दुनिया में बढ़ रही है हिंदी की धमक

आज हिंदी दिवस पर विशेष

भले भारत के कई प्रांतों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर हिंदी का विरोध रहा हो, भले भारत के पड़ोसी और 1947 तक भारत का हिस्सा रहे पाकिस्तान के एक भी विश्वविद्यालय में हिंदी भाषा विभाग न हो, भले स्वतंत्र रूप से वहां हिंदी की पढ़ाई संभव न हो, लेकिन हाल के दशकों में हिंदी का कद दुनिया के स्तर पर बहुत तेजी से बढ़ा है और प्रभावशाली भी हुआ है। आज हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। विश्व के 150 से ज्यादा विश्वविद्यालयों में हिंदी बकायदा पढ़ाई जाती है और सबसे ज्यादा अमरीका, रूस, जापान और जर्मनी के विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती है। आज इंटरनेट पर हिंदी कंटेंट के लिहाज से दुनिया की 10 प्रमुख भाषाओं में से एक है। साल 2024 के मुताबिक हिंदी को मातृभाषा के रूप बोलने वाले लोगों की संख्या 60 करोड़ के आसपास है। जबकि दूसरी, तीसरी भाषा या कहें हिंदी को बोल और समझ लेने वाले लोगों की तादाद 90 करोड़ से ऊपर है। सही मायनों में यह मंडारिन के बाद दुनिया की दूसरी सबसे ज्यादा समझी और बोली जाने वाली भाषा बनती है, लेकिन तथ्यात्मक आंकड़ों के चलते यह दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा है। 
अगर हाल के सालों में हम यह देखें कि जिस तरह भारत की वैश्विक उपस्थिति महत्वपूर्ण हुई है, उसी क्रम में दुनिया के नक्शे में हिंदी की धमक भी बढ़ी है। आज हिंदी सिर्फ भारत की सरहदों तक नहीं सीमित बल्कि अपनी सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक वजहों से यह पूरी दुनिया में तेजी से फैल रही है। मंडारिन के बाद अगर हम हिंदी के साथ उर्दू को भी जोड़ लें तो मंडारिन के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा बोलने वाले लोग हिंदी में ही हैं। क्योंकि आज दुनिया में सबसे ज्यादा प्रवासी भारतीय हैं, इसलिए उनकी वजह से आज हिंदी भारत की सीमाओं को लांघकर अमरीका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका, फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, टोबैगो, यूएई और सऊदी अरब जैसे देशों में बोली और समझी जाती है। भारत के अलावा फिज़ी में भी हिंदी को आधिकारिक दर्जा प्राप्त है बल्कि भारत से कहीं आगे बढ़कर यह फिजी की आधिकारिक भाषा है। मॉरीशस, सूरीनाम, त्रिनिदाद, टोबैगो और गुयाना में हिंदी वहां की संसदों में भी बोली, सुनी और पढ़ी जाती है।
भारत के बाहर हर साल हिंदी में कई दर्जन शोध हो रहे हैं। हालांकि हिंदी अभी तक संयुक्त राष्ट्र की आधिकारिक भाषा नहीं है। लेकिन साल 2018 से सरकार ने ‘हिंदी एट द रेट ऑफ यूएन प्रोजेक्ट’ शुरु किया है। आज हिंदी की धमक पूरी दुनिया में है। लेकिन अफसोस की बात यह है कि एक नेपाल को छोड़कर भारत के पड़ोस के देशों में हिंदी का कतई सम्मान नहीं किया जाता। पाकिस्तान जहां करीब करीब सौ प्रतिशत लोग उर्दू के कारण हिंदी समझते और बोलते हैं और मनोरंजन के नाम पर सबसे ज्यादा हिंदी फिल्में देखते हैं, उस पाकिस्तान में हिंदी का खुलमखुल्ला विरोध किया जाता है। पाकिस्तान के किसी भी विश्वविद्यालय में हिंदी एक विषय के रूप में और अकादमिक डिग्री के रूप में नहीं पढ़ाई जाती। जबकि भारत में अरबी और फारसी भले लोगों के बीच बहुत कम बोली या पढ़ी जाती हो, इसके बावजूद हमारे यहां ये दोनों भाषाएं पढ़ाई जाती हैं और उर्दू तो लगभग हिंदी के जैसे ही है, जिसके सैकड़ों विश्वविद्यालयों में पूरे के पूरे विभाग हैं। हर साल उर्दू में न केवल भारत में लाखों लोग डिग्री स्तर की पढ़ाई करते हैं बल्कि हजारों प्रतिशत उर्दू में थीसिस लिखी जाती हैं। लेकिन पाकिस्तान में हिंदी का सियासत के स्तर पर ही नहीं बल्कि धार्मिक स्तर पर भी विरोध किया जाता है। 
इसी कारण वहां किसी भी विश्वविद्यालय में हिंदी में डिग्री नहीं दी जाती। जबकि फारसी और अरबी में दर्जनों विश्वविद्यालयों में बकायदा विभाग हैं और हजारों छात्र इन भाषाओं में एकडेमिक पढ़ाई करते हैं। खैर, जहां तक हिंदी की हाल के दशकों में बड़ी वैश्विक धमक का कारण है तो निश्चित रूप से इसके पीछे भारत में मजबूत सांस्कृतिक ताकत तो है ही, हिंदी फिल्में, हिंदी गाने और पिछले एक दशक से धमाल मचा रहीं हिंदी की वेबसीरीज न केवल दुनिया में हिंदी का ध्वज फहरा रही हैं बल्कि दुनिया की महत्वपूर्ण भाषाओं में हिंदी को शामिल करा दिया है। बावजूद इसके कि हमारे यहां ऐसा रोना रोने वाले लोगों की कमी नहीं है जो बात बात पर यह कहने से नहीं चूकते कि हिंदी रोज़गार की भाषा नहीं है लेकिन इन लोगाें से पूछा जाना चाहिए कि भारत का लगभग 20 लाख करोड़ का मनोरंजन उद्योग का कारोबार बिना हिंदी के एक कदम भी आगे बढ़ सकता है, बॉलीवुड ने जिन करीब 80 लाख लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर रोज़गार दे रखा है, क्या हिंदी को जाने, समझे बिना यह संभव है? हिंदी भारत के मनोरंजन उद्योग की महारानी है। 60 प्रतिशत से ज्यादा ऑडियो और वीडियो विज्ञापन हिंदी में होते हैं। देश में राजनीति करने के लिए हिंदी में दक्ष होना या संपर्क भाषा में रूप में हिंदी आना ज़रूरी है। 
हिंदी भले संयुक्त राष्ट्र की अभी आधिकारिक भाषा नहीं है, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट में हिंदी की सामग्री उपलब्ध है। भारत के बाद सबसे ज्यादा हिंदी अमरीका, ब्रिटेन और कनाडा के कारपोरेट जगत और डिप्लोमेटिक एरिना में बोली और इस्तेमाल की जाती है। हाल के सालों में सोशल मीडिया के जरिये हिंदी ने डिजिटल भाषा के रूप में सबसे तेज छलांग लगायी है। आज दुनिया की सबसे ताकतवर और तेजी से बढ़ रही डिजिटल भाषा में हिंदी सबसे आगे है। इस तरह देखें तो भले भारत में हिंदी को लेकर कई तरह के निराशाभरे वक्तव्य दिये जा रहे हों, मगर हकीकत ये है कि भाषाओं के वैश्विक नक्शे पर हिंदी बहुत मजबूती से न केवल मौजूद है बल्कि इसकी मौजूदगी में कई दूसरी भाषाओं के रंग फीके पड़ रहे हैं। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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