भारत और चाबहार बंदरगाह

भारत ज़रूरतों और कमियों वाला देश है। इसका एक बड़ा कारण इसकी लगातार बढ़ रही जनसंख्या है। अब तक इसकी जनसंख्या एक अरब 40 करोड़ से ऊपर पहुंच गई है। इसके साथ ही प्राकृतिक स्रोतों की कमी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। केन्द्र सरकार ने 80 करोड़ से भी अधिक लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध करवाने की योजना शुरू की हुई है। इसके अतिरिक्त केन्द्र द्वारा भी और प्रदेश सरकारों द्वारा भी अपने-अपने राजनीतिक लाभ लेने के लिए समय-समय पर मुफ्त की योजनाओं की घोषणा की जाती है। ऐसी घोषणाएं प्रदेश और केन्द्र के चुनावों के समय और भी बढ़ जाती हैं। प्राकृतिक आपदाएं देश के लिए बड़ी चुनौतियां बन जाती हैं। कोरोना महामारी ने देश की सांस रोक कर रख दी थी। आज की दुनिया में देशों का अकेले रूप विचरण कर पाना बेहद कठिन है। अपनी-अपनी ज़रूरतों के अनुसार उन्हें अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ता है।
परन्तु आज विश्व के सभी क्षेत्रों में ज्यादातर देश एक दूसरे के साथ आपसी विवाद और युद्धों में उलझे दिखाई देते हैं। चाहे संयुक्त राष्ट्र सहित आज अनेक ही अन्तर्राष्ट्रीय गठबंधन बने हुए हैं। उनके प्रभाव से इंकार तो नहीं किया जा सकता परन्तु ज्यादातर ये देशों के आपसी झगड़ों को सुलझाने में असमर्थ रहते हैं। दूसरी ओर विश्व के ज्यादातर देश आपस में मिल कर सांझी मंडी के रूप में विचरण करने लगे हैं, जिस कारण देशों की एक दूसरे पर निर्भरता और भी बढ़ गई है। इसी सन्दर्भ में चाबहार परियोजना को देखा जा सकता है। देश के विभाजन के समय से ही भारत और पाकिस्तान आपसी विवादों और लड़ाइयों में उलझे रहे हैं। विभाजन से पहले अ़फगानिस्तान भारत का पड़ोसी देश होता था और इसकी लगभग 2600 किलोमीटर सीमा भारत के साथ लगती थी। ब्रिटिश शासन के दौरान उस समय के अ़फगान अमीरों से सीमा संबंधी जो समझौता हुआ था, उसे ड्रुंड लाइन कहा जाता है। अंग्रेज़ उस समय बड़ी ताकत थे। अ़फगान अमीरों के न चाहते हुए भी उन पर ड्रुंड लाइन थोप दी गई थी, परन्तु अ़फगानिस्तान के तत्कालीन प्रशासन कभी भी इससे सहमत नहीं थे। आज भी यह मामला पाकिस्तान और अ़फगानिस्तान की दुखती नस बना हुआ है।
अ़फगानिस्तान दशकों से बाहरी हमलों और गृह युद्ध में घिरा रहा है। आर्थिक रूप से वह खोखला हो चुका है। अमरीका के ज़रिए पाकिस्तान ने समय-समय पर अ़फगानिस्तान की सहायता भी की है। अभी भी वर्ष 2023 में वहां तालिबान की सरकार लाने में पाकिस्तान बड़ा सहायक बना था, परन्तु सीमांत विवाद और पाकिस्तानी तालिबानों को अ़फगानिस्तान द्वारा शरण और सहायता दिए जाने के मामले में दोनों देशों के बीच विगत कुछ दिनों से खूनी टकराव के बाद अब किसी आपसी बड़े युद्ध की सम्भावनाएं बनी दिखाई देती हैं। ऐसी स्थिति में अ़फगानिस्तान भारत के साथ ज़मीनी रास्ते से तब तक व्यापार नहीं कर सकता, जब तक पाकिस्तान के साथ इन दोनों देशों के संबंध नहीं सुधरते। इस मामले को लेकर ही भारत ने समुद्री मार्ग अपनाकर ईरान द्वारा अ़फगानिस्तान के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को बनाए रखने की परियोजना को सफल बनाया है। ईरान में चाबहार बंदरगाह अन्तर्राष्ट्रीय रूप से उत्तर दक्षिण में एक अच्छा मार्ग प्रदान करती है। इसके द्वारा भारत अ़फगान के साथ अपनी व्यापारिक निरन्तरता बनाने में समर्थ हुआ है। अ़फगानिस्तान के अतिरिक्त ईरान स्थित इस बंदरगाह द्वारा भारत ईरान, अर्मीनिया, अज़रबाइजान, रूस और मध्य एशिया के अन्य देशों तक भी अपना व्यापारिक सम्पर्क बढ़ाने मेंसमर्थ हुआ है।
भारत विगत लम्बी अवधि से इस बंदरगाह को अधिक कारगर बनाने के लिए इसके शाहिद बहिशती टर्मीनल के व्यापक स्तर पर निर्माण में योगदान डाल रहा है, परन्तु अमरीका में डोनाल्ड ट्रम्प की सरकार आने के बाद ईरान के साथ उसके चल रहे बेहद खराब संबंधों के कारण अमरीका ने चाबहार बंदरगाह द्वारा व्यापार करने पर प्रतिबन्ध लगाने की घोषणा की थी, जिसका बड़ा प्रभाव भारत पर पड़ना था, परन्तु अब अमरीका ने इस बंदरगाह संबंधी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर छूट देने की घोषणा की है, जो भारत के लिए बड़ा समाचार है, क्योंकि भारत इससे चाबहार बंदरगाह के उक्त टर्मीनल के संचालन से इस्तेमाल जारी रख सकता है। अमरीका ने ऐसी घोषणा भारत के दबाव के कारण ही की गई प्रतीत होती है, जो भारत की अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिक की बड़ी जीत कही जा सकती है। इससे यह बात सिद्ध ज़रूर होती है कि भारत आज दरपेश अन्तर्राष्ट्रीय मामलों का पूरी सूझबूझ और परिपक्वता से समाधान कर रहा है, जिसे देश की अन्तर्राष्ट्रीय नीति की एक अच्छी उपलब्धि माना जा सकता है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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