बच्चा जब स्कूल जाने से कतराए
इसमें कोई दो राय नहीं है कि आजकल के छोटे बच्चे भी बहुत स्मार्ट हैं और ऐसे ऐसे बिल्कुल सच लगने वाले बहाने बनाते हैं कि आप दंग रह जाएं। लेकिन जब कोई बच्चा बार-बार स्कूल न जाने पर अड़ा हो और इसके लिए एक ही तर्क बार-बार दे रहा हो, तो इसे उसका सिर्फ बहाना न समझें, इसे गंभीरता से लें। स्कूल न जाने की उसकी वजह वाजिब और गंभीर हो सकती है, कैसे? आइये इन तथ्यों से जानें।
बच्चे भी हैं तनावग्रस्त : सुनने में अटपटा लगता है, लेकिन सच्चाई यही है कि आज की लाइफस्टाइल सिर्फ वयस्कों को ही तनावग्रस्त नहीं कर रही, छोटे बच्चे भी इस तेज़ रफ्तार जिंदगी से तनावग्रस्त हैं। एक पांच साल का बच्चा जब लगातार अपने पैरेंट्स से स्कूल न जाने की जिद कर रहा था, तो उसके पैरेंट्स उसे डॉक्टर के पास ले गए और पता चला कि इतनी कम उम्र का वह बच्चा, बेहद तनावग्रस्त था। आजकल छोटे बच्चे मानसिक तनाव के चलते न सिर्फ बेचैन रहते हैं बल्कि बीमार भी पड़ रहे हैं। उनके तनाव की कई वजहें हो सकती हैं, पर सबसे अहम वजह है उन्हें लेकर माता-पिता की अति महत्वाकांक्षा। आजकल माता-पिता अपने बच्चे को तभी कामयाब समझते हैं, जब वह 90 नंबरों से पास होते हैं। अच्छे नंबर लाने के लिए बच्चे लगातार तनाव में रहते हैं। अगर बच्चा नंबर नहीं ला पाता तो मां-बाप की डांट फटकार से वह हीनभावना का शिकार हो जाता है और उसका खेलने-कूदने में कतई मन नहीं लगता। अत: अच्छे नंबरों का बच्चों पर दबाव डालने से पहले मां-बाप कई बार सोचें।
एडमिशन फोबिया : आजकल जिस तरह अच्छे स्कूलों में एडमिशन मिलना मुश्किल हो गया है, उसके चलते छोटे बच्चों के मां-बाप तो तनाव में रहते ही हैं, खुद छोटे बच्चे भी अच्छे स्कूल में एडमिशन को लेकर तनावग्रस्त रहते हैं। यह अलग बात है कि उनके छोटे होने के कारण मां-बाप को एहसास ही नहीं होता कि उनकी तरह उनका छोटा बच्चा भी एडमिशन फोबिया से डरा हुआ है। दरअसल छोटे बच्चे को भी अस्वीकृत होने का बोध गहरे तनाव में डाल देता है। छोटे बच्चे इस वजह से इस प्रक्रिया में तनाव का शिकार हो जाते हैं, क्योंकि मां-बाप एडमिशन के काफी पहले से ही कहने लगते हैं, अच्छे से तैयारी करो वर्ना एडमिशन नहीं होगा। एक बात यह भी है कि एडमिशन के पहले दिन रात घर में एडमिशन की कठिनाईयों की जो चर्चा होती है, वह भी छोटे बच्चों को भयग्रस्त और तनावग्रस्त बनाती है।
चिंतित करती है हकीकत : कुछ साल पहले किये गये एक शोध में मुंबई के एक अस्पताल में साढ़े चार सौ बच्चे तनाव के कारण बीमार पाए गए थे। इसके लिए माता-पिता और स्कूल-कॉलेजों में उनके एडमिशन की डरावनी प्रक्रिया जिम्मेदार थी। साथ ही कक्षा में बच्चों की ज़रूरत से ज्यादा संख्या होना भी, उन्हें तनावग्रस्त बनाती थी। टीचर सभी बच्चों की ओर ध्यान नहीं दे पाती है, न ही ठीक से पढ़ा पाती हैं। यह स्थिति भी बच्चों को तनावग्रस्त करती है, क्योंकि उसे समझ में नहीं आता कि इस समस्या का निदान कैसे हो? कई बार बच्चे को स्कूल में छेड़ा जाता है या मारपीट हो जाती है, तो वह किसे बताए यह भी समस्या रहती है?
इसलिए स्कूल जाने से कतराने पर बच्चे को डांटने से पहले यह जानें-
* कि आखिर बच्चा स्कूल जाने से कतरा क्यों रहा है? अगर पूरी तरह से बात समझ में न आए तो एक बार उसके स्कूल की विजिट करके जानें की वजह क्या है?
* क्या बच्चे की कहीं सचमुच तबीयत तो नहीं खराब। यह सोचकर उसे डॉक्टर को दिखाएं और स्कूल जाकर वहां उसकी गतिविधियों को जानें।
* क्या कहीं आप उसे इग्नोर तो नहीं कर रहे। कामकाजी माता-पिता बच्चों को पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं। तब भी कई बार बच्चे बीमारी का बहाना बनाकर, उनका ध्यान अपनी ओर खींचते हैं, लेकिन इसे उनकी चालाकी न समझें बल्कि आपका साथ पाने की चाहत समझें।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर



