भूले-बिसरे हिटलर एवं बर्लिन की दीवार की बातें

पश्चिमी जर्मनी का हैमबर्ग मेरे लिए मेरे ननिहाल के शहर की भांति है। वहां मेरे हमउम्र तथा सहपाठी मामा स्वर्ण सिंह भंगू 1978 से 2022 में अंमित सांस लेने तक रहे हैं। वह वहां के रेलवे स्टेशन पर समाचार पत्र बेचने का काम करते थे। जब उनका सम्पर्क हैमबर्ग के अनाथ आश्रम में कार्य करती एंड्रिया नामक जर्मन युवती से हुआ, तो उसने मामा के तीनों बेटे हैमबर्ग के निवासी बना दिए। तीनों में से सबसे छोटा मनधीर सिंह उर्फ पिंकू एंड्रिया ने गोद लिया था। वैसे मामा के परिवार के पास चंडीगढ़ में भी एक घर है, जहां वह तथा उनके मित्र प्यारे समय-समय पर प्रवास करते रहते हैं। 
गत सप्ताह से मनधीर यहां आया हुआ है। मेरे हमउम्र मामा का छोटा बेटा जिसे उसके गोरे रंग के कारण हम पिंकू कहते हैं। उसके साथ उसकी मित्र भी है। उनकी आमद ने मुझे अपना ननिहाल गांव भी याद करवा दिया, जो खन्ना-संघोल मार्ग पर है और जहां रह कर मैंने अपनी प्राथमिक शिक्षा पूरी की थी। गांव का नाम कोटला बडला है। मनधीर की आमद ने हैमबर्ग तो क्या जर्मनी की बर्लिन की दीवार तथा हिटलर की मृत्यु भी याद करवा दी है। कथा में बहुत कुछ है।
मैंने पूर्वी तथा पश्चिमी जर्मनी को इतना स्वयं नहीं देखा जितना पिंकू को गोद लेने वाली एंड्रिया ने अपनी आत्मकथा के माध्यम से दिखाया है। तब बर्लिन की दीवार के इस पार पश्चिमी जर्मनी था और उस पार पूर्वी जर्मनी। इस दीवार पर जगह-जगह कंटीली बाड़ थी, पहरे थे और उल्लंघन करने वालों के लिए तोपें तथा बंदूकों की गोलियां। पश्चिम वालों के बताने के अनुसार पूर्वी जर्मनी के लोग पश्चिम में आने  के इच्छुक थे और 1961 में दीवार के निर्माण के पहले इक्का-दुक्का या काफिलों के रूप में आते ही रहते थे। पूर्वी जर्मनी सोवियत रूस का भाग होने के कारण सोवियत वालों ने इस दीवार का निर्माण इसलिए करवाया था कि उनके रहन-सहन तथा संक्कृति की भनक पश्चिम वालों को न लगे। एक दौरे के समय मुझे बर्लिन ले जाने वाला वुल्फगांग था। सड़क के दोनों ओर पूर्वी जर्मनी के वे खेत भी दिखाई दे रहे थे, जहां कम्युनिस्ट प्रबंधक साझी कृषि करते थे। वुल्फगांग इन खेतों को खस्म-निकुट्टे कह रहा था। वह पूंजीवादी प्रणाली तथा जीवन का वक्ता था। हम पश्चिम से पूर्व की तरफ जा रहे थे। बर्लिन के पश्चिमी भाग के घर तथा भवन शीशे वाले थे। पूर्वी जर्मनी के घर पत्थरों के बने हुए थे। सड़कें भी खुली तथा योजनाबद्ध। निश्चय ही पूर्वी तथा पश्चिमी जर्मनी के रहन-सहन में भारी अंतर था, परन्तु वुल्फगांग पूर्वी भवन निर्माण के पक्ष में कुछ भी कहने को तैयार नहीं था।
पूर्वी भाग में मेरा मेज़बान हैदराबाद में जन्मा असद अल्ला खान था,वामपंथी विचारधारा वाला। हमने दीवार का वह भाग भी देखा, जहां से पूर्वी जर्मनी के निवासी पश्चिमी जर्मनी में जाने के प्रयास में गोलियां का शिकार हुए थे। दीवार पर उनकी तस्वीरें लगी हुई थीं। असद अल्ला खान के कहने के अनुसार यह तस्वीरें पश्चिम वालों ने पूर्व वालों को बदनाम करने के लिए लगा रखी थीं। ताज़ा कहानी इतिहास का वह पृष्ठ है जिसमें हिटलर की आर्य समाजी धारणा ने अकेले जर्मनी को ही दो भागों में ही नहीं बांटा, अपितु समूचे पश्चिमी संसार को अस्त-वयस्त कर दिया। यह कथा जितनी रोचक है, उतनी कड़वी भी। इसका पता लगाने के लिए एंड्रिया तथा उसे जन्म देकर फैंक कर जाने वाली मां के जीवन बारे गहन अध्ययन की ज़रूरत है। 
एंड्रिया के साथ यह सब कुछ क्यों घटित हुआ? इस प्रश्न ने मुझे मानसिक रूप से बहुत परेशान किया। एंड्रिया ने मेरी बात मान कर अपने जीवन का पिछला सफर एक बार पुन: तय किया, परन्तु इस बार उन राहों पर मैं उसका हमसफर था। मैं चाहता था कि एंड्रिया की इस कहानी से आपको भी अवगत करवाऊं ताकि जो हम जान सकें कि ऐतिहासिक गलतियों का मूल्य मासूम लोगों का अपने जीनव से चुकाना पड़ता है। इस कथा का एक और पात्र मनधीर भी है। स्वर्ण मामा की जर्मन मित्र एंड्रिया के बच्चा नहीं था और न ही हो सकता था। यह बात भंगू परिवार को भी पता थी और एंड्रिया को भी, परन्तु एंड्रिया स्वर्ण के तीन बेटों में से किसी को भी गोद ले सकती थी। एंड्रिया ने मनधीर को ही पसंद किया था।  वह हैमबर्ग पहुंचा तो एंड्रिया वृद्ध आश्रम में काम करती थी। स्वर्ण के पास भी समाचार पत्र आदि बेचने का पूरे दिन का काम था। मनधीर को जर्मन भाषा नहीं आती थी। वह अचानक ही अकेला हो गया। मनधीर की मांग पर एंड्रिया ने उसके दूसरे भाइयों लवली तथा मोटी को जर्मनी बुलाने के लिए आवेदन किया। जर्मन सरकार ने स्वीकार नहीं किया, परन्तु एंड्रिया हठी महिला थी। वह जल्द हथियार डालने वाली नहीं थी। उसने अपने वकील के माध्यम से मनधीर के स्वस्थ्य का वास्ता दिया। एक बिगड़ा हुआ बच्चा जर्मन समाज के लिए हानिकारक हो सकता है, एंड्रिया के वकील ने नुक्ता निकाल लिया। वकील की दलील में बहुत दम था। एंड्रिया के वकील की दलील मानने के बिना सरकार के पास और कोई विकल्प नहीं था। 
मनधीर सिंह भंगू उर्फ पिंकू का चंडीगढ़ आना तो सिर्फ सबब है। वास्तव में मैं बर्लिन की गिर चुकी दीवार तथा हिटलर की बात करना चाहता हूं जिसे अंत में अपने कृत्यों का ज्ञान स्वयं ही हो गया था। उसने अपनी जान स्वयं ही लेने से एक दिन पहले कई वर्षों से मित्र चली आ रही ऐवा ब्राऊन से विवाह कर लिया था। विवाह के समय गयुबल्ज़ द्वारा लाए गए एक सरकारी अधिकारी, दो-तीन अन्य करीबियों तथा ब्लौंडी नामक अल्सेशन कुत्ते के अतिरिक्त कोई अन्य उपस्थित नहीं था। उनका हनीमून सिर्फ एक ही दिन का था। अगले दिन हिटलर ने सबसे पहले काम यह किया था कि अपने ब्लौंडी को खत्म करवाया। हर एक के साथ हाथ मिलाते हुए अपने कमरे की ओर चला गया। यह घटना 30 अप्रैल, 1945 की है। उसके कमरे में से शाम के सवा तीन बजे उसके चाहने वालों ने गोलियों की आवाज़ सुनी तो भीतर जाकर देखा कि हिटलर खून से लथ-पथ सोफे पर गिरा पड़ा है। पास ही ऐवा ब्राऊनी गिरी हुई है। स्पष्ट था कि हिटलर की आत्महत्या के बाद ऐवा ने ज़हर खाकर आत्महत्या कर ली थी। 
यही कुछ उसके वफादार मित्र/मंत्री गयुबल्क के परिवार ने किया था। दोनों पति-पत्नी अपने छह बच्चों को ज़हर के टीके लगा कर स्वयं सीढ़ियों से ऊपर चले गए, जहां पत्नी ने ज़हर का कैप्सूल खा लिया था तथा पति ने स्वयं को गोली मार ली थी। तब इस बात से हर कोई अवगत था कि हिटलर, गयुबल्क तथा बलौंडी एक ज्योति त्रिमूर्ति थे।  

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