खण्डहरों में सिमटी रणबाकुंरों की धरती शेखावाटी
रणबाकुंराें की धरती शेखावाटी में पग-पग पर एक से बढ़कर एक विशेषताएं देखने को मिलती हैं। यहां के लोग काफी बहादुर थे, इस कारण इस क्षेत्र को मुगल बादशाहों की विस्तारवादी प्रवृत्ति का शिकार होना पड़ा था। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है हर्ष पहाड़ का प्रसिद्ध व विखण्डित शिव मन्दिर। शेखावाटी के मध्य से गुजरने वाली अरावली पर्वत श्रृंखला पर सीकर ज़िला मुख्यालय से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हर्ष पर्वत एक सुरम्य रमणीक स्थान है। पहाड़ की तलहटी से हर्ष शिखर पर पहुंचने के लिए दस किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती हैं। पूरे मार्ग में पक्की सड़क बनी हुई हैं जो प्रसिद्ध समाजसेवी बद्रीनारायण सोडाणी ने वर्षों पूर्व अमेरिकन संस्था ‘कांसा’ के सहयोग से बनवाई थी।
चहमान शासकों के कुल देवता शिव हर्षनाथ का यह मन्दिर हर्ष गिरि पर्वत पर स्थित है तथा महामेरू शैली में निर्मित है। सन् 973 में चाहमान शासक विग्रह राज प्रथम के शासन काल में एक शैव संत भावरभक्त उर्फ अल्लदा द्वारा इस भव्य शिव मन्दिर का निर्माण करवाया गया था। मुगल बादशाह औरंगजेब ने अपनी संकीर्ण मानसिकता का शिकार बनाकर इस भव्य मन्दिर को खण्डित करवा दिया था। इस मन्दिर का स्थापत्य व उसका मूर्तिशिल्प कितने वैभवशाली रहे हाेंगे इसका आभास तो इस स्मारक को देखकर ही लगाया जा सकता हैं। यहां की कलात्मकता इतनी निराली एवं अद्वितीय थी जिसकी तुलना में आस-पास ऐसा कोई स्मारक नहीं हैं।
इस मन्दिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं, सुन्दरियों, अप्सराओं की अनेकों सुन्दर मूर्तियां विद्यमान हैं। कुछ मूर्तियों को मन्दिर की दीवारों में चिनवा दिया गया है। यहां की करीबन 300 दुर्लभ मूर्तियां केन्द्रीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में हैं। मध्यकालीन स्थापत्य एवं मूर्तिकला की ये उत्कृष्ट कलाकृतियां है जिन्हें देखने पर जी नहीं भरता। इस मन्दिर में कई शिलालेख अंकित हैं जिनसे यह सिद्ध होता है कि यह मन्दिर अत्यन्त प्राचीन है तथा कालान्तर में इसका जीर्णोद्धार होता रहा है। यहां के गर्भ गृह के किवाड़ भी जालियों युक्त पत्थर के बने हुये है। इस विशाल शिव मन्दिर के चारों ओर पहले विभिन्न देवताओं के चौरासी छोटे-छोटे मन्दिर और बने हुए थे जिन्हें भी हर्ष के शिव मन्दिर के साथ ही खण्डित कर दिया गया।
हर्ष के मूल शिव मन्दिर के विखण्डन के बाद इसे पुन: एकत्रित कर वैसे ही जमा कर दिया गया है। यहां की मूर्तियां देखकर कोणार्क के सूर्य मन्दिर की याद आना स्वाभाविक है। यहां के मूल मन्दिर के भीतरी भाग के अगले कक्ष में शिवलिंग के साथ विभिन्न भाव-भंगिमाओं में 28 प्रतिमायें स्थापित है जिनमें से अधिकांश अप्सराओं की प्रतिमाएं हैं। कहा जाता है कि त्रिपुर नामक राक्षस का विनाश करने के लिए भगवान शिव ने यहीं अवतार लिया था तथा वे हर्षनाथ कहलाए थे। प्राचीन मन्दिर के सामने ही सफेद पत्थर से बनी नन्दी की एक विशाल खण्डित प्रतिमा स्थापित है।
शिव मन्दिर के पास ही पिछवाड़े बने मन्दिर में भैरों व दुर्गा की मूर्तियां स्थित है। दुर्गा की प्रतिमा विकराल रुप में है जिसकी 18 भुजायें हैं। पास ही महिसासुर वध की खण्डित प्रतिमा है जिस पर दुर्गा के पांव रखे हुए हैं। दुर्गा के पास ही भैरों के मन्दिर में हजारों वर्षों से अखंड ज्योति जल रही है। भैराें की मूर्ति के सामने कार्य सिद्धि के लिये श्रद्धालुओं द्वारा डोरे व लच्छियां टांग कर मनौतियां मांगी जाती हैं। मान्यता है कि भैंरो के सामने की गई कामना अवश्य ही पूरी होती है। इस मन्दिर के भीतरी भाग में अनेकों ऐसे कलात्मक स्तम्भ हैं जिन पर उत्कीर्ण किये गये गोलाकार चित्र, कारीगरी की अनूठी मिसाल हैं।
हर्ष के बारे में एक जनश्रति है कि चुरू ज़िले के घांघु गांव के हर्ष की पत्नी से नाराज़ होकर उसकी बहन जीण घर त्यागकर हर्ष पहाड़ी पर तपस्या करने लगी। बहिन को मनाकर घर ले जाने के लिये हर्ष अपनी बहिन जीण के पास आया मगर जीण घर जाने को राजी नहीं हुई तो हर्ष भी वहीं भगवान शिव की आराधना करने लगा तथा दोनाें भाई-बहन सिद्ध बन गये एवं हर्षनाथ भैंरो व देवी जीण के नाम से लोक देवता के रूप में पूजे जाने लगे।
हर्ष स्थित शिव के मूल मन्दिर के ध्वस्त हो जाने के बाद सीकर नगर की बसावट के समय सन् 1730 में राव राजा शिव सिंह ने यहां शिखर युक्त भव्य मन्दिर बनवाया जिसके गर्भ गृह में सफेद संगमरमर का देश का सबसे बड़ा शिवलिंग बनवाया। इस मन्दिर का सभा मण्डप भी काफी बड़ा है। इसका जीर्णोद्धार बिड़ला परिवार द्वारा करवाया जा चुका है।
राजस्थान में अरावली पर्वत शृंखला में प्रसिद्ध पर्यटक स्थल माउंट आबू व लोहार्गल के बाद ऊंचाई में यह स्थान तीसरे नम्बर पर है। यहां के पहाड़ की चोटी की ऊंचाई 3110 फीट है तथा यह शेखावाटी का एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। यदि यहां सुव्यवस्थित तरीके से विकास किया जाए व मूलभूत सुविधायें उपलब्ध करवायी जायें तो यह स्थान माउंट आबू की तरह पर्यटक स्थल बन सकता है। स्वर्गीय सोढाणी जी ज़रुर यहां विकास करवाना चाहते थे मगर उनकी मृत्यु के बाद यहां का विकास रुक गया। यहां की सड़क की स्थिति अत्यन्त खराब है। सड़क जगह-जगह से टूटी हुई है इस कारण यहां आने वाले पर्यटकों व श्रद्धालुओं को काफी परेशानी उठानी पड़ती है। यहां माइक्रोवेव व वायरलैस टॅवर बने हुए हैं। 2004 में यहां इनरकोन प्रा.लिमिटेड नामक कम्पनी ने पवन ऊर्जा संयत्र स्थापित किया था तथा यहां पवन ऊर्जा के 12 पंखों से प्रतिदिन 12 मेगावाट विद्युत का उत्पादन हो रहा है। पहाड़ पर पानी का सर्वथा अभाव है। वर्तमान में यहां पीने का पानी नीचे से आता है।
पर्यटन की दृष्टि से अत्यन्त समृद्ध स्थल होने के बावजूद भी सरकारी स्तर पर यहां के विकास के लिये आज तक कुछ नहीं किया गया। यदि राज्य का पर्यटक विभाग इस स्थल के महत्त्व को पहचानकर यहां समुचित विकास करवाये व यहां रोप वे स्थापित करवाये तो यह स्थान पर्यटकों का स्वर्ग बन सकता है। (उर्वशी)