घरेलू मैदान पर अपने ही बुने जाल में फंस गई टीम इंडिया
कोलकाता में वही हुआ, जो मुंबई में 2024 में हुआ था। मुंबई टेस्ट में भारत न्यूज़ीलैंड के विरुद्ध 147 रन का लक्ष्य हासिल न कर सका था और 25 रन से हार गया था। कोलकाता में दक्षिण अफ्रीका ने इससे भी कम का टारगेट रखा था, मात्र 124 रन का, लेकिन हमारे बैटर्स उसे भी पार न कर सके और टीम को 30 रनों से शर्मनाक हार का कड़वा घूंट पीना पड़ा। रविवार (16 नवम्बर 2025) को भारत की अपने ही घरेलू मैदानों पर सेना देशों (दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूज़ीलैंड व ऑस्ट्रेलिया) के खिलाफ यह लगातार चौथी हार है। एक दौर था जब हम अपने स्पिनिंग ट्रैक पर शेर हुआ करते थे, हर टीम को मुकाबला करने के लिए भी लोहे के चने चबाने पड़ते थे। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। हमारी टीम चार स्थापित स्पिनर्स- रविन्द्र जडेजा, कुलदीप यादव, अक्षर पटेल व वाशिंगटन सुंदर को लेकर मैदान में उतरती है और अनजान ऑ़फ-स्पिनर साइमन हारमर की घुमाव व उछाल लेती गेंदों के सामने नतमस्तक हो जाती है।
लेकिन टीम के कोच गौतम गंभीर कहते हैं कि ‘पिच एकदम वैसी ही थी, जैसा हम चाहते थे और इसमें क्यूरेटर बहुत अधिक मददगार रहा’। सवाल उठता है जब सब कुछ आपकी मज़र्ी के मुताबिक हुआ, तो फिर इस शर्मनाक पराजय का दोषी कौन है? गंभीर ने घुमा फिराकर बैटर्स को ज़िम्मेदार माना है कि उनके पास ऐसे विकेट पर खेलने की तकनीक नहीं थी लेकिन अगर गौर से देखा जाये तो इसके लिए ज़िम्मेदार स्वयं गौतम गंभीर और मुख्य चयनकर्ता अजित अगरकर हैं, जिनकी वजह से भारतीय क्रिकेट में राजनीति अधिक और खेल कम हो रहा है। टेस्ट मैच स्पेशलिस्ट बैटर्स व स्पेशलिस्ट गेंदबाज़ों और एक या दो आल-राउंडर्स की बदौलत जीते जाते हैं लेकिन गंभीर की मानसिकता टी-20 वाली है, जिसमें ऐसे खिलाड़ियों से काम चल जाता है, जो थोड़ा सा बल्ला तेज़ी से चला लेते हैं व हाथ घुमाकर एक-दो ओवर भी निकाल देते हैं, विशेषकर इसलिए कि बतौर कप्तान व कोच उन्होंने कोलकाता नाईट राइडर्स को दो आईपीएल खिताब जिताने में मदद इसी ट्रिक से की थी।
इसी सोच के तहत उन्होंने कोलकाता में दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध टीम में मात्र तीन स्पेशलिस्ट बैटर्स- यशस्वी जायसवाल, केएल राहुल व शुभम गिल (जो चोटिल होने की वजह से मैच में केवल तीन गेंद ही खेल सके) और दो स्पेशलिस्ट गेंदबाज़ (जसप्रीत बुमराह व मुहम्मद सिराज) को लेकर खेले। शेष या तो बोलिंग आल-राउंडर्स थे या विकेटकीपर आल-राउंडर्स। ज़ाहिर है इन आल-राउंडर्स में कोई भी गैरी सोबर्स, कपिल देव या जैक कालिस के स्तर का नहीं है, जो टेस्ट मानकों पर निरंतरता के साथ खरा उतर सके। इसलिए स्पिन लेती पिचों पर हमारा स्तर गिरता जा रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सारा ध्यान आईपीएल पर ही फोकस किया जायेगा तो टेस्ट में स्तर बद से बदतर होता जायेगा। जबकि भारत के पूर्व सलामी बैटर वसीम जाफर का कहना है, ‘ऐसा प्रतीत होता है कि हमने न्यूज़ीलैंड से 0-3 से श्रृंखला हारने के बाद कोई सबक नहीं सीखा है। कोलकाता जैसी पिचों पर हमारे स्पिनर्स और विपक्ष के स्पिनर्स के बीच का फासला कम हो जाता है। क्लासिक भारतीय पिचों की ओर लौटने की ज़रूरत है।’
दरअसल, सोचने की बात यह भी है कि इस समय हमारे पास अंतर्राष्ट्रीय स्तर के तेज़ गेंदबाज़ मौजूद हैं, जो किसी भी प्रकार की पिच पर विकेट लेने में सक्षम हैं, तो फिर स्पिनिंग ट्रैक बनाने का मोह किसलिए है? इंग्लैंड में इंग्लैंड के विरुद्ध हम टेस्ट श्रृंखला मोहम्मद सिराज, प्रसिद्ध कृष्णा व आकाश दीप की वजह से ही 2-2 से बराबर करा सके। हाल ही में वेस्टइंडीज से 2-0 से जीत में बुमराह व सिराज की ही महत्वपूर्ण भूमिका थी। फिर कोलकाता के इस टेस्ट में भी स्पिनिंग ट्रैक के बावजूद दक्षिण अफ्रीका के 20 से 10 बैटर्स को बुमराह व सिराज ने मिलकर आउट किया। पिछली चैंपियंस ट्राफी, जिसमें हमारे मैच यूएई के स्पिनिंग ट्रैक पर खेले गये थे, में हमारे सबसे सफल गेंदबाज़ मोहम्मद शमी रहे थे, जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पांच विकेट भी लिए थे। अगर आपके पास इतने ज़बरदस्त तेज़ गेंदबाज़ मौजूद हैं, तो निम्नस्तरीय स्पिनिंग ट्रैक की बजाय स्पोर्टिंग पिच तैयार करनी चाहिए। इस संदर्भ में भारत के पूर्व तेज़ गेंदबाज़ वेंकटेश प्रसाद का कहना है, ‘यह सही है कि हम वाइट-बॉल क्रिकेट में शानदार हैं। लेकिन इस किस्म की बेकार की प्लानिंग के साथ हम खुद को टॉप टेस्ट साइड नहीं कह सकते। बिना किसी स्पष्टता के टीम का चयन किया जाता है और ओवर-टैक्टिकल सोच भी बैकफायर कर रही है।’
दरअसल, हाल के दिनों में जिस प्रकार का भद्दा व्यवहार मुख्य चयनकर्ता अजित अगरकर ने हमारे स्थापित खिलाड़ियों के साथ किया है, वह निंदनीय है। इससे यह संकेत मिलता है कि राजनीति की वजह से टीम में तनाव है जो प्रदर्शन को भी प्रभावित कर रहा है। ऐसा लगता नहीं कि विराट कोहली व रोहित शर्मा ने टेस्ट से सन्यास अपनी स्वतंत्र मज़र्ी से लिया था। अब जो खबरें छनकर आ रही हैं, उनसे तो यही प्रतीत होता है कि उन पर ऐसा करने के लिए दबाव बनाया गया था कि खुद चले जाओ वर्ना तुम्हें टीम में चुना नहीं जायेगा। जिस तरह से टी-20 विश्व कप व चैंपियंस ट्राफी जिताने वाले रोहित शर्मा को ऑस्ट्रेलिया के दौरे से पहले ओडीआई टीम की कप्तानी से हटाया गया और जो गंदा खेल मोहम्मद शमी के खिलाफ खेला जा रहा है, उससे इसी धारणा को बल मिलता है। शमी ने 2023 विश्व कप में और फिर चैंपियंस ट्राफी में भारत के लिए सबसे ज्यादा विकेट लिए जबकि इन प्रतियोगिताओं में वह ही सर्वाधिक विकेट चटकाने वाले गेंदबाज़ बने लेकिन इसके बावजूद उन्हें इंग्लैंड व ऑस्ट्रेलिया के दौरों पर गई टीम में शामिल नहीं किया गया और अब वेस्टइंडीज व दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ घरेलू श्रृंखलाओं में भी अनदेखा किया गया। शमी ने रणजी ट्राफी में बंगाल के लिए खेलते हुए दो मैचों में 15 विकेट लिए, 60 से अधिक ओवर फेंके और अगरकर कहते हैं कि उन्हें शमी की फिटनेस स्टेटस के बारे में मालूम नहीं है। अजीब मजाक है, क्या लीजेंड्स के साथ ऐसा व्यवहार किया जाता है? उनकी विदाई तो उनकी मज़र्ी के अनुसार सम्मानपूर्वक होनी चाहिए, उन्हें बेइज्ज़त करके अनदेखा करना निंदनीय है, जिसका प्रभाव टीम के प्रदर्शन पर भी पड़ता है।
दरअसल, इस समय समस्या व्यवस्था की भी है। हम टेस्ट क्रिकेट की ज़रूरतों की सेवा केवल लफ्फाज़ी से कर रहे हैं, जबकि आईपीएल को भारतीय क्रिकेट का ड्राइवर व डायरेक्टर बना रहे हैं। यह सही है कि आईपीएल ने वाइट बॉल क्रिकेट में भारत का स्तर बढ़ाने में मदद की है, पैसा भी आया है, लेकिन टेस्ट क्रिकेट हार रही है। दोनों टी-20 व ओडीआई में भारत की रैंकिंग 1 है, लेकिन टेस्ट क्रिकेट में हम चौथे पायदान पर हैं, जबकि डब्लूटीसी के पहले दो फाइनल्स में हम थे। हद तो यह है कि जब कोलकाता टेस्ट चल रहा था तो कमेंटेटर्स लंच के दौरान आईपीएल की टीमों पर ही चर्चा कर रहे थे। आईपीएल के पैसे की चकाचौंध ने सबको अंधा कर दिया है। बीसीसीआई को चाहिए कि आल-विकेट क्रिकेटर्स विकसित करने की योजना बनाये। अगर वह ऐसा नहीं करती है तो कोलकाता की शर्मनाक हार पर अफसोस करना फिज़ूल है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर



