संस्कृति और प्राचीन परम्परा का महापर्व है छठ पूजा

छठ एक अतिप्राचीन हिंदू पर्व है, जो भगवान सूर्य और छठी मईया (देवी) को समर्पित है। इस पर्व का मतलब प्रकृति, सूर्य और जीवन शक्ति के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना है तथा उनका आशीर्वाद हासिल करके पारिवारिक व सामाजिक समरसता को बढ़ावा देना है। वास्तव में सूर्य को प्रकृति का जीवनदाता माना जाता है। सूर्य हमें प्रकाश, ऊर्जा, स्वास्थ्य और जीवन से जुड़ी हर समृद्धि से नवाजता है। छठ पूजा वास्तव में सूर्य को अर्घ्य देने से शुरु होकर भगवान सूर्य और छठी मईया से आशीर्वाद प्राप्त करने का अनुष्ठान है। हजारों साल से सूर्य को जीवन का मूल स्रोत माना जाता रहा है। इसलिए दुनिया की हर संस्कृति में सूर्य के प्रति दैवीय सम्मान और निष्ठा देखी जाती है। भारत में छठ के सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व की बहुत लंबी परंपरा है। 
छठ पर्व विशेषकर बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में सैकड़ों सालों से मनाया जा रहा है। यह स्थानीय लोगों के बीच सहयोग, सामुदायिक भावना और आराधना की एकता का पर्व है। नदी किनारे सभी लोग एकत्र होकर पूजा करते हैं। एक दूसरे के साथ पारिवारिक संबंध विकसित करते हैं और प्रकृति के साथ अपने जुड़ाव की गहराई महसूस करते हैं। छठ पर्व दरअसल इसी सामाजिक तानेबाने का महापर्व है। अगर इसके इतिहास में जाएं तो छठ पर्व की जड़ें वैदिककाल तक जाती हैं। वास्तव में सूर्य उपासना की परंपरा ऋग्वेद में मौजूद हैं। सूर्य भगवान की स्तुति, उनकी उपासना और इन प्राचीन आदर्शों को छठ पर्व के व्यापक अनुष्ठान के रूप में सम्पन्न किया जाता है। 
महाभारत और दूसरे धार्मिक ग्रंथों में भी छठ पर्व या सूर्य अर्घ्य से संबंधित अनेक कहानियां मिलती हैं। माना जाता है कि द्रोपदी ने वनवास के समय छठ व्रत किया था और तभी से छठ की परंपरा विकसित हुई है। एक अन्य धार्मिक कथा के मुताबिक भगवान राम और सीता ने अयोध्या लौटने के बाद सूर्य को अर्घ्य दिया था। कुछ लोगों के मुताबिक छठ पर्व की परंपरा तभी से प्रचलित हुई। लेकिन इसके कई अन्य स्रोत इसे वैदिक विधि-विधानों से जोड़ते हैं। माना जाता है कि छठ पर्व पूजा, संयम और मानसिक शांति का प्रतीक है। यह पर्व मूलत: चार दिनों का अनुशासनात्मक अनुष्ठान है। पहले दिन छठ पूजा की तैयारी की जाती है। जैसे- छठ पर्व के एक दिन पहले से ही व्रत रहने वाले लोग तामसी भोजन और मांसाहार का पूर्णत: त्याग कर देते हैं। जिन्हें छठ व्रत रहना होता है, वह एक दिन पहले से ही प्याज, लहसुन आदि खाना छोड़ देते हैं। फिर अपने घर और उस घाट की सफाई करते हैं, जहां छठ पूजा में अर्घ्य दिया जाता है। पहले दिन को इस पूजा परंपरा में ‘नहाय-खाय’ का नाम दिया जाता है। इस दिन व्रती नदी या जलाशय में स्नान करते हैं और शुद्धता व संयम के साथ भोजन करते हैं। घर और पूजास्थल की सफाई की जाती है।
दूसरे दिन को इस पूजा परंपरा में ‘खरना’ नाम दिया गया है। इस पूरे दिन व्रत रखा जाता है। व्रती लोग पूरे दिन किसी तरह का कोई भोजन नहीं लेते। शाम होने के बाद ही व्रत तोड़ा जाता है। इस दिन खीर, फल और मिठाईयों आदि के प्रसाद बनते हैं, जो सूर्यास्त के अर्घ्य के बाद भोग लगाने के काम आते हैं। तीसरे दिन को ‘अस्ताचल अर्घ्य’ कहा जाता है। यह एक तरह से इस पर्व का मुख्य अनुष्ठान है। इस दिन व्रती और उसके अन्य साथी नदी या तालाब किनारे इकट्ठे होते हैं और सूर्यास्त के समय सूर्य को नदी या तालाब में घुसकर अर्घ्य देते हैं। इस संध्या समय में गान, स्तुति, भक्ति गीत और लोकगीत गाये जाने की परंपरा है। जबकि छठ पर्व का चौथा दिन ‘उषा अर्घ्य या उदय अर्घ्य’ का पर्व कहलाता है। चौथे दिन प्रात:काल सूर्य के उदय के समय व्रती लोग पुन: भगवान सूर्य को अर्घ्य देते हैं और इसके साथ ही व्रत समाप्त होता है।
इस तरह लोग पूजास्थल से घर लौटकर, घर-परिवार और अपनी जान-पहचान के लोगों के बीच प्रसाद का वितरण करते हैं। छठ पर्व इन अनुष्ठानों में संयम, पवित्रता और सामूहिकता का बहुत महत्व है। इस पूरे पर्व में प्रकृति-संबंध (जल, सूर्य) की पूजा होती है। छठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठानभर नहीं है बल्कि यह गहरे आध्यात्मिक जीवन से भी जुड़ा पर्व है। इसमें व्रत रखने को संयम और नियम से तीन दिन गुजारने होते हैं। पूजा के दौरान व्रती पानी और भोजन से दूर रहते हुए मानसिक और शारीरिक संयम का त्याग करता है। यह साधना मन को नियंत्रण में लाती है और आत्मसंयम की शक्ति को बढ़ाती है। इस पर्व के साथ प्रकृति और प्रकृति आश्रित जीवन भी भव्य परंपरा जुड़ती है। 
छठ पर्व हमें स्मरण दिलाता है कि हम सब प्रकृति की संतानें हैं और प्रकृति से ही जुड़े हुए हैं। सूर्य ऊर्जा, जल स्रोत, पृथ्वी की उपज, हमें जीवन देती है। हमें इन संसाधनों का आदर करना चाहिए और उन्हें स्वच्छ रखना चाहिए। छठ पूजा का मूल भाव कृतज्ञता है। जीवन देने वाले सूर्य और उसकी शक्ति के प्रति आभार प्रकट करना है। यह प्रयास हम अपनी अपेक्षाओं और रचनात्मक ऊर्जा के साथ पूरा करते हैं। छठ पर्व समुदाय और एकता का पर्व है। यह सामाजिक सहयोग को प्रोत्साहित करता है। लोग मिलकर घाट जाते हैं, प्रसाद बांटते हैं तथा एक दूसरे की सहायता करते हैं। कई लोग ये मानते हैं कि सूर्य को अर्घ्य देने और व्रत रखने से शरीर शुद्ध होता है तथा शरीर में सभी तरह की शारीरिक व्याधियां दूर होती हैं। यह स्वास्थ्य को सुधारने, पाचनशक्ति को बेहतर बनाने और शारीरिक शुद्धता का पर्व है। 
माना जाता है कि यह पर्व करने से लोगों को शारीरिक व मानसिक ताजगी का एहसास होता है। अगर इस पर्व को इसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से देखा जाए, तो यह न सिर्फ प्राचीन परंपराओं को जीवित रखने का पर्व ही नहीं है बल्कि यह जीवन में संयम, श्रद्धा, एकता और कृतज्ञता के मूल्यों को पुनर्जीवित करता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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