नए व्यापार समझौते से भारत के लिए खुला बड़ा बाज़ार

भारत ने प्रति व्यक्ति 1,00,000 अमरीकी डॉलर से अधिक आय वाले यूरोपीय देशों के एक धनी समूह के साथ एक नए व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करके अपने लिए समृद्धि का एक और दरवाज़ा खोल दिया है। इससे भारतीय किसानों, मछुआरों और सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के लिए एक आकर्षक बाज़ार में पहुंचने का रास्ता खुल गया है। इससे प्रधानमंत्री मोदी के विकसित भारत 2047 मिशन को पर्याप्त गति मिलेगी।
यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (ईएफटीए)—स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड और लिकटेंस्टीन के साथ हुआ व्यापार एवं आर्थिक साझेदारी समझौता (टीईपीए) ऐतिहासिक है। यह समझौता 1 अक्टूबर को शुभ नवरात्रि के दौरान लागू हुआ। ईएफटीए के सदस्य देशों ने 15 वर्षों में 100 बिलियन अमरीकी डॉलर के निवेश का संकल्प लिया है, जो दुनिया में किसी भी व्यापार समझौते में जतायी गई पहली ऐसी प्रतिबद्धता है। इस समझौते के जरिए ईएफटीए के सदस्य देशों की सरकारें भारत में निवेश को बढ़ावा देंगी, कम से कम दस लाख रोज़गार सृजित करेंगी और प्रधानमंत्री मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ मिशन को गति प्रदान करेंगी।
विकसित भारत हेतु व्यापार की रणनीति : मोदी सरकार ने अतीत की झिझक को छोड़कर मुक्त व्यापार समझौतों (एफटीए) को अपनाया है। ये समझौते हमारे उत्पादों और सेवाओं को प्रीमियम एवं विकसित बाज़ारों में पहुंचाते हैं। ये समझौते न सिर्फ  नए दरवाज़े खोलते हैं, बल्कि हमारे उद्योगों को सशक्त बनाते तथा हमें आगे बढ़ने में मदद करने वाले प्रतिस्पर्धात्मकता और गुणवत्ता का संचार भी करते हैं। भारत ने जहां जुलाई 2025 में यूनाइटेड किंगडम के साथ एक ऐतिहासिक समझौता किया, वहीं यूरोपीय संघ के साथ बातचीत भी अच्छी तरह आगे बढ़ी है। इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी के निर्णायक प्रयासों से ऑस्ट्रेलिया और संयुक्त अरब अमीरात के साथ दोनों पक्षों के लिए लाभदायक समझौते हुए।
निवेश और रोजगार सृजन : अब, ईएफटीए के 100 बिलियन अमरीकी डॉलर के निवेश से दस लाख प्रत्यक्ष और अनगिनत अप्रत्यक्ष रोज़गार सृजित होने का वादा किया गया है। यह निवेश पिछले 25 वर्षों में इन देशों से प्राप्त मात्र 11.9 बिलियन अमरीकी डॉलर के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) से कहीं अधिक बड़ा है। इसका श्रेय दुनिया की तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था में मौजूद अवसरों और मजबूत बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) कानूनों को जाता है। 
किसान और मछुआरे : प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के अलावा वस्त्र तथा रत्न एवं आभूषण जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्र से जुड़े निर्यात में भी तेज़ी आएगी। इससे रोज़गार के नए अवसर सृजित होंगे। ईएफटीए के समृद्ध उपभोक्ता हमारे कृषि उत्पादों, चाय और कॉफी के लिए लालायित रहते हैं। भारत ने जहां डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को संरक्षण दिया है, वहीं चावल, ग्वार, दालें, अंगूर, आम, सब्जियां, बाजरा और काजू के व्यापार को अवसर प्रदान किए हैं। बिस्कुट, कन्फेक्शनरी, चॉकलेट और सॉस जैसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों पर शुल्क में कटौती से यह सौदा और भी बेहतर हो गया है। मछुआरे इस बात से खुश हैं कि निर्बाध मानक सहयोग के जरिए फ्रोजन झींगा, प्रॉन्स और स्क्विड का निर्यात बढ़ेगा।
बेहतर भविष्य : ये समझौते निर्माताओं, सेवा प्रदाताओं और आम नागरिकों के बीच उत्साह जगाते हैं, जो गहरे आर्थिक संबंधों के जरिए उच्च-गुणवत्ता वाले वैश्विक उत्पादों का आनंद लेते हैं। टीईपीए अपने मूल में स्थिरता को समाहित करता है, समावेशी विकास को बढ़ावा देने वाले व्यापार को बढ़ावा देता है, गरीबी से लड़ता है और हमारे पर्यावरण की रक्षा करता है। पेरिस समझौते और अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के मूल सिद्धांतों की पुष्टि करते हुए यह जलवायु संबंधी कार्रवाई, लैंगिक समानता तथा जैव विविधता संरक्षण से संबंधित सहयोग को बढ़ावा देता है और उचित वेतन, सुरक्षित रोज़गार एवं एक हरी-भरी धरती सुनिश्चित करता है। हरित प्रौद्योगिकी के आदान-प्रदान एवं सहयोग के जरिये यह श्रमिकों का उत्थान करता है, असमानता को कम करता है और हमारे बच्चों के लिए एक समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करता है। मोदी के भारत में जन्मे बच्चों को घर पर भी उतने ही अवसर मिलते हैं, जितने कि आल्प्स की पहाड़ियों वाली भूमि, आग एवं बर्फ  वाली भूमि या फिर मध्य रात्रि के सूर्य वाली भूमि पर। भारत की नियति में अलगाव नहीं, बल्कि सक्रिय भागीदारी है। जिस तरह पुरानी सभ्यता वाले हमारे राष्ट्र के प्राचीन नाविकों ने साहस के साथ अज्ञात जलमार्गों पर यात्रा की थी, ठीक उसी तरह आज के 140 करोड़ भारतीय (आत्मविश्वास एवं दृढ़ निश्चय के साथ और एकजुट होकर) आगे बढ़ रहे हैं। लक्ष्य है—अपनी वैश्विक उपस्थिति का विस्तार करना, शिक्षा एवं डिजिटल क्रांति के जरिए सशक्त बनना और एक टिकाऊ भविष्य का निर्माण करना। हम सब को मिल कर वाणिज्य के क्षेत्र में भारत को एक ऐसे अग्रणी देश के रूप में पुनर्स्थापित करना है, जहां  व्यापार एवं प्रौद्योगिकी मानवता की सेवा करें और नवाचार एवं समावेशन कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ें।

-लेखक केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री हैं।

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