लू के कारण बढ़ रहा है मौतों का आंकड़ा

बात भले ही अजीब लगे परन्तु यह सच्चाई है कि लू के थपेड़े डेढ़ लाख से अधिक लोगों की ज़िन्दगी छीन लेते हैं। वैसे तो दुनिया के सभी देश इससे प्रभावित हो रहे हैं परन्तु भारत, रूस और चीन इससे सर्वाधिक प्रभावित हैं। प्रकृति का अत्याधिक और अंधाधुंध दोहन का परिणाम सामने आने लगे हैं। ऐसा नहीं है कि धरती के बढ़ते तापमान से दुनिया के देश चिंतित न हो या इससे बेखबर हों, परन्तु इसे संतुलित करने के प्रयासों में जो लक्ष्य हासिल किया जाना था, वह अभी दूर की कोड़ी ही सिद्ध हो रहा है। हालात बेहद चिंतनीय और गंभीर है। भारत के साथ-साथ ही दुनिया के देश अब जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से दो-चार होने लगे हैं। बेमौसमी बरसात, भाषण गर्मी, कड़ी सर्दी, आए दिन तूफानों का सिलसिला, भू-स्खलन, सुनामी, ग्लेशियरों से बर्फ  का तेज़ी से पिघलना, भूकम्पन, जंगलों में आए दिन आग लगना और न जाने क्या-क्या जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। हालात तो यहां तक होते जा रहे रहे हैं कि मौसम के समय व अवधि में भी तेज़ी से बदलाव होता जा रहा है। सबसे चिंतनीय बात यह है कि हीट वेव यानी लू की चपेट में आने से लोगों की मौतों में तेज़ी से इजाफा होने लगा है। देखा जाए तो यह हीट वेव मौत का कारण बनने लगी है। 
हीट वेव और उसकी अवधि अब संकट का नया कारण बनती जा रही है। आस्ट्रेलिया के मोनाश विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में सामने आया है कि भारत के साथ ही चीन और रूस में हीट वेव के कारण सर्वाधिक मौत हो रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के देशों में केवल लू के थपेड़ों की लपेट में आने से एक लाख 54 हज़ार से अधिक व्यक्ति अपनी जान गंवा देते हैं। प्रति दस लाख में से 236 व्यक्तियों की मौत हीट वेव के कारण हो रही है। रिपोर्ट की माने तो इनमें से हर पांचवां जान गंवाने वाला व्यक्ति भारतीय है। यह अपने-आप में चिंतनीय और गम्भीर विषय है। यह रिपोर्ट  43 देशों के 750 स्थानों के तापमान के अध्ययन पर आधारित है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार पिछले 30 सालों में हीट वेव के कारण मौत के आंकड़ें में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। 
भारतीय मौसम विभाग की माने तो पूर्वी भारत में 1901 के बाद सर्वाधिक गर्मी इस साल अप्रैल में रिकार्ड की गई है। पश्चिम बंगाल में 2015 के बाद अप्रैल में सर्वाधिक लू के थपेड़ों को झेलना पड़ा है। इस तरह के कमोबेश हालात दुनिया के अधिकांश देशों में देखे जा सकते हैं। हालात ये होते जा रहे हैं कि समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है और उसके परिणामस्वरूप समुद्र के किनारे बसे शहरों का अस्तित्व तक संकट में आने लगा है। दरअसल यह सारी समस्या मानव जनित समस्या है। अंधाधुंध शहरीकरण, पेड़-पौधों के जंगलों के जगह लोहे व कंक्रीट के खड़े होते जंगल, जन संख्या में अप्रत्याशित बढ़ोतरी और कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगाने में विफलता के परिणाम सामने आ रहे हैं। जैविक विविधता प्रभावित होती जा रही है। आधुनिकीकरण के नाम पर नित नए प्रयोग होने लगे हैं। जलवायु को प्रभावित करने वाले उत्पादों का उपयोग बेतहाशा बढ़ा है। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि जिस उत्पाद को हम आज उपादेय बता रहे हैं, एक समय बाद वहीं उत्पाद से होने वाले नुकसान गिनाने लगते हैं। दूसरी ओर वातावरण की नमी को समाप्त कर तापमान बढ़ाने में इन उत्पादों की खास भूमिका है। इन सबके साथ ही मानवीय गतिविधियों में बदलाव होने के साथ ही दखल बड़ा है। एक समय था जब बड़े ज़ोर-शोर के साथ पालिथीन का उत्पादन किया गया और आज दुनिया के देश पालिथीन से मुक्ति चाहने लगे है। इसका कारण भी साफ है लोगों को पालिथीन से होने वाले नुकसान का पता चल गया है। आज ए.सी., फ्रिज, ओवन आदि की घर-घर उपलब्धता आसान हो गई है। अब ए.सी., फ्रिज या इस तरह के अन्य उत्पाद किस तरह से वातावरण को गर्म कर रहे हैं, यह किसी से छुपा नहीं है। एक समय थर्मल पॉवर के प्लांट की आवश्यकता थी परन्तु आज कोयले के धुंआ के कारण किस तरह से वातावरध दुषित हो रहा है, यह समझने लगे हैं। घर में जलने वाले बल्ब की बात करें तो सामान्य बल्ब से सीफएल और उसके बाद एलईडी और सोलर का युग आ गया। सवाल कई बार तो ऐसे लगता है जैसे कि मार्केट फोर्सेज भी बहुत कुछ प्रभावित करता है। आज आर.ओ. का उपयोग हानिकारक बताया जाने लगा हैं। उसी तरह से जापान में ओवन को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बताया जाने लगा है। ईंधन के जितने भी साधन हैं, वे सभी वातावरण को दूषित करने में अग्रणी हैं। इसी तरह से सुविधजनक इलक्ट्रोनिक उत्पाद वातावरण को बिगाड़ने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे। 
देखा जाए तो प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का नजीजा सामने आने लगा है। वातावरण दूषित होने के साथ ही कभी सावन बिन बरसात रह जाता है तो कभी अप्रैल-मई में भी बरसात के कारण सर्दी से दो चार होना पड़ जाता है। समय आ गया है जब इस समस्या के निराकरण के लिए विषेषज्ञों को खासतौर से ध्यान देना होगा नहीं तो हालात दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होते जाएंगे। इसे भले ही चेतावनी समझा जाएं या कुछ और, परन्तु सब कुछ आईने की तरह साफ है। अब समय आ गया है कि धरती के बढ़ते तापमान के स्तर को कम करने के उपायों पर गम्भीरता से प्रयास किये जाएं। 

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