ‘दैवी’ अनुभव का आनन्द ले रहे थे और उनकी पार्टी की हरियाणा सरकार ने अपने राज्य के 33 लोगों को लाने के लिए कैदियों वाली बस अमृतसर भेजकर अमरीकी नीति पर फूल चढ़ाए।
मेरी आयु के लोग देख चुके हैं कि अखंड हिन्दुस्तान वासियों का कनाडा, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड तथा अन्य यूरोपीय देशों को जाना नई बात नहीं। पहले वे देश दूसरे देशों के युवाओं का स्वागत करके उनसे जम कर मज़दूरी करवाते थे, परन्तु अब जब विकसित देशों में भी महंगाई एवं बेरोज़गारी हावी हो रही है तो उन्हें भी अपनी पीढ़ी के लिए जगह बनाने की याद आ गई है। फिर भी ट्रम्प का अमल भुलाया नहीं जा सकता। भारत के प्रधानमंत्री को चाहिए कि अमरीका के राष्ट्रपति की हां में हां मिलाने की बजाय वापिस आए नागरिकों को 45-45 लाख रुपये का ताना न दें। उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि फटी पुरानी जीनों तथी चीनी जूते पहन कर पांवों में बेड़िया डाल कर अमरीकी सैन्य विमान की ओर जाते भारतीय युवाओं की तस्वीरें ने बाकी देश का तो पता नहीं, परन्तु पूरे पंजाब में शोक एवं दुख की लहर फैला दी है। नि:संदेह, ट्रम्प बिल्कुल यही चाहते थे। वह विश्व को यह संदेश देना चाहते हैं कि अमरीका के द्वार पर आने वाले प्रत्येक अनचाहे शख्स में उसकी कोई दिलचस्पी नहीं, उनके लिए बस प्रतिभाशाली एवं एच-1 वीज़े वाले गौरवशाली लोग काफी हैं।
वैसे भी ट्रम्प ने पिछले कुछ सप्ताह में वैश्विक निजाम के नये नियम बना दिये हैं। पूर्व विदेश सचिव श्याम शरण इसे अमरीका का असभ्य व्यवहार करार देते हैं। नये अमरीका की विदेश नीति में इस प्रकार के सभ्य व्यवहार तथा नफासतां की पहले ही छुट्टी की जा चुकी है, जिस ढंग से ट्रम्प मध्य-पूर्व गाज़ा, फिलिस्तीन तथा जार्डन का काया-कल्प करने लगे हुए हैं, उसका उदाहरण नहीं मिलता। भारत ने इस बारे चुप्पी धारण की हुई है, क्योंकि अंध-यर्थाथवागी नीतियां पिछली कुछ अवधि से यह प्रचार कर रही हैं कि आप तब ही मुंह खोलें जब आपके हित प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हो रहे हों।
मुझ से पूछते हो तो समूची भारतीयों को प्रवास की रुचि त्यागने की ज़रूरत है। अब हमारा देश स्वतंत्र है। युवाओं को चाहिए कि गदरी बाबाओं वाली रुचि पैदा करने के स्थान पर अपनी सरकार से सम्पर्क करें। हमें एजेंटों द्वारा दिखाए जाते सुनहरे सपने भुला कर अपनी सोच बदलनी चाहिए। ‘देश चोरी प्रदेश भिखिया’ वाले मुहावरे को भूलने में ही भलाई है।
नौकरशाही को भी अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करना चाहिए। बाबूशाही एवं राजनीतिज्ञों की मिलीभुगत के कारण जब लोगों को न्याय नहीं मिलता तो उनका असंतोष बढ़ता है। यदि केन्द्र व राज्य सरकारें सिर्फ वोट प्राप्त करने के स्थान पर अपनी नागरिकों के हितों के दृष्टिगत योजनाएं बनाती तो आज हमें ये हालात न देखने पड़ते। सरकारी नौकरियां खत्म की जा रही हैं, आऊट सोर्सिंग के माध्यम से भर्ती की जा रही है, निश्चित वेतन बहुत कम दिया जा रहा है, जिससे गुज़ारा नहीं हो रहा। पंजाब की नौजवानी अपने पैतृक कार्य छोड़ कर व्हाइट कालर नौकरियां तलाश करती है। इसके लिए युवाओं के माता-पिता भी ज़िम्मेदार हैं, जो बच्चों का सही मार्गदर्शन नहीं कर रहे। पंजाब में रोज़गार की कमी नहीं, अन्य राज्यों से लाखों लोग यहां आकर काम कर रहे हैं। हमारी शिक्षा प्रणाली भी रोज़गारोन्मुख नहीं ही, इसमें भी सुधार करने की ज़रूरत है, परन्तु दुख की बात है कि सरकार जो भी नई योजना बनाती है, वह वोटों के दृष्टिगत बनाती है। भारत के विदेश मंत्री जयशंकर ने लोकसभा में कहा कि सरकार एजेंटों की जांच करवाएगी। इसका अर्थ है कि सरकार को अभी पता ही नहीं कि एजेंट कैसे काम करते हैं? पहले भी बहुत-से लोगों के साथ एजेंटों ने धोखाधड़ी की है। उस समय राज्य सरकारों ने यदि एजेंटों को पकड़ कर सज़ाएं दिलाई होती तो अब तक ऐसे कार्य बंद हो जाते। बात सरकारों की प्रशासनिक प्रणाली की आ जाती है। सरकार को एजेंटों के बारे सब कुछ पता होता है, परन्तु यही एजेंट चुनावों के समय फंड देते हैं, फिर उनसे इन्साफ की उम्मीद कैसे की जा सकती है? अभी भी गिरे हुए बेरों का कुछ नहीं बिगड़ा , केन्द्र एवं राज्य सरकारों को मिल कर कोई योजना बनानी चाहिए ताकि गैर-कानूनी प्रवास को रोका जा सके।
अंतिका
(बरकत राम युमन)
छुरी पुट्टी गई सीने ’चों तां कुझ स्वाद नहीं रहिणा,
दियालु कातिलो जिंद नूं अजे कुझ होर तड़पाओ।