सोने की मोहरें
एक गांव में एक किसान रहता था। उसके दो लड़के थे। एक लड़के का नाम अजय सिंह और दूसरे लड़के का नाम विजय सिंह था। जब किसान बूढ़ा हो गया, तब उसने अपनी जमीन को दोनों लड़कों के बीच बांट दिया। किसान ने उन्हें समझाते हुए कहा-कि वे अपने-अपने खेतों की अच्छी तरह जुताई, गुढ़ाई कर फसल पैदा करते रहें। फसलों की उन्नति के लिए मार्ग दर्शन की आवश्यकता पड़े तो उसके लिए वह तैयार है।
अजय सिंह अपने हिस्से में मिली जमीन को पाकर अपनी जिम्मेदारी अनुभव करने लगा। वह अपने मन में विभिन्न प्रकार की प्रगतिशील योजनाएं बनाने लगा। बरसात आरंभ होते ही उसने खेतों की अच्छी तरह जुताई करवाई। बेकार और सूखे खरपतवारों को इकट्ठा कर जलाकर खेतों की सफाई की। आवश्यक खाद, बीजों को खेतों में डाल दिया। फिर फसल को हानि पहुंचाने वाले कीड़ों को नष्ट करने हेतु उसने दवाओं को छिड़काव किया। वह सुबह-शाम खेतों की देखभाल करने लगा। कुछ दिनों बाद खेतों में बीज उग आये, तो उन्हें देखकर उसे बड़ी प्रसन्नता हुई। जब पौधे धीरे-धीरे बड़े होने लगे तो वह खेत में उग खरपतवारों को साफ कर निराई करने लगा। दो-तीन महीनों बाद उसका खेत फलों से युक्त सुगंध बिखेरने लगा। तरह-तरह के रंग-बिरंगे पक्षी आकर खेत में मधुर स्वर में गूंजने लगे। राह से गुजरने वाले लोग भी खेत देखकर प्रसन्न होने लगे।
उधर विजय सिंह जमीन पाकर प्रसन्न तो हुआ मगर खेती के कार्य में आलस करता था। वह दिन भर आवारा लड़कों के साथ इधर-उधर घूमता रहता। वह खेतों पर कभी-कभी ही जाता। वर्षा होने पर वह न तो यह देखता कि किस खेत में कौन सी फसल बोना है। किसी खेत की जुताई होना है। इस प्रकार खेता बिना जुताई, बिना खाद बीज के साल भर तक पड़े रहे। अब खेत एक तरह से बंजर हो गये। उनमें बड़ी-बड़ी घास खड़ी थी। हानिकारक जानवर व कीड़े पैदा हो गये थे।
जब बहुत दिन हो गये तब किसान लाठी के सहारे खेतों पर गया। उसने पहले अजय सिंह के हर-भरे लहलहाते हुए खेतों को देखा। वह बूढ़ा किसान आनंद विभोर हो गया। पास में खड़े अजय सिंह के परिश्रम की प्रशंसा करते हुए बोला-‘बेटा! तुमसे बहुत खुश हूं कि तुम जीवन में अपनी मेहनत के बल पर कभी भूखे नहीं रहोगे।
इसके बाद किसान विजय सिंह के खेतों पर गया। जब उसने खेतों में उगी बड़ी-बड़ी घास देखी, झन्नाती हुई झिंगुरी, टर्राते हुए मेढ़कों की आवाजें सुनी तो किसान सिर पकड़कर रह गया। धीरे से वह मेंढ़ पर बैठ गया। खेतों की यह हालत देखकर वह मन ही मन सोचने लगा कि विजय सिंह को सही रास्ते पर किस प्रकार लाया जाए, जिससे वह खेती का कार्य सही ढंग से कर सके।
यह सोचते-सोचते उसको एक उपाय समझ में आया कि विजय सिंह को यह बतलाया जाए कि तुम्हारी मां मरने से पूर्व कुछ सोने की मोहरें छोड़ गयी है। वह यह कह गई कि जो लड़का मेहनत से खेती का कार्य करेगा उसे वह मोहरें अपने आप मिल जायेंगी। यह पता नहीं नहीं कि किस जगह पर गढ़ी हैं। यह बात किसान को जम गई। फिर उसने विजय सिंह को पास बुलाकर यह बात बताई। कुछ समय बात बाद किसान का देहांत हो गया।
फिर धन के लालच में विजय सिंह दिन-रात खेतों की सफाई करने में लग गया। बरसात आने पर उसने गहरी जुताई करवाई फिर हल बखर से एवं पाटा लगाकर मिट्टी एकसी करवाई। मिट्टी ऊपर से नीचे पलट जाने से उर्वरक हो गई। जब जमकर बरसात हुई तो उसने धन की फसल बो दी।
कुछ दिन बाद ही खेत हरा-भरा हो गया। अब कोई भी खेत पर आता तो खेत उसका मन मोह लेता। सभी लोग कहते छोटे भईया तुमने तो परिश्रम करके हम लोगों की आंखें खोल दीं हैं। जब उसने अपनी प्रशंसा सुनी तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। फिर उसने निश्चय करते हुए कहा-‘हम माताजी की बात का जीवन भर पालन करेंगे। परिश्रम से कमाये हुए धन को ही अपना धन मानेंगे। दूसरे के द्वारा दिये गए धन को नहीं।’
अब वह खूब मेहनत से काम करता, सुख से रहता, सब लोग उसकी इज्जत करते और उसकी बात मानते। (सुमन सागर)