जलियांवाला बाग नरसंहार में मारे गए लोगों को नहीं मिल सका ‘शहीद’ का दर्जा

अमृतसर, 8 अप्रैल (सुरेन्द्र कोछड़) : जलियांवाला बाग के नरसंहार संबंधी राष्ट्रीय स्तर पर मनाए जा रहे शताब्दी समारोह पर एक तरफ तो केन्द्र सरकार द्वारा 13 अप्रैल को उप-राष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू द्वारा नरसंहार संबंधित डाक टिकट जारी किए जाने के साथ-साथ कई और महत्त्वपूर्ण ऐलान किए जा रहे है, जबकि दूसरी तरफ 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार के 100 वर्ष बीत जाने के बाद उस दौरान मारे गए निर्दोष लोगों को सरकार ‘शहीद का दर्जा देने के मामले’ में लापरवाह बनी हुई है। हैरानी की बात है कि शहीदी स्मारक घोषित किए जाने के बाद भी केन्द्र सरकार न तो जलियांवाला बाग में अंग्रेज़ी पुलिस की गोलिया का निशाना बनने वाले देश के आम नागरिकों को ‘शहीद’ का दर्जा देने के लिए तैयार है और न ही देशवासियों की पुरज़ोर मांग पर आजतक  इस नरसंहार का बदला लेने वाले क्रांतिकारी स. ऊधम सिंह को ही ‘शहीद’ के रूप में मान्यता दी गई है। जलियांवाला बाग स्मारक में बहुत सारे स्थानों पर 13 अप्रैल को गोलियों के शिकार हुए शहीदों को ‘साधारण लोग’ कहकर सम्बोधित किया गया है। इसके साथ ही हज़ारों किलोमीटर का सफर तय करके  लंदन के कैक्सटन हाल की भरी सभा में पंजाब के तत्कालीन लैफ्टीनैंट गवर्नर माइकल ओडवायर को  गोली मारकर भारत की आज़ादी का संदेश पूरे अंग्रेज़ी साम्राज्य तक पहुंचाने वाले शहीद ऊधम सिंह को ‘राष्ट्रीय शहीद’ घोषित किए जाने पर केन्द्र सकरार ने जलियांवाला बाग नैशनल मैमोरियल ट्रस्ट में भी सहमति नहीं बन सकी, जिस के चलते जलियांवाला बाग स्मारक में स्थापित की गई चित्रकला गैलरी में लगाई गई शहीद ऊधम सिंह की हिंदू-सिख वेश वाली दो तस्वीरों सहित शहीद मदन लाल ढींगरा की तस्वीर के नीचे कहीं भी उन्हें शहीद लिख कर सम्बोधित नहीं किया गया है, इसके अलावा स्मारक के सोविनर  में सामान्य साधारण से शो केस में रखी शहीद ऊधम सिंह की अस्थियों  वाले कलश के साथ लगाई पट्टिका पर शहीद स. ऊधम सिंह को शहीद सदस्य सम्बोधित करने की बजाय केवल ऊधम सिंह की अस्थियां लिखा गया है।