महापर्व के घाट पर
कुछ दिन शेष रह गए हैं। विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के एक हिस्से में पर्व सिर पर है। गांव, शहर, चौक-चौराहे, गली-मोहल्ले, सड़कें-गलियां, सबके सब स्वागत के लिए सज हैं। हर जगह हर्षोल्लास का माहौल है। सच कहूं तो यह पर्व नहीं, महापर्व का मौसम है। बिहार की माटी पलकें बिछाए अपने खेवनहार का एक झलक देखने के लिए आतुर है। दुनिया का सबसे अद्भुत त्योहार। देवता कोई और नहीं, स्वयं जनता है। सभी जनसेवक यजमान की भूमिका में हैं। यह इकलौता मौसम है जिसका पक्ष और विपक्ष, सबको बेसब्री से इंतजार रहता है। शादी-ब्याह जैसा माहौल होता है। रूठना-मनाना बदस्तूर जारी रहता है। इसी मौसम में जनता मुखर होती है।
जनता जनार्दन के तेवर से इंद्रासन डोलने लगता है। किसी में इतना कुव्वत नहीं कि जनता को नाराज करे। यह इकलौता मौसम है जिसमें जनसेवक चौबीसों घंटे घर से बाहर रहते हैं। सड़कें-गलियों की खाक छानते हैं। जनता जनार्दन की सेवा में रामभक्त वीर हनुमान होने का स्वांग करते हैं। है न यह पर्व अनोखा! निंदिया रानी आंखों से कोसों दूर चली गई है। अनवरत रतजगा का दौर है। हर पल बेचौनी के साथ गुजर रहा है। सुंदर, हसीन सपने जहां-तहां अपना तंबू गाड़ते नज़र आ रहे हैं। लगता है चोरी-चुपके कोई हवा में भांग मिला दिया। हर शख्स परेशान और बेचौन दिख रहा है। जिसे देखिए, अपनी डफली, अपना राग अलापे जा रहा है। सच में समय चुनौती भरा है। कई अपने रूठकर कोसों दूर जा बैठे हैं, जबकि अनेक पराए अपने बन चुके हैं।
आलम यह है कि कौन कब तक साथ देगा और कौन कब साथ छोड़ेगा... कोई नहीं जानता। हर कदम पर भटकाव है। जनता की अलग परेशानी है। कई यजमान हैं। देवता भी एक नहीं। खजाने का कपाट जनहित में खुल चुका है। चाहे जो पूजा करवा लो, जो भोग चढ़वा लो। बस आशीर्वाद से झोली भर दो। देवताओं के भी कई प्रकार हैं। अलग-अलग कुनबे के अलग-अलग देवता। हर देवता के पूजा का विधान अलग है। मनोकामना पूर्ति के लिए सभी देवताओं को खुश करना ठट्ठा नहीं। सबको रिझाने, मनाने, लुभाने के लिए यजमानों द्वारा अलग-अलग हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। व्रतियों में गजब का उत्साह है। निष्ठा देखते बन रही है। देवता को प्रसन्न करने की होड़ लगी है। धन तो बहता पानी है। कहावत को चरितार्थ होते देखना सुखद अनुभूति है। बस कुछ दिनों की बात है। कुछ व्रती आशीर्वाद पाकर थकान मिटाएंगे, जबकि कुछ देवता को कोसेंगे। दो-चार साल चौन की नींद सोएंगे। देवता को वश में करने के लिए सभी तंत्र-मंत्र अपनाए जा रहे हैं। टूटे-फूटे पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार किया जा रहा है। बस... कैसे भी देवता सिर पर अपना हाथ फेर दें।
आशीर्वाद पाने के लिए एड़ी-चोटी का प्रयास जारी है। देखना है ग्राम देवता, नगर देवता, झोपड़ देवता, फुटपाथ देवता...किस पर प्रसन्न होते हैं। किस पर कृपा बरसाते हैं? इस मौसम में विकास की गति सबसे तीव्र आंकी गई है। वह अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए तत्पर, आंखें मूंदे, दौड़ता दिख रहा है। रफ्तार देख कुछ पल के लिए गरीबी के होश उड़ गए। बहुत परेशान और असुरक्षित महसूस करने लगी। चिंता लाज़िमी है। अपना स्थायी घर, यह विस्तृत साम्राज्य छोड़कर कहां जाएगी? अस्तित्व पर मंडराते संकट को देख सोचने लगी, ‘विकास का रथ घर्घर नाद करता आगे बढ़ रहा है। इस बार कहीं मुझे कुचल न दे!’
तभी अचानक सयाना अनुभव बिजली की तरह दिमाग में कौंधा, ‘डरना क्या? नया क्या है? हमेशा की तरह क्यों न कुछ देर के लिए कहीं छिप जाऊँ!’(सुमन सागर)



