आराम हराम नहीं!

जहां तक हमारे हिंदुस्तान की बात है, पुराने ज़माने से राजा-महाराजा, नवाब, ज़मीनदार... आराम ़फर्माना पसंद करते थे। आज भी अधिकतर लोग हर काम इत्मीनान, आराम से करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं, तो इसमें कौन सी बुराई है? यह तो हमारी पुरानी, प्यारी परम्परा है, जिसे कई लोग आधुनिक युग में पूर्ण श्रृद्धा से, आंखें मूंदे निभाते चले आ रहे हैं। यहां हर छुट्टी के दिन, सुंदर दृष्य लगभग हर घर में देखने को मिलता है। विद्यार्थी हों या नौकरीपेशा, कारोबारी हों या किसान, लगभग सभी पुरूष गधे, घोड़े बेचकर सोना पसंद करते हैं। घर की महिलाएं उन्हें जगाने के लिए कई तिकड़में लड़ाती हैं। कई माएं छुट्टी के दिन अपने बेटों को जल्दी इसलिए नहीं उठाती हैं कि उठकर सीधे मोबाइल में घुस जाएगा। इससे बेहतर है, पड़ा रहने दो। इस मामले में विदेशी विद्वानों, विचारकों, बुद्धिजीवियों को दाद देनी चाहिए कि उन्होंने ‘नथिंग-डे’ की परंपरा शुरू की। अर्थात् उस दिन कुछ नहीं करना है। सारे दिन घर पर पड़े-पड़े सुस्ताना है। उस दिन बस खाना-पीना-सोना-अलसाना.. है। घरवाले भले चीखें-चिल्लाएं, उनकी एक नहीं सुननी। सारे संसार में ‘नथिंग-डे’ का शुभारंभ करने वालों की दूरदृष्टि, भाईचारे के आगे नतमस्तक हो जाता हूँ। कभी-कभी मेरी आंखें नम हो जाती हैं।
पता नहीं, चुस्त-दुरुस्त लोगों को भी सुस्त क्यों कहते हैं। अब लोगों को कौन समझाए कि ये मिले हुए काम में परिपूर्णता चाहते हैं, जोकि परिपक्वता की निशानी है। हर काम को सोच-समझकर, सकारात्मक-नकारात्मक दोनों दृष्टिकोण को देखकर-परखकर ही उस काम को अंजाम देते हैं। वे यही सोचते हैं कि जल्दबाज़ी से देरी भली। विवाह समारोह की बात करें तो आम लोगों को शिकायत होती है कि वर-वधू ‘रिसेप्शन’ में समय पर नहीं पहुंचते। एक तो देरी से आते हैं, ऊपर से फोटो खिंचवाने, विडियो शूटिंग में व्यस्त हो जाते हैं। आमंत्रितों की परवाह नहीं करते। अब इन्हें कौन समझा कि विवाह तो जीवन में एक बार ही होता है। सजने-संवरने-श्रृंगार करने में समय तो लगेगा ही। इन अविस्मरणीय पलों को समेटने, सहेजने से इनको दिक्कत नहीं होनी चाहिए। दुर्घटना से देरी भली, ऐसी समझाइश भी यही लोग देते हैं। 
कुछ लोग हर काम धीमे-धीमे करने में परम विश्वास करते हैं। ऐसे लोगों का तर्क होता है कि देर आए, दुरुस्त आए। तो भी ऐसे होनहार, बुद्धिमान व्यक्तियों को गलतफहमी पालकर निकम्मा, निठल्ला, नालायक, नकारा, नल्ला तक करार दिया जाता है। दरअसल बड़े बदनसीब होते हैं वो लोग, जिन्हें आराम करने का समय नहीं मिलता है। दिन-रात खटते रहते हैं। अपनी इच्छा पूरी न होने पर ही कुछ लोग इन आरामपसंद लोगों से जलते-कुड़ते हैं। उन्हें कामचोर तक कहने से नहीं चूकते। सारे अनुभवों का निचोड़ यही है कि ‘आराम हराम नहीं!’ 

-गांधी नगर, कोल्हापुर, महाराष्ट्र
मो. 9421216288

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