रूसी तेल पर अमरीकी प्रतिबंध : न रूस को फर्क पड़ेगा, न भारत को!
रूस के सबसे बड़े दो तेल निर्यातकों (रोज़नेफ्ट व लुकऑयल) पर सीधा प्रतिबंध थोप कर अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने, ऐसा प्रतीत होता है कि, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के प्रति अपना दृष्टिकोण बदल दिया है। ट्रम्प ने दूसरी बार व्हाइट हाउस में कदम रखते ही मास्को को तरह-तरह के प्रलोभन दिये थे कि वह यूक्रेन में अपने युद्ध पर विराम लगा दे, लेकिन कोई फायदा न हुआ। अब लगता है कि ट्रम्प की कोशिश पुतिन के तेल निर्यात को ही बंद करना चाहते हैं। इसलिए वह पहले से ही भूमिका बनाने के लिए बार-बार कह रहे थे कि ‘मेरे अच्छे दोस्त मोदी ने रूस से तेल आयात बंद करने का वायदा किया है’, जिसका नई दिल्ली ने तो अभी तक कोई सीधा जवाब नहीं दिया है, लेकिन अपने अमरीकी हितों को मद्देनज़र रखते हुए रिलायंस इंडस्ट्रीज व पीएसयू (पब्लिक सेक्टर यूनिट्स) ने संकेत दिये हैं कि वे रुसी तेल आयात करना स्थगित करेंगे। रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होते ही अमरीका के मना करने के बावजूद भारत ने भारी मात्रा में रुसी तेल आयात करना शुरू कर दिया था। भारत का लगभग 60 प्रतिशत कच्चा तेल रोज़नेफ्ट व लुकऑयल से आ रहा था। ध्यान रहे कि रूस प्रतिदिन 4.4 बिलियन बैरल कच्चा तेल निर्यात करता है, जिसमें से लगभग दो-तिहाई रोज़नेफ्ट व लुकऑयल से निकलता है।
यहां दो प्रश्न विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाते हैं। एक, क्या तेल निर्यात पर पाबंदी, जिसका यूरोपीय संघ भी समर्थन कर रहा है, से डर कर पुतिन युद्ध बंद कर देंगे? दो, रूस का तेल न आने से क्या भारत को कोई समस्या होगी? इन दोनों ही सवालों का उत्तर ‘नहीं’ है और ऐसा अकारण नहीं। पुतिन ने ट्रम्प की सीधी पाबंदी को कोई महत्व नहीं दिया है। संभवत: वह इस जानकारी से स्वयं को सुरक्षित महसूस कर रहे हैं कि दोनों रूसी कम्पनियों ने पाबंदियों से बचने के लिए पहले से ही कारगर योजनाएं बनायी हुई हैं। दरअसल, बड़ी मात्रा में रूसी तेल का निर्यात युआन व रूबल में हो रहा है। इसलिए रोज़नेफ्ट व लुकऑयल अपने कच्चे तेल का निर्यात रहस्यपूर्ण मालिकों के माध्यम से कर सकती हैं, बिचौलियों के नेटवर्क को छुपाते हुए। इसलिए अमरीका की सीधी पाबंदी में कुछ खास दम दिखायी नहीं दे रहा।
दरअसल, अधिक बात इस पर निर्भर करेगी कि अमरीका उन कम्पनियों पर कितनी मज़बूती से पाबंदी लगाता है, जो रोज़नेफ्ट व लुकऑयल से व्यापार करती हैं। इसी धमकी में कुछ वज़न होगा। भारतीय रिफाइनरियों ने पहले ही संकेत दे दिया है कि वह रूसी क्रूड आयात को स्थगित करेंगी। यूरोपीय संघ भी तीसरी पार्टियों की ओर देख रहा है। लुकऑयल के सैंकड़ों गैस स्टेशन यूरोप में हैं और रिफाइनरियों में स्टेक्स भी हैं, जो उसे बेचने पड़ेंगे। लेकिन चीन इन दोनों कम्पनियों से कच्चा तेल खरीदता रहेगा।
तो क्या इससे पुतिन को वार्ता मेज़ पर लाया जा सकेगा? फिलहाल तो कोई संभावना नज़र नहीं आ रही है। पाबंदियां और रूस के ऊर्जा इन्फ्रास्ट्रक्चर पर यूक्रेन के जारी ड्रोन हमले रूस के ऊर्जा राजस्व को काफी हद तक सिकोड़ तो देंगे, लेकिन इतना नहीं कि मास्को के नज़रिये में तुरंत परिवर्तन आ जाये। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ट्रम्प पर भरोसा नहीं किया जा सकता, वह कब अपना मन व विचार बदल दें, विशेषकर अगर अमरीका के पम्प दाम अमरीकियों को चुभने लगें, जो फिलहाल ठीकठाक हैं। इसका अर्थ यह है कि अनेक तत्व सक्रिय हैं। ट्रम्प ने रूस के प्रति अपना नज़रिया बदला है, लेकिन क्या वह अपनी बात पर कायम रहेंगे? यूक्रेन में जल्द शांति आती हुई तो दिखायी नहीं दे रही है।
रूसी तेल का आयात बंद करने से भारत को भी कोई खास समस्या नहीं होने वाली। अमरीकी व यूरोपीय संघ के प्रतिंबधों के बावजूद ऊर्जा बाज़ारों में कोई हड़कंप नहीं है; क्योंकि सप्लाई के अन्य मार्ग खुले हुए हैं और भारत की मैक्रो अर्थव्यवस्था आसानी से एडजस्ट कर सकती है। चार डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि कुछ खास नहीं है, क्योंकि एक बैरल की कीमत अब भी पिछले साल की तुलना में 10 डॉलर कम है। यह सही है कि रोज़नेफ्ट व लुकऑयल को इसलिए ब्लैकलिस्ट किया गया है ताकि भारत व चीन, जो मिलकर रूस का तीन-चौथाई तेल खरीद रहे थे, उनका तेल आयात करना बंद कर दें और पैसे की तंगी की वजह से मास्को यूक्रेन पर हमले करना बंद कर दे। अमरीका ने यूरोपीय संघ से भी कहा है कि वह रूसी तेल व गैस खरीदना कम कर दे। यूरोप में गैस के दाम भी कुछ खास नहीं बढ़े हैं। साल 2026 व 2027 के लिए अग्रिम तेल खरीद दाम भी वर्तमान से कम हैं, जिससे लगता है कि बाज़ारों को उम्मीद है कि छोटे से अवरोध के बाद रुसी तेल की सप्लाई फिर से आरंभ हो जायेगी।
यह उम्मीद अकारण नहीं है। सबसे पहली बात तो यह है कि ट्रम्प के बारे में हर कोई जानता है कि वह अपनी सुबह की नीति शाम होने से पहले बदल देते हैं। फिर अमरीका ने जो पाबंदियां 2022 में लगायी थीं, उन्हें भी वह सही से लागू न कर सका था। वर्तमान पाबंदियां भी इसलिए अस्थायी प्रतीत हो रही हैं कि उनका उद्देश्य पुतिन को वार्ता मेज़ तक लाने का है। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि दोनों मांग व आपूर्ति में अन्य तत्वों का महत्व बढ़ गया है। अमरीकी पाबंदियों से पहले इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) ने 2026 के लिए तेल के 4 मिलियन बैरल प्रति दिन ओवर सप्लाई की भविष्यवाणी की थी, जोकि रूस के दैनिक समुद्र के मार्ग से सप्लाई होने वाले तेल से अधिक है। आयल कार्टेल ओपेक की स्पेयर क्षमता भी 3 मिलियन बैरल प्रति दिन से अधिक है, जिसमें से 2 मिलियन बैरल तो सऊदी अरब के हैं। ब्राज़ील व गुयाना की सप्लाई भी अगले वर्ष बढ़ जायेगी।
भारत रूस से सालाना 1-2 बिलियन डॉलर का तेल खरीद रहा था। भारत के लिए परेशानी उस समय आती जब रूसी तेल के वैश्विक बाज़ार में पूरी तरह से बंद होने पर वैश्विक तेल कीमतों में बहुत अधिक वृद्धि हो जाती। चूंकि वैश्विक तेल कीमतें, आपूर्ति अधिक होने की वजह से, आवश्यकता से अधिक इजाफे की संभावना नहीं है, इसलिए भारत के लिए कोई खास समस्या फिलहाल तो नज़र नहीं आ रही है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर



