ए.आई. को लेकर बंटी दुनिया, कैसे तालमेल बिठायेगा भारत ?
जब मौजूदा दशक में अस्तित्व में आई कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी ए.आई.) से उत्पन्न व्यवहारिक चुनौतियों से निपटने के लिए समकालीन विश्व अमरीका, यूरोप और चीन जैसे तीन मज़बूत खेमों में बंट चुका है, तब भारत जैसे निर्गुट देश की भूमिका भी बढ़ जाती है और कुछ नई संभावनाएं भी पैदा होती हैं। इसलिए सवाल उठता है कि ए.आई. को लेकर लगभग तीन खेमों में बंटी समकालीन दुनिया से आखिर कैसे तालमेल बिठायेगा भारत?
जानकार बताते हैं कि अमरीका और यूरोप के बीच एक भरोसेमंद पुल बन कर भारत अपनी भावी भूमिका निभा सकता है और इसकी वैश्विक ज़रूरत भी महसूस की जा रही है। चूंकि यूरोपीय संघ का अगुवा देश फ्रांस भारत का प्रगाढ़ मित्र है, इसलिए यह संभव भी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस अवसर को समझ चुके हैं और उसी के अनुकूल वर्तमान परिस्थितियों को तैयार भी कर रहे हैं।
जानकार बताते हैं कि साल 2023 में अस्तित्व में आई ए.आई. को लेकर पहला शिखर सम्मेलन उसी वर्ष इंग्लैंड में हुआ था, जबकि दूसरा शिखर सम्मेलन 2024 में दक्षिण अफ्रीका में, तीसरा शिखर सम्मेलन 2025 में फ्रांस में हुआ। चौथा शिखर सम्मेलन 2026 में भारत में होगा, जिसकी मेजबानी के लिए भारत सरकार तैयार है। मित्र देश फ्रांस ने भी इसका समर्थन किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पूरी दुनिया को ए.आई. यानी आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के पूर्वाग्रहों से सावधान रहने की नसीहत भी दी है।
ए.आई. की वैश्विक दौड़ में यूरोप को तीसरा रास्ता अपनाने को भी कहा गया ताकि दुनिया को अमरीका और चीन की कंपनियों की निर्भरता से बचाया जा सके।
उल्लेखनीय है कि पेरिस में हुए दो दिवसीय एआई॒एक्शन समिट ने जहां आने वाले दौर के लिए ए.आई. की अहमियत को रेखांकित किया है, वहीं आगे के रोड मैप को दुरूस्त करने के लिए यह भी साफ कर दिया है कि इस मामले में होड़ के बावजूद सभी देशों का आपसी तालमेल बनाए रखते हुए सावधानी से आगे बढ़ना जरूरी है।
वहीं, इस बैठक से यह भी साफ हो चुका है कि ए.आई. इंडस्ट्रीज की सफलता के लिए सतर्कता बेहद जरूरी है, क्योंकि इसमें अग्रणी देश इसे अपने-अपने साम्राज्यवादी हितों के अनुरूप ढाल सकते हैं। अमरीका और चीन ऐसा कर भी चुके हैं। यूरोप भी इसी दिशा में आगे बढ़ चुका है। इसलिए भारत को भी अपना कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा। भारत ऐसा ही कर रहा है।
जहां तक ए.आई. को लेकर दुनियावी पारदर्शिता और तालमेल का सवाल है तो कहना न होगा कि इस नजरिए से भी यह तीसरी एआई एक्शन समिट सफल हुई है, क्योंकि इसमें 90 देश और बड़ी कंपनियों के प्रतिनिधि शामिल हुए हैं।
वहीं, जहां तक ए.आई. तकनीक के बुनियादी विकास में भारत की भूमिका का सवाल है तो यह तीसरी बैठक भारत की भूमिका को भी खास बनाती है, क्योंकि इसका असाधारण टैलंट पूल, इसके वे इंजिनियर और वैज्ञानिक जो कम लागत पर बड़े-बड़े अंतरिक्ष अभियान को अंजाम देते रहे हैं, निकट भविष्य में बेहद कारगर साबित हो सकते हैं। हालांकि अनुभव बताता है कि अभी तक इस मामले में भारत की पहल बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। इसलिए बेहतर यही होगा कि केंद्र सरकार एक मंत्रालय बनाकर इस तकनीक को लेकर अपनी प्राथमिकता तय करे, क्योंकि ए.आई. इनोवेशन में भारत खुद के पीछे छूटने का जोखिम अब नहीं उठा सकता है।
खास बात यह है कि पैरिस के ए.आई. सम्मेलन के ज़रिए ए.आई. पर अमरीका, यूरोप और चीन की आपसी वर्चस्व की लड़ाई खुलकर सामने आती दिखाई दी है, क्योंकि एक ओर अमरीका के उप-राष्ट्रपति जे.डी. जैस ने जहां सीधे तौर पर यूरोप और चीन को चेतावनी दी है, तो वहीं दूसरी ओर फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने यूरोप और फ्रांस को ए.आई. की एक बड़ी ताकत बताने की कोशिश की। हालांकि, खुशी की बात यह है कि दोनों ने ही भारत के दूरदर्शिता भरे रुख की तारीफ भी की है। इससे इस बात की उम्मीद बलवती हुई है कि यूरोप बनाम अमरीका के बीच भारत एक ब्रिज की तरह काम कर सकता है। इस वैश्विक सम्मेलन में भी भारत कुछ ऐसा ही नज़र आया, जहां दोनों पक्ष एक थे।
उल्लेखनीय है कि अमरीका और ब्रिटेन ने पेरिस ए.आई. सम्मेलन के घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, क्योंकि इसमें ए.आई. को सभी के हित में अंतर्राष्ट्रीय ढांचे में रखने की वकालत की गई है, जो समावेशी, पारदर्शी, किफायती, सुरक्षित और भरोसेमंद हो। हालांकि, अमरीका ने हस्ताक्षर नहीं करने का कारण नहीं बताया है जबकि ब्रिटिश प्रधानमंत्री गीर स्टारमर के प्रवक्ता ने कहा कि वह केवल ईयू की पहल पर हस्ताक्षर करेंगे।
इस वैश्विक सम्मेलन के दौरान फ्रांसीसी राष्ट्रपति मैक्रों ने निशाना साधते हुए कहा कि यूरोप को तेल और गैस के लिए ड्रिल करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि यह पहले से हो न्यूक्लियर एनर्जी पर निर्भर है। उन्होंने आगे कहा कि यूरोप जल्द ही ए.आई. को बढ़ावा देने के लिए एक नई रणनीति जारी करेगा, जिसे यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सला बॉन डर लेपन पेश करेंगी। हमे यूरोप में स्टार्टअप के लिए बड़ा घरेलू बाज़ार बनना होगा। इसलिए हम नियमों में ढील देने के पक्ष में है लेकिन ए.आई. में लोगों का भरोसा बनाए रखने के लिए कुछ नियंत्रण ज़रूरी है। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सला बॉन डेर लयेन में भी कहा कि ईयू ब्यूरोकै्रसी कम करेगा और एआई में निवेश बढ़ाएगा।
अमरीकी उप-राष्ट्रपति जे.डी. वेस ने कहा कि ए.आई. पर ज्यादा सरकारी नियंत्रण इस तकनीक को कमज़ोर कर सकता है। उन्होंने चीन पर सीधा हमला बोलते हुए कहा कि ए.आई. के लिए सरकारों से समझौता करना खतरनाक हो सकता है। उन्होंने चेतावनी दी कि चीन द्वारा सस्ते दामों पर ए.आई. तकनीक देना खतरनाक हो सकता है।
वेस ने यूरोप के कड़े कंटेट मॉडरेशन नियमों को ‘तानाशाही’ करार दिया और कहा कि अमरीका इस क्षेत्र में शीर्ष पर बना रहेगा और यूरोपीय संघ के सख्त नियमों का यह विरोध करता है। उन्होंने यह भी कहा कि अमरीका अपने बड़े ए.आई. डिवेल्पर्स का समर्थन करेगा, लेकिन साथ ही छोटे और बड़े सभी टेक प्लेयर्स को बराबरी का मौका दिया जाएगा। ट्रम्प प्रशासन यह सुनिश्चित करेगा कि अमरीका में विकसित ए.आई. प्रणालियां वैचारिक पूर्याग्रह से मुक्त हो और अमरीका अपने नागरिकों के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को कभी प्रतिबंधित नहीं करेगा।
ग्लोबल टेक लीडर्स ने भी माना है कि ए.आई. क्षेत्र में भारत एक प्रमुख खिलाड़ी के तौर पर उभर सकता है।
शायद इसलिए मैक्रों ने ठीक ही कहा है कि भारत और फ्रांस दोनों महान शक्तियां है और हमारे बीच एक विशेष संबंध है। हम किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहते हैं। (अदिति)