चिंताजनक हैं डिजिटल अरेस्ट की बढ़ती घटनाएं
देश में डिजिटल अरेस्ट और साइबर ठगी की घटनाएं लगातार बढ़ रही है। इसमें लोगों की ज़िंदगी भर की कमाई जा रही है। सुप्रीम कोर्ट ने भी इन घटनाओं पर चिंता जताई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में डिजिटल अरेस्ट पर चिंता जताते हुए देशवासियों को सतर्क रहने के लिए आगाह कर चुके हैं। डिजिटल अरेस्ट साइबर स्कैम का सबसे नवीन रूप है जिससे वर्ष 2024 में 92,000 से अधिक भारतीय प्रभावित हुए हैं। हैरानी की बात है ये कि ये पैसे डिजिटल तरीके से ट्रांसफर कराए जाते हैं बावजूद इसके पुलिस इस तरह की घटनाओं को सुलझाने में कामयाब नहीं पा रही है। बीते 3 नवम्बर को सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट से सख्ती से निपटने की बात कही है। इन मामलों में साइबर क्रिमिनल लोगों को नकली सरकारी अधिकारी, पुलिस के अधिकारी या फिर जांच अधिकारी बनकर खासकर बुजर्गों को डिजिटल अरेस्ट कर लेते हैं और पैसे ऐंठते हैं। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा, ‘यह चौंकाने वाला मामला है कि अकेले हमारे देश में पीड़ितों से लगभग 3,000 करोड़ रुपये वसूले गए हैं। अगर हम इसे अभी नज़रंदाज करते हैं और कड़े और सख्त आदेश पारित नहीं करते हैं तो समस्या और बढ़ जाएगी। हम इससे सख्ती से निपटने का पक्का इरादा रखते हैं।’
विशेषज्ञों के अनुसार डिजिटल अरेस्ट का कारण लोगों में जांच एजेंसियों का भय और उनकी डरावनी छवि है। इसी डर से लोग साइबर ठगों के जाल में फंस जाते हैं। साइबर क्राइम के तीन स्तर हैं। व्यक्तिगत धोखाधड़ी; कंपनी, बैंक व वित्तीय संस्थानों के साथ हैकिंग आदि और देश या दुनिया के स्तर पर साइबर क्राइम। तीनों का अलग-अलग स्तर है। इससे तीन स्तरों पर निपटना होगा। देखा जाए तो डिजिटल अरेस्ट पूरा मामला हैकिंग ऑफ ह्यूमन माइंड का है। ये एक तरह से साइबर क्राइम है ही नहीं। उसमें तो पूरा सिस्टम हैक होता है। मौजूदा साइबर अपराधों में तो लोगों को डराकर व लालच देकर फंसाया जाता है। व्यक्ति चार कारणों से इसमें फंसता है। भय, लालच, वासना और जिज्ञासा। अपराधी इन कमजोरियों का फायदा उठाते हैं।
अपराधी व्यक्ति को सीबीआई, ईडी आदि का भय दिखाते हैं। कहते हैं कि गलत काम में तुम्हारे आधार का उपयोग किया गया है, सीबीआई अधिकारी या ईडी अधिकारी आपसे बात करेंगें। कस्टम में आपके नाम का पार्सल पकड़ा गया है जिसमें नशीले पदार्थ हैं। आम आदमी में इनका इतना डर है कि वे अपराधी के शिकंजे में फंस जाता है। साइबर क्राइम के दो बड़े हथियार हैं- सिम कार्ड और बैंक अकाउंट। दोनों की केवाईसी है, पर हजारों सिम कार्ड फर्जी नामों और पहचानों से बिकते हैं। खाते खोलने में फर्जीवाड़ा हो रहा है। कई लोग लालच में अपने खाते का उपयोग अपराधियों को करने देते हैं। सिम कार्ड और बैंक खातों के फर्जीवाड़े पर जैसा काम होना चाहिए, वैसा नहीं हुआ। अनचाही कालों को रोकने के लिए ’डू नॉट डिस्टर्ब’ यानी डीएनडी को पूरी तरह लागू नहीं किया गया। अगर डीएनडी को ठीक से लागू कर दिया जाए तो आधा साइबर क्राइम तो वैसे ही रुक जाएगा।
दूरसंचार विभाग की टेलीकॉम एनफोर्समेंट, रिसोर्स एंड मॉनिटरिंग सेल है। वह एक फर्जी सिम कार्ड पाए जाने पर टेलीकॉम कंपनी पर 50,000 रुपये जुर्माना लगाती है। उससे पूछा जाए कि उसने कितने मामलों में जुर्माना लगाया है। जब टेलीकॉम कंपनियों से जुर्माना वसूला जाएगा तो इस पर रोक लग सकती है। बैंक खातों में बैंकों की मिलीभगत है। बैंकों के पास हर खाते की जानकारी होती है। भारत सरकार की फाइनेंशियल इन्वेस्टिगेशन यूनिट होती है, उसे देखना चाहिए कि इतना पैसा कहां से आ-जा रहा है।
पिछले कुछ वर्षों में डिजिटल अरेस्ट की शिकायतों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, वर्ष 2021 में 1,35,242, वर्ष 2022 में 5,14,741 और वर्ष 2023 में 11,31,221 शिकायतें दर्ज की गई हैं। वर्ष 2021 से सितंबर, 2024 के बीच साइबर स्कैम से कुल मौद्रिक नुकसान 27,914 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। दिल्ली पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में 2025 में साइबर अपराधियों ने लोगों से करीब 1,000 करोड़ रुपए ठगे। इस साल इन्वेस्टमेंट स्कैम, डिजिटल अरेस्ट और बॉस स्कैम ठगी के सबसे ज्यादा आम तरीके बने। साल 2024 में दिल्ली के लोगों से करीब 1,100 करोड़ रुपए की साइबर ठगी हुई थी। उस समय पुलिस और बैंक ठगे गए पैसों में से करीब 10 प्रतिशत रकम को ही फ्रीज कर पाए थे, लेकिन 2025 में दिल्ली पुलिस ने बैंकों के साथ मिलकर लगभग 20 प्रतिशत ठगे गए पैसे को रोकने में सफलता पाई है। यानी, पिछले साल की तुलना में यह उपलब्धि दोगुनी है। विशेषज्ञों के अनुसार कानून में डिजिटल अरेस्ट जैसी कोई चीज़ नहीं है। यह सिर्फ भयवश स्वयं बांधा गया फंदा है। अगर कोई कहता है कि आप अब डिजिटल अरेस्ट में हैं, तो व्यक्ति को तत्काल फोन काट देना चाहिए। कंप्यूटर बंद कर देना चाहिए और पुलिस से शिकायत करनी चाहिए कि फलां नंबर से डिजिटल अरेस्ट का फोन आया था। 1930 नंबर पर भी रिपोर्ट करें। डिजिटल अरेस्ट में तो व्यक्ति खुद ही खुद को बंधक बना लेता है, उसके दरवाजे तो अरेस्ट करने के लिए तो कोई खड़ा नहीं होता।
ऐसा नहीं है। किचन के चाकू से हाथ कट सकता है, इस कारण उसका इस्तेमाल तो बंद नहीं किया जा सकता। ऐसे ही डिजिटल पेमेंट चालू रहेगा। व्यक्ति को अधिक सावधान रहने की ज़रूरत है। पेमेंट करते समय जांच लेना चाहिए कि किसको पेमेंट किया जा रहा है। इंटरनेट एक जंगल है जहां अच्छे, बुरे, भयानक और खतरनाक जीव व वनस्पतियां मौजूद हैं। आपको इस जंगल से गुजरना है, इसलिए हर समय आंख-कान खुले रखिए। साइबर सिक्योरिटी में धीरे-धीरे जीरो ट्रस्ट का सिद्धांत लागू हो गया है। मतलब हर व्यक्ति को धोखेबाज समझो। साइबर अपराध में अपराधी अदृश्य है। उससे बचने के लिए सावधानी ज़रूरी है। कायदे से जांच एजेंसियों का भय अपराधियों में होना चाहिए, जबकि ये आम जनता में भी है। कमी जांच एजेंसियों की है। इसका कारण है कि कई बार देखा गया है कि किसी पर कोई केस होता है तो वह जेल चला जाता है, उसे जमानत नहीं मिलती। कई वर्ष बाद जब अदालत से बरी होता है तब तक उसका कैरियर, प्रतिष्ठा, पैसा सब बर्बाद हो चुका होता है। जिस पुलिस अधिकारी ने केस बनाया होता है, उसका कुछ नहीं होता। हर स्तर पर जवाबदेही तय होनी चाहिए, ताकि लोगों का सिस्टम में भरोसा बने। लोगों को भरोसा नहीं है कि वे निर्दोष हैं तो सीबीआई या ईडी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। सबसे पहले यह पता लगाने की ज़रूरत है कि साइबर क्राइम की कितनी शिकायतें आती हैं, उनमें से कितने में एफआईआर व गिरफ्तारी होती है, फिर कितने में आरोपपत्र दाखिल होता है और सजा होती है। इसका अभी कोई आंकड़ा नहीं है। इसका अध्ययन करके आंकड़े एकत्र किए जाने चाहिए ताकि पता चले कि ये अपराध कहां तक फैला है और इसे रोकने के लिए क्या करने की ज़रूरत है। पूरे ईको सिस्टम को समझे बिना इसे कंट्रोल करना मुश्किल है। कानून में कोई कमी नहीं है। यह सब धोखाधड़ी है, उसका कानून मौजूद है जिसे लागू करने की ज़रूरत है।

