बढ़ता तापमान जीवन के लिए खतरा 

बढ़ता तापमान जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर रहा है। यह न केवल पर्यावरणीय असंतुलन पैदा कर रहा है, बल्कि मानव अस्तित्व के लिए भी गंभीर खतरा बनता जा रहा है। इस चुनौती से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है, जिसमें व्यक्तिगत, सामाजिक, और सरकारी स्तर पर ठोस प्रयास शामिल हैं। यदि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखना बेहद कठिन हो जाएगा। विश्व मौसम संगठन की ताजा रिपोर्ट से स्पष्ट होता है कि पिछले दस वर्षों में धरती के तापमान में असाधारण वृद्धि हुई है, जिससे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन की चुनौतियां गंभीर होती जा रही हैं। ग्लोबल वार्मिंग को लेकर भले ही दुनिया सतर्क होने का दावा करती हो, लेकिन अब तक इसे रोकने के दिशा में उठाए गए कदम नाकाफी ही साबित हुए हैं। यही वजह है कि धरती का तापमान लगातार बढ़ता ही जा रहा है। इससे प्रतिवर्ष लोगों को भीषण गर्मी का दंश झेलने को मज़बूर होना पड़ रहा है। वैज्ञानिकों ने समय-समय पर चेताया है कि समय रहते ठोस कदम नहीं उठाये गए तो वर्ष 2050 तक धरती का तापमान दो डिग्री से भी ज्यादा बढ़ सकता है। ऐसे में कह सकते हैं कि धरती पर आग बरसेगी। लोगों को गर्मी बर्दाश्त नहीं होगी। एसी जैसे उपकरण भी काम करना बंद कर देंगे। लोगों की त्वचा झुलसने लगेगी। उनमें त्वचा कैंसर समेत, डिहाइड्रेशन और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ जाएगा। विश्व मौसम संगठन की ताजा रिपोर्ट में यूं तो कोई ऐसी नई बात नहीं है, जिसके बारे में पहले से अंदाजा न रहा हो, लेकिन यह एक बार फिर याद दिलाती है कि जीव जगत खतरनाक भविष्य की ओर कितनी तेज़ी से बढ़ रहा है।
आम तौर पर माना जाता है कि इस ग्रह के निरंतर अधिकाधिक गर्म होते जाने का अहसास मानवीय चेतना के लिए एक नई बात है। लेकिन यूरोप और अमरीका में वैज्ञानिकों ने 19वीं शताब्दी के शुरुआती सालों में ही यह समझ लिया था कि मानवीय सभ्यता के केंद्र ज्यादा गर्मी पैदा कर रहे हैं। उनके ध्यान में यह बात आ चुकी थी कि आसपास के देहाती इलाकों के मुकाबले शहरों में गर्मी ज्यादा होती है। गर्मी का मारक रूप भी तभी से दिखने लगा था। ऑस्ट्रेलिया में 1897 और लंदन में 1900 का साल गर्मी के लिहाज से खास माना गया था। कोलकत्ता में 1905 में जब तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया तो गर्मी के चलते कई यूरोपियंस की मौत भी दर्ज की गई थी। बाद के वर्षों में हालात लगातार गंभीर ही होते चले गए। 1962 से अब तक हिमालयी ग्लेशियरों का 30 प्रतिशत हिस्सा पिघल चुका है। क्लाइमेट चेंज की वजह से हो रहे आर्थिक नुकसान भी कम गंभीर नहीं हैं। एक्सपर्ट्स के मुताबिक 8 प्रमुख फसलों- मक्का, गेहूं, चावल, सोया, केला, आलू, कोको, कॉफी - की पैदावार पर इसका सीधा असर पड़ सकता है। यही नहीं, अगले 25 वर्षों में वैश्विक कमाई 19 प्रतिशत तक घटने की आशंका है। पॉट्सडैम इंस्टिट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च के मुताबिक भारत में इन्हीं वजहों से कमाई में 25 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार भारत पर ग्लोबल वार्मिंग का असर बहुत अधिक है। वायु प्रदूषण ज्यादा होने से इस देश में मौतें भी विश्व में सबसे अधिक हो रही हैं। सांस, फेफड़े और दिल की जुड़ी बीमारियों में लगातार इजाफा हो रहा है। लोगों में त्वचा कैंसर के मामले भी बढ़ रहे हैं। दूषित जल से होने वाली बीमारियों का ग्राफ भी बढ़ता ही जा रहा है। चिंता की बात यह है कि क्लाइमेट चेंज को लेकर जिस तरह की गंभीरता हमारी सरकारों में दिखनी चाहिए, वह अब भी नहीं दिख रही। अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप तो इन चिंताओं को सीधे तौर पर खारिज करते हैं। भारत सरकार ने ज़रूर इस पर गंभीरता दिखाई है। सबसे सकारात्मक बात यह है कि अभी भी अगर सही ढंग से प्रयास किए जाएं तो हालात सुधरने शुरू हो सकते हैं।
वैज्ञानिकों ने चेताया है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते कहीं-कहीं भयानक बाढ़ से लोगों की जिंदगी तबाह हो जाएगी तो कई देश भीषण सूखे की चपेट में होंगे। इससे आम लोगों का जीना मुहाल हो जाएगा। सैकड़ों करोड़ लोग एक दूसरी जगह विस्थापित होने पर मजबूर होंगे। ऐसे में उनका जीवन खतरे में पड़ जाएगा। संक्रामक बीमारियां लोगों को तेज़ी से अपने चपेट में लेंगी। धरती पर अन्न, जल की भारी कमी पैदा हो जाएगी। वैज्ञानिकों के अनुसार पिछले दो दशक के दौरान धरती का तापमान एक डिग्री पहले ही बढ़ चुका है। इसका खामियाजा भी लोगों को भुगतना पड़ रहा है। प्रतिवर्ष लोगों को भीषण गर्मी और उमस झेलनी पड़ रही है। इसके बावजूद लोग सतर्क और जागरूक नहीं हो पा रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए विश्व के सभी देशों को मिलकर ठोस कदम उठाना होगा। साथ ही दुनिया के सभी नागरिकों को भी इस दिशा में अपने कर्तव्यों का पालन करना होगा। हर किसी को अपनी छोटी-बड़ी जिम्मेदारी निभानी होगी। पौधारोपण का दायरा बढ़ाना होगा। हर व्यक्ति को शपथ लेनी होगी कि वह प्रतिवर्ष कुछ पौधे ज़रूर लगाएंगे और वातावरण को स्वच्छ रखेंगे। 

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