प्रसिद्ध व सम्मानित कलाकार थे पंकज धीर 

बी.आर. चोपड़ा जब अपना कालजयी धारावाहिक ‘महाभारत’ (1988) बना रहे थे, तो उन्होंने अर्जुन की भूमिका पंकज धीर को ऑफर की थी। पंकज ने यह पेशकश इसलिए ठुकरा दी क्योंकि वह अपनी मूंछें साफ नहीं कराना चाहते थे, जोकि ‘अर्जुन’ बनने के लिए आवश्यक थी। इसके छह माह बाद पंकज को करण की भूमिका ऑफर की गई, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया क्योंकि अब मूंछें साफ करने की ज़रूरत नहीं थी। पंकज ने करण के रूप में प्रभावित किया और वह हमेशा के लिए सिने प्रशंसकों की यादों में बस गये। पंकज का कैंसर के कारण 15 अक्तूबर 2025 को मुंबई में निधन हो गया। वह 68 वर्ष के थे। हालांकि उनके जाने का सभी को दु:ख है, लेकिन कम लोग इस बात को जानते हैं कि उनके परिवार को बहुत अधिक भावनात्मक व आर्थिक कठिनाइयों से गुज़रना पड़ा था और वह भी इसलिए कि उनके पिता ने एक हीरोइन से किये गये अपने वायदे को निभाया था।
बहरहाल, पंकज की ख्याति से बहुत पहले उनके निर्माता निर्देशक पिता सीएल धीर जुनूनी फिल्मकार थे, जिन्होंने वी शांताराम के साथ भी काम किया था और अनेक सफल फिल्मों जैसे ‘बहू बेटी’, ‘आलिंगन’ आदि का निर्देशन किया था। 1960 के दशक में सीएल धीर ‘रानो’ नामक फिल्म के सह-निर्माता थे, जिसमें धर्मेन्द्र व गीता बाली की प्रमुख भूमिकाएं थीं। दोनों धीर व गीता बाली ने इस फिल्म में बराबर-बराबर पैसों का निवेश किया था। जब गीता बाली के मात्र तीन दिन के सीन शूट होने से रह गये थे तो वह पंजाब में स्मालपॉक्स से संक्रमित हो गईं और फलस्वरूप गंभीर रूप से बीमार हो गईं। गीता बाली जब अपनी मृत्यु शैय्या पर थीं तो उन्होंने धीर से एक दिली आग्रह किया कि उनके मरने के बाद फिल्म ‘रानो’ को न तो कभी पूरा करना और न ही रिलीज़ करना। धीर ने वायदा कर लिया और उसे उस समय भी निभाया जब बॉलीवुड के दिग्गज दिलीप कुमार व मीना कुमारी ने उन्हें फिल्म मुकम्मल करने व रिलीज़ करने के लिए समझाने का प्रयास भी किया। 
दिलीप कुमार ने तो यहां तक ऑफर किया कि वह स्वयं स्क्रीन पर आकर दर्शकों से आग्रह करेंगे कि मीना कुमारी को गीता बाली की भूमिका में स्वीकार कर लिया जाये। धीर नहीं माने, जबकि वह अच्छी तरह से जानते थे कि उन्होंने जो पैसा फिल्म में निवेश किया है, वह पूरी तरह से डूब जायेगा। नतीजतन धीर परिवार को गंभीर आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और पंकज, जो उस समय किशोर ही थे, को परिवार की मदद करने के लिए काम करना पड़ा। जीवन की इन चुनौतियों ने पंकज को एक अच्छा व समर्पित कलाकार बना दिया और समय के साथ उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनायी और टेलीविजन व फिल्मों के सम्मानित एक्टर बन गये। धीर परिवार की जड़ें कसूर में हैं, जोकि लाहौर के दक्षिण में एक कस्बा है। लेकिन पंकज का जन्म (1956) व परवरिश बांद्रा, मुंबई में हुई। करण की भूमिका निभाते हुए पंकज को संस्कृत आधारित कठिन हिंदी के डायलॉग बोलने में मुश्किल हो रही थी। उन्होंने डॉ. राही मासूम रज़ा की मदद ली, जिन्होंने ‘महाभारत’ धारावाहिक को लिखा था। राही ने उन्हें सुझाव दिया कि वह रोज़ाना ज़ोर ज़ोर से हिंदी के किसी दैनिक समाचार पत्र को पढ़ा करें। 
पंकज ने करण की यादगार भूमिका अदा की और दर्शकों की हमदर्दी भी बटोरी। इस भूमिका ने पंकज को हर वो चीज़ दी, जिसकी तमन्ना एक एक्टर करता है- नाम, शुहरत, पैसा, इज़्ज़त व स्थायी करियर। जब सीरियल में ‘करण’ की मौत होती है, तो बस्तर (जो उस समय मध्य प्रदेश में था) में अनेक लोगों ने अपने सिर का मुंडन कराया। 
तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के आग्रह पर मैं बस्तर गया था, दुखी लोगों को दिलासा देने के लिए और उन्हें यकीन दिलाने के लिए कि मैं अभी जिंदा हूं। यह ऐसी बात थी, जिसे देखने के बाद ही कोई विश्वास कर सकता है। अधिकतर लोग मेरा नाम नहीं जानते, लेकिन करण के रूप में मुझे पहचानते हैं। आज भी पाठ्॔पुस्तकों में करण के रूप में मेरी ही तस्वीर प्रकाशित की जाती है।’
इस भूमिका ने पंकज के लिए टीवी व फिल्मों के दरवाज़े खोल दिये। उन्होंने लगभग 100 टीवी शो व फिल्में कीं। उनका एक अन्य यादगार रोल ‘चन्द्रकान्ता’ (1994) में राजा शिवदत्त का था। उनकी दो यादगार फिल्में थीं बॉबी देओल की ‘सोल्जर’ (1998) और शाहरुख़ खान की ‘बादशाह’ (1999), जिसमें वह एक भ्रष्ट सुरक्षा प्रमुख के रूप में थे। पंकज को एक्टिंग को प्रोफेशन मजबूरी में बनाना पड़ा, जैसा कि ऊपर अधूरी फिल्म ‘रानो’ और उनके पिता के वायदे के सिलसिले में बताया जा चुका है। पंकज निर्देशक बनने की ट्रेनिंग ले रहे थे और इस कारण उन्होंने ‘बेनाम’ (1974) व ‘अदालत’ (1976) में नरेंद्र बेदी के असिस्टेंट के रूप में काम किया। उन्होंने एडिटिंग भी सीखी। लेकिन जब एक्टर सारिका, जो उस समय फिल्म ‘तितली’ का निर्माण भी कर रही थीं, ने पंकज को साइनिंग अमाउंट के साथ रोल ऑफर किया तो वह इंकार न कर सके। यह फिल्म भी बीच में ही रुक गई थी।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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