बेटियों को न रोकें खेलकूद करने से
आज भी हमारे देश में ज्यादातर मांएं अपनी किशोरी या युवा बेटी का खुलकर खेलकूद या व्यायाम करना गलत समझती हैं।
‘ससुराल जाने पर यह खेलकूद काम नहीं आयेगा। इस तरह सरेआम उछलकूद करके खानदान की नाक कटवाने की कोई ज़रूरत नहीं है’ जैसे वाक्यबाणों से त्रस्त होकर ज्यादातर लड़कियां आउटडोर गेम्स में भाग लेना छोड़ देती हैं। पारिवारिक पाबंदियों के अलावा महिला प्रशिक्षकों की कमी व सुरक्षित वातावरण का अभाव भी लड़कियों का सार्वजनिक रूप से व्यायाम, सैर, खेलकूद में भाग लेना, संकीर्ण मनोवृत्ति के स्त्रीपुरूषों की तानाकशी का माध्यम बन जाता है।
लड़कियों को घूमते या खेलकूद करते देख आवारा शोहदे लड़के फब्तियां कसने से बाज नहीं आते।
इन सब कारणों की वजह से आम तौर पर लड़कियां मन मारकर घर में बैठकर टी.वी. देखने, गप्पें मारने, गॉसिप मैगजीन्स पढ़ने को बाध्य होती हैं।
इससे धीरे-धीरे उनके शारीरिक व मानसिक विकास में नकारात्मक प्रभाव दृष्टिगोचर होने लगते हैं। सिर्फ टी.वी. देखने और गप्पें हांकने के दौरान तली भुनी चटपटी चीजें या पॉपकार्न वगैरह खाने से ऐसी लड़कियां मोटापे व आलस्य का शिकार बन जाती हैं। इनका शरीर बेडौल होने लगता है।
शारीरिक परिश्रम के अभाव में मांसपेशियों का लचीलापन खत्म होने लगता है, पाचनक्रिया मंद पड़ जाती है और शरीर के मेटाबालिज्म की दर में कमी आने लगती है जिसकी वजह से ऐसी लड़कियों में मुंहासे, मंदाग्नि, कब्ज, चिड़चिड़ापन, मासिक धर्म के समय पेट में ऐंठन व असहनीय दर्द, कमर दर्द आदि की शिकायत बनी रहती है।
इसके अलावा इनमें डरने, आशंकित रहने व अति भावुकता की प्रवृत्ति भी ज्यादा देखने को मिलती है जबकि खेलकूद, व्यायाम या नियमित टहलने वाली लड़कियों में शारीरिक स्फूर्ति व सबल मानसिकता तारीफ के काबिल होती है। इनका मेटाबालिज्म रेट भी सही रहता है। रक्तपरिसंचरण तंत्र व श्वसनतंत्र भी सुचारू रूप से काम करता है जिसकी वजह से इनकी मानसिक व शारीरिक विकास की दर, आयु के अनुकूल होती है।
नियमित खेलकूद या किसी भी किस्म के व्यायाम में भाग लेने से मांसपेशियां भी लचीली बनी रहती हैं और शरीर में रोग प्रतिरोधक शक्ति का भी विकास होता है। ऐसी लड़कियों में, मासिकपूर्व तनाव, घबराहट, मोटापा, थकान, खांसी जुकाम, सिरदर्द, कमर दर्द आदि भी कम पाए जाते हैं।
इसीलिए लड़कियों को व्यायाम व खेलकूद करने से रोकने की बजाय उन्हें उनमें भाग लेने हेतु अभिभावकों व शिक्षकों को प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके अलावा समाजसेवी संगठन, नगर निगम और ग्राम पंचायत के अधिकारियों, रिश्तेदारों, स्कूल कॉलेज की प्रशासनिक कमेटी के सदस्यों को लड़कियों के लिए सुरक्षित खेल के मैदानों की व्यवस्था करवानी चाहिए ताकि लड़कियों के माता-पिता भय मुक्त होकर अपनी लड़कियों को वहां खेलने कूदने की अनुमति दे सकें।
इस तरह एक तरफ जहां शारीरिक रूप से सबल महिला समाज बनेगा, वहीं उनमें छुपी प्रतिभाओं को भी अपना खेल के प्रति रूझान जाहिर करने का मंच मिलेगा। बहुत सी युवतियां विश्वस्तर व राष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ी बनकर अपना व अपने परिवार का नाम रोशन कर सकेंगी। (उर्वशी)



