कॉमेडी के बादशाह थे गोवर्धन असरानी

फिल्म अभिनेता गोवर्धन असरानी अब हमारे बीच नहीं है। 84 वर्ष की आयु में दीपावली के दिन उनका निधन हो गया है। उन्हें भारतीय फिल्मों में कॉमेडी के बादशाह के रूप में जाना जाता रहा। गोवेर्धन असरानी का जन्म 1 जनवरी सन् 1940 में राजस्थान की राजधानी जयपुर में हुआ था। उनके चार बहनें और तीन भाई हैं। उन्होंने अपनी पढ़ाई की शुरुआत सेंट जेवियर स्कूल जयपुर से की। उसके बाद उन्होंने स्नातक की पढ़ाई राजस्थान कॉलेज से पूरी की। पढ़ाई खत्म होने के बाद उन्होंने कई वर्षों तक बतौर रेडियो आर्टिस्ट काम किया था। असरानी की शादी अभिनेत्री मंजू बंसल ईरानी से हुई। असरानी ने अपनी पत्नी के साथ भी कई फिल्मों में भूमिकाएं अदा की हैं। असरानी अब तक 300 से अधिक हिंदी व गुजरती फिल्मों में अभिनय कर चुकें हैं। वह पिछले पांच दशक से हिंदी सिनेमा में सक्रिय हैं। उन्होंने हिंदी सिनेमा के अमूमन सभी दिग्गज अभिनेताओं के साथ अभिनय किया हैं। फिल्मी दुनिया में अभिनय के अलावा वह एक राजनीतिज्ञ भी रहे हैं। उन्होंने सन् 2004 में कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी व लोकसभा चुनावों के दौरान उन्होंने कांग्रेस की जनसभाओं में  बढ़-चढ़कर हिस्सा भी लिया था। 
‘हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं!’ फिल्म ‘शोले’ का यह डायलॉग उनकी ज़िंदगी में शोहरत लेकर आया था जो आज भी याद किया जाता है। इस डायलॉग को मशहूर बनाने के पीछे असरानी का ही हाथ है। इस फिल्म में उनका शानदार अंदाज सभी ने देखा है। असरानी की गिनती बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेताओं में होती हैं। उन्होंने अधिकांश फिल्मों में कॉमेडी रोल और सपोर्टिव रोल किए हैं। परन्तु अपने अभिनय कौशल से उन्होंने सभी किरदारों में जान डाल दी थी। असरानी के अंदर सिंगिंग का भी हुनर है, यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि असरानी ने कई हिंदी फिल्मों में अपनी आवाज़ का जादू बिखेरा है। असरानी के पिता की कारपेंट की दुकान थी। मगर परिवार के बिजनेस में असरानी की बिल्कुल दिलचस्पी न थी। ऊपर से गणित की पढ़ाई में भी वे कमजोर थे। राजस्थान कॉलेज से स्नातक करने के बाद इन्होंने ऑल इंडिया रेडियो, जयपुर में वॉइस आर्टिस्ट के रूप में काम करना शुरु किया। सन् 1964 में उन्होंने पुणे के फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया में दाखिला लिया और वहीं अभिनय सीखा। 
असरानी ने करीब पांच दशक तक फिल्मों में काम किया है। शुरुआत में असरानी को ज्यादा रोल नहीं मिले इसलिए वो एफटीआईआई में ही शिक्षक बन गए थे। असरानी ने दर्शकों को सिर्फ हंसाया ही नहीं, बल्कि मधुर संगीत भी सुनाया है। सन् 1977 में आई फिल्म ‘आलाप’ में असरानी ने दो गाने गाए, जो उन्हीं पर फिल्माए गए। इसके अलावा ‘फूल खिले हैं गुलशन गुलशन’ में मशहूर गायक किशोर कुमार के साथ भी एक गाना गाया था। असरानी ने अधिकतर फिल्मों में साइड रोल किए हैं। ‘चला मुरारी हीरो बनने’ और ‘सलाम मेमसाहब’ जैसी फिल्मों में उन्होंने लीड एक्टर के तौर पर भी काम किया था। असरानी ने सन् 1967 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘हरे कांच की चूड़ियां’ से फिल्मों में कदम रखा था। असरानी ने कई फिल्मों में अपने अभिनय की छाप छोड़ी है लेकिन ‘शोले’ में जेलर के किरदार ने इन्हें खूब लोकप्रियता दिलाई। उन्होंने ‘मेरे अपने’, ‘बावर्ची’, ‘परिचय’, ‘अभिमान’, ‘महबूब’, ‘बंदिश’, ‘चुपके-चुपके’ जैसी फिल्मों में भी शानदार अभिनय किया है। 
फिल्म अभिनेता असरानी से मेरी मुलाकात करीब 5 साल पहले उज्जैन के मौनीबाबा आश्रम में हुई थी, वे बाबा के बड़े मुरीद थे और जब तक बाबा जीवित रहे असरानी की आस्था भी उनके लिए बनी रही। असरानी मौनीबाबा को रुद्र का साक्षात स्वरूप मानते थे। असरानी बातचीत में भी हरफनमौला थे और अभिनय में भी हरफनमौला रहे। आठ दशक के अपने जीवन मे असरानी ने लोगो को न सिर्फ खुलकर हंसाया बल्कि एक अच्छे इंसान के रूप में लोगों की ज़रूरत पढ़ने पर मदद भी की। असरानी के मैनेजर बाबूभाई थीबा ने बताया कि असरानी का निधन जुहू के आरोग्य निधि अस्पाताल में हुआ। उनका अंतिम संस्कार भी शाम को ही सांताक्रूज वेस्ट के शास्त्री नगर शवदाह गृह में कर दिया गया। इस मौके पर उनके परिजन और करीबी लोग ही मौजूद थे। असरानी ने एक इंटरव्यू बताया था कि लोग उनको कमर्शियल एक्टर नहीं समझते थे और उन लोगों में सम्पूर्ण सिंह गुलजार भी शामिल थे। उन्होंने बताया था, ‘गुलजार साहब ने कहा था ना ना... मुझे वो कमर्शियल एक्टर नहीं समझते थे... बोले कुछ अजीब सा चेहरा है।’ लेकिन जब उन्होंने एक्टिंग में हाथ दिखा, तो फिर उन्हें पीछे मुड़कर देखने का मौका नहीं मिला। बेशक असरानी अब इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन वे अपने किरदारों से हमेशा जिंदा रहेंगे।

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