आदिवासी संस्कृति का कोहेनूर है कोहिमा

21वीं सदी में भारत के पर्यटन नक्शे में जो शहर तेजी से उभरे हैं, उनमें एक नागालैंड की राजधानी कोहिमा भी है। उत्तर पूर्व के इस खूबसूरत शहर की आबादी कोई तीन से साढ़े तीन लाख के आसपास है, जिसमें ज्यादातर जनसंख्या आदिवासियों की है। आदिवासी पैसे कौड़ी में भले गरीब होते हों, लेकिन संस्कृति में उनके जितना धनी देश का कोई दूसरा समाज नहीं होता। इसलिए कहने की ज़रूरत नहीं है कि कोहिमा उत्तरपूर्व की संस्कृति का खजाना है। कोहिमा रंग-बिरंगी आदिवासी संस्कृति का गढ़ है और नि:संदेह ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों की भी यहां बहुतायत है। 
इन दिनों कोहिमा में पूरे साल पर्यटक रहते हैं, कोहिमा गांव दजुकोउ घाटी, जफ्फू चोटी, त्सेमिन्यु, खोलोमा गांव, तोफेमा टूरिस्ट गांव जैसे पर्यटन स्थल पूरे देश के लोगों के बीच लोकप्रिय हैं। कोहिमा की समुद्रतल से ऊंचाई 1261 मीटर या 4137 फीट है। जाहिर है इतने ऊंचे में होने के कारण यहां ज्यादातर समय मौसम ठंडा रहता है। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानियों जो नागालैंड पर हमला किया था उस हमले में मारे ये सैनिकों को यहां की गैलिशन हिल पर दफनाया गया था। इस हिल में सैनिकों को समर्पित 1421 समाधियां है, जहां स्थानीय निवासी नियमित रूप से श्रद्धांजलि देने जाते हैं। यह अब एक बड़ा पर्यटन स्थल भी है। इसी तरह कोहिमा चर्च भी यहां का एक खास पर्यटन स्थल है। माना जाता है कि यह एशिया में सबसे बड़ा चर्च है। इस चर्च में 3000 लोगों की बैठी सुविधा है।
मगर इतनी ऊंचाई बसे होने के बावजूद पर्यटकों की बहुतायत के कारण कोहिमा भी प्रदूषण का शिकार होने लगा है। जिसके चलते इस शहर को रात में और सुबह में देखना ही सबसे अच्छा है। दिन में पर्यटकों की भारी आवाजाही के कारण चारों तरफ धुआं ही धुआं दिखता है। इसलिए जब कोहिमा जाएं तो इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखें। 
कोहिमा में देखने और घूमने की सुंदर जगहों में एक सुपर मार्किट भी है। यह एक संकरी चढ़ाई वाली एक गली है, जिसमें कतार से दुकानें बनी हैं। यह विशाल कोहिमा लोकल ग्राउंड पर जाकर समाप्त होती है जहां पारंपरिक कुश्ती प्रतियोगिताएं आयोजित होती हैं। यहां आप सूखे जंगली सेब और रसभरी के पैकेट ले सकते हैं। यहां राज्य संग्रहालय भी है। 20 किलोमीटर दूर खोनोमा है जो लड़ाकू जनजाति का गांव है। इन्होंने 19वीं शताब्दी में ब्रिटिश सेना का कड़ा प्रतिरोध किया था। 
यहां एक स्मारक तथा खूबसूरत दिखने वाला एक चर्च है। जिसके चारों ओर लिली और बुरांश के फूलों की बहुतायत है। नागालैंड में कहीं भी आसमान में उड़ते हुए परिंदे नहीं दिखते वजह यह है कि ज्यादातर परिंदों को मारकर खा लिया गया है। यहां लोग पक्षियों के शिकार में बहुत माहिर हैं। पत्थर से निशाना लगाकार ये उड़ते हुए पक्षियों को गिरा देते हैं और खा जाते हैं। इसलिए नागालैंड का आसमान भी सिंगापुर की तरह हो पक्षी विहीन हो गया है।
कोहिमा में ठहरने के लिए होटलों की संख्या काफी सीमित है इसलिए पहले से बुकिंग कराना उचित रहता है। नागालैंड में औपचारिक रेस्तरांओं की कोई परंपरा नहीं है। कोहिमा के आसपास भी घूमने की कई जगहें हैं जिनमें से एक है तौफेमा गांव। इसे पर्यटकों का गांव भी कहा जाता है। अगर समय हो तो यहां ज़रूर एक रात बितानी चाहिए। यहां खूबसूरत कॉटेजों वाले परिसर है। जहां आमतौर पर बगैर अग्रिम बुकिंग के रूम नहीं मिलते, इसलिए इस बात का ध्यान रखे। इसके अलावा कोहिमा से कुछ किलोमीटर की दूरी पर एक छोटा सा खूबसूरत शहर मोकोकचंग है। शत्रुओं के सिरों को सुरक्षित रखने के लिए पहचाने जाने वाले आओ नगा यहीं के निवासी होते हैं। उंगमा और लोंगखुम गांव नजदीक हैं ओर सैर-सपाटे के लिए अच्छे जगह हैं।
यहां का नजदीकी हवाई अड्डा दीमापुर है। नजदीकी रेल स्टेशन दीमापुर, गुवाहाटी, कोलकाता-दिल्ली रेल मार्ग से जुड़ा है। गुवाहाटी जाने के लिए जोरहाट होते हुए नगांव तक के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग 37 पकड़ें। नगांव से दाएं मुड़कर राष्ट्रीय राजमार्ग 36 द्वारा हावराघाट, बोकाजान और दीमापुर होते हुए कोहिमा पहुंचें। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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