दुनियाभर में मशहूर है भारत का मैसूर पैलेस

मैसूर पैलेस की गिनती दुनिया के सर्वाधिक खूबसूरत और ऐतिहासिक स्थानों में होती है। इसकी भव्यता ,सुंदरता और स्थापत्य कला न केवल मन को मोह लेने वाली है अपितु यहां आने वाले देशी और विदेशी पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देती है। इस महल को देखने प्रतिवर्ष लाखों पर्यटक आते है जिनकी यादों में यह महल समां जाता है। कर्नाटक और तमिलनाडु की सीमा पर स्थित मैसूर पैलेस को ताजमहल के बाद सबसे मशहूर माना जा रहा है। अपने इस बेहद और आंखों को चौंधियाने वाले आकर्षण के कारण इस महल की सुंदरता के चर्चे दुनियाभर में हो रहें है। इस खूबसूरत राजसी पैलेस को महाराजा पैलेस भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि किसी जमाने में यहां शाही अदालत लगा करती थी। महल के अंदर निर्मित सबसे बड़ा दुर्ग सोने के पत्तरों से सजाया गया है। यहां आप द्रविड़, पूर्वी और रोमन स्थापत्य कला का शानदार संगम देख सकते है। त्योहारों के दौरान महल को 98,000 बल्बों और  रंगीन लाइट्स से सजाया जाता है।महल के अंदर एक बड़ा-सा दुर्ग इसकी रौनक को और बढ़ाता है। महल पर सूर्य की रोशनी पड़ने से इसकी दीवारें जगमगा उठती हैं। महल के अंदर राजसी हथियार, पोशाकें, आभूषण, लकड़ी की बारीक नक्काशी वाले दरवाजे और छतों में लगे झूमर इस महल की शोभा में चार चांद लगाते हैं।  मैसूर पैलेस को महाराज राजर्षि महामहिम कृष्णराजेंद्र वाडियार चतुर्थ ने बनवाया था। इस महल को बनने में लगभग 15 साल का समय लगा था। इसका निर्माण कार्य 1897 में शुरू हुआ था और यह महल 1912 में बनकर तैयार हुआ था। पहले यह राजमहल चंदन की लकड़ियों से बना हुआ था जिसको भारी क्षति  पहुंचने पर राजमहल के रूप में नए पैलेस का निर्माण करवाया गया। इस महल के बनने के बाद इसके  इतिहास में एक बार भी बदलाव नहीं किए गए हैं। मैसूर महल को बेहद अद्भुत और मनोहारी  ढंग से बनाया गया है। महल में प्रवेश करते ही प्रवेश द्वार के दाहिने तरफ  सोने के कलश से सजा मंदिर है। इनके विपरीत दिशा में मुख्य भवन है और उसके बीच में एक खूबसूरत  बगीचा है। महल की दीवारों पर दशहरा के चित्र भी बने हैं जो कि सजीव लगते हैं। कक्ष के बीच में छत की जगह एक रंग-बिरंगे शीशों से बना ऊंचा गुबंद है जो कि सूरज और चांद की रोशनी को एकत्रित करता है। 

—बाल मुकुन्द ओझा