भारत के अंतरिक्ष सपनों का स्वदेशी कमांडर है विक्रम 3201

भारत की बदलती आर्थिक और सामरिक प्राथमिकताओं को समझने के लिए यह जानना बेहद आवश्यक है कि 21वीं सदी की शक्ति का आधार अब केवल पारंपरिक संसाधन नहीं बल्कि डिजिटल संसाधन हैं। 20वीं सदी तेल की सदी कही जाती थी लेकिन 21वीं सदी पूरी तरह से चिप्स और सेमीकंडक्टर की सदी बन चुकी है। आज जिस तरह तेल के बिना उद्योग और परिवहन की कल्पना नहीं की जा सकती, उसी तरह अब चिप्स और माइक्रोप्रोसेसर के बिना भी जीवन और विकास की कल्पना अधूरी है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब यह कहा कि पिछली सदी तेल की थी लेकिन यह सदी चिप्स की होगी तो यह केवल भविष्यवाणी नहीं बल्कि भारत की बदलती प्राथमिकताओं और रणनीतिक दृष्टिकोण का स्पष्ट संकेत है। लंबे समय तक भारत चिप्स और माइक्रोप्रोसेसर के लिए विदेशों पर निर्भर रहा है। चाहे अंतरिक्ष अभियानों की बात हो, रक्षा उपकरणों की या फिर आम नागरिकों के स्मार्टफोन और कंप्यूटर की, हर जगह विदेशी चिप्स का वर्चस्व रहा है। इस स्थिति ने भारत को न केवल आर्थिक रूप से कमजोर बनाया बल्कि सामरिक दृष्टि से भी असुरक्षित रखा। इसी पृष्ठभूमि में इसरो द्वारा विकसित पहला स्वदेशी 32.बिट स्पेस-ग्रेड माइक्रोप्रोसेसर विक्रम 3201 भारत की आत्मनिर्भरता की दिशा में ऐतिहासिक छलांग है।
सेमीकंडक्टर को आज की दुनिया का ‘डिजिटल डायमंड’ कहा जाता है। स्मार्टफोन, लैपटॉप, कारें, मैडीकल उपकरण, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, सुपरकंप्यूटिंग और 5जी जैसे आधुनिक साधन तभी संभव हैं, जब उनके पीछे मज़बूत और विश्वसनीय चिप्स हों। यह क्षेत्र इतना बड़ा है कि वर्ष 2030 तक वैश्विक सेमीकंडक्टर बाजार का आकार एक ट्रिलियन अमरीकी डॉलर से अधिक होने का अनुमान है। इसमें से अधिकतर उत्पादन एशियाई देशों विशेषकर चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया में केंद्रित है। भारत विशाल उपभोक्ता बाज़ार होने के बावजूद अब तक इस क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया। यही कारण है कि भारत को आत्मनिर्भरता की दिशा में केवल उपभोग और असेंबलिंग से आगे बढ़कर वास्तविक तकनीकी नवाचार और डिजाइन की ओर बढ़ना होगा। 
मेक इन इंडिया पहल ने भारत को निर्माण हब के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य तो रखा लेकिन वास्तविक आत्मनिर्भरता के लिए डिजाइन इन इंडिया अनिवार्य है। प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं ‘सेमीकॉन इंडिया-2025’ सम्मेलन में कहा था कि अब भारत को चिप्स और प्रोसेसर के डिजाइनए आर्किटेक्चर और सॉफ्टवेयर इकोसिस्टम में भी अग्रणी भूमिका निभानी होगी। विक्रम 3201 इसी दिशा में एक निर्णायक और ऐतिहासिक कदम है।
विक्रम 3201 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन और चंडीगढ़ स्थित सेमीकंडक्टर लेबोरेटरी की संयुक्त मेहनत का परिणाम है। इसे विशेष रूप से अंतरिक्ष अभियानों के लिए डिजाइन किया गया है। पीएसएलवी और जीएसएलवी जैसे प्रक्षेपण यानों में यह प्रोसेसर नेविगेशन, कंट्रोल और मिशन मैनेजमेंट का कार्य करेगा। इसे 180 नैनोमीटर सीमॉस तकनीक पर बनाया गया है। उपभोक्ता इलैक्ट्रॉनिक्स की दृष्टि से यह तकनीक भले ही पुरानी लगती हो लेकिन अंतरिक्ष मिशनों के लिए यह सबसे विश्वसनीय है क्योंकि अंतरिक्ष में अत्यधिक विकिरण और असामान्य परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। इससे पहले इसरो 2009 से 16-बिट विक्रम 1601 प्रोसेसर का उपयोग कर रहा था लेकिन अब विक्रम 3201 उसकी जगह एक बड़ा तकनीकी उन्नयन साबित हुआ है।
विक्रम 3201 प्रोसेसर की तकनीकी विशेषताएं इसे बेहद खास बनाती हैं। यह केवल एक साधारण चिप नहीं बल्कि मल्टी-फंक्शनल, एनर्जी-एफिशएंट और रेडिएशन-टॉलरेंट तकनीक का उदाहरण है। इसमें 32-बिट आर्किटेक्चर है, जो जटिल गणनाओं के लिए सक्षम है। 64-बिट फ्लोटिंग प्वाइंट सपोर्ट इसे वैज्ञानिक और अंतरिक्षीय गणनाओं में अत्यधिक सक्षम बनाता है। इसमें 152 इंस्ट्रक्शन और 32 रजिस्टर हैं, जो तेज और समानांतर प्रोसेसिंग की क्षमता प्रदान करते हैं। यह 4096 मिलियन शब्द तक मेमोरी एड्रेसिंग कर सकता है, जिससे बड़े डेटा सेट्स को संभालना आसान होता है। ऊर्जा दक्षता के मामले में भी यह प्रोसेसर अत्यंत उत्कृष्ट है क्योंकि यह केवल 3.3 वोल्ट पर काम करता है और इसकी बिजली खपत 500 मिलीवॉट से भी कम है। स्टैंडबाय करंट भी 10 मिली एम्पीयर से कम है। यह -55 से 125 डिग्री सेंटीग्रेड तक के तापमान में काम कर सकता है और इसमें रेडिएशन व वाइब्रेशन सहन करने की उच्च क्षमता है। 181-पिन सीलबंद पैकेजिंग इसे बाहरी खतरों से सुरक्षा देती है। इसमें 256 सॉफ्टवेयर इंटरप्ट्स, 4 स्वतंत्र टाइमर और इनबिल्ट टेस्टिंग व स्कैन फीचर्स भी शामिल हैं। इन सभी विशेषताओं से यह साफ है कि विक्रम 3201 न केवल तकनीकी रूप से मजबूत है बल्कि अंतरिक्षीय विश्वसनीयता भी प्रदान करता है।
मार्च 2025 में पीएसएलवी-सी60 मिशन में विक्रम 3201 को पहली बार अंतरिक्ष में टेस्ट किया गया था। उस मिशन में इसे मिशन मैनेजमेंट कंप्यूटर के रूप में उपयोग किया गया और इसने पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल को सफलतापूर्वक संचालित किया। यह परीक्षण पूरी तरह सफल रहा और इसने प्रमाणित किया कि यह प्रोसेसर वास्तविक अंतरिक्ष परिस्थितियों में भी बेहतरीन काम करता है। इस सफलता ने भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल कर दिया, जो स्पेस-ग्रेड प्रोसेसर स्वयं विकसित करने में सक्षम हैं। ऐसे समय में जब दुनिया में तकनीकी युद्ध तेज हो चुका है, यह उपलब्धि भारत की रणनीतिक स्थिति को मजबूती प्रदान करती है। अमरीका की इंटेल, एएमडी और एनवीडिया जैसी कंपनियां चिप डिजाइन में अग्रणी हैं जबकि ताइवान की टीएसएमसी और दक्षिण कोरिया की सैमसंग चिंप निर्माण में दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियां हैं। चीन ने पिछले दो दशकों में इस क्षेत्र में भारी निवेश किया है और भारत अब तक केवल बैकएंड हब रहा है लेकिन विक्रम 3201 ने भारत को इस दौड़ में नई पहचान दिलाई है और यह अंतर को पाटने की शुरुआत है। सरकार ने इस दिशा में कई नीतिगत पहल भी की हैं। 2021 में राष्ट्रीय सेमीकंडक्टर मिशन शुरू किया गया, जिसके तहत अब तक लगभग 1.56 लाख करोड़ रुपये का निवेश आया है। 10 बड़े प्रोजेक्ट्स को मंजूरी मिल चुकी है और पांच नई सेमीकंडक्टर यूनिट्स निर्माणाधीन हैं। सरकार डिजाइन-लिंक्ड इंसेंटिव स्कीम भी ला रही है, जिसके तहत चिप डिजाइन कंपनियों को सीधी सहायता दी जाएगी। इससे भारत केवल उपभोक्ता नहीं रहेगा बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनेगा। हालांकि विक्रम 3201 की सफलता गर्व की बात है लेकिन कुछ सवाल भी बने हुए हैं। भारतीय उद्योगपति अनुसंधान और विकास में अपेक्षित निवेश क्यों नहीं कर रहे, यह एक बड़ा प्रश्न है। घरेलू उद्योग अब भी चीनी आयात पर निर्भर क्यों हैं जबकि वही उत्पाद भारत में बनाए जा सकते हैं। एमएसएमई सेक्टर को पर्याप्त प्रोत्साहन क्यों नहीं मिलता जबकि यह सेक्टर सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन की रीढ़ साबित हो सकता है। यदि इन सवालों का समाधान नहीं निकाला गया तो आत्मनिर्भरता का सपना अधूरा रह जाएगा।
विक्रम 3201 के भविष्य में प्रभाव की बात करें तो इसके उपयोग की संभावनाएं बेहद व्यापक हैं। अंतरिक्ष क्षेत्र में इसरो अब विदेशी प्रोसेसर पर निर्भर नहीं रहेगा। रक्षा क्षेत्र में मिलिट्री-ग्रेड स्टैंडर्ड्स के कारण यह अत्यंत उपयोगी होगा। औद्योगिक क्षेत्र में भी ऊर्जा दक्षता और विश्वसनीयता के कारण यह अन्य हाई-एंड अनुप्रयोगों में अपनाया जा सकेगा। इससे विदेशी चिप्स पर खर्च होने वाले करोड़ों डॉलर का आयात घटेगा और किसी भी तकनीकी पाबंदी या आपूर्ति बाधा का खतरा कम होगा। कुल मिलाकर, विक्रम 3201 केवल एक प्रोसेसर नहीं बल्कि भारत की आत्मनिर्भरता, तकनीकी क्षमता और वैश्विक महत्वाकांक्षा का प्रतीक है। आने वाले वर्षों में जब भारत न केवल अपने अंतरिक्ष अभियानों में बल्कि वैश्विक सेमीकंडक्टर सप्लाई चेन में भी निर्णायक भूमिका निभाएगा, तब विक्रम 3201 को इस ऐतिहासिक यात्रा का पहला ठोस कदम माना जाएगा। यह प्रोसेसर भारत के डिजिटल भविष्य की नींव है और आत्मनिर्भर भारत की ऐतिहासिक उड़ान का प्रतीक भी।

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