गौ-पालक भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है गोपाष्टमी व्रत
29 अक्तूबर गोपाष्टमी पर विशेष
गोपाष्टमी का व्रत पूर्ण रूप से गौ पालक रूपधारी भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है। यह व्रत न केवल धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पुण्यदायी माना गया है बल्कि गौ सेवा और गौ-समृद्धि की भावना को भी गहराई से प्रकट करता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को गोपाष्टमी कहा जाता है। यह वही दिन है जब बाल श्रीकृष्ण ने पहली बार नंदबाबा की गायों को चराने जाना शुरु किया था। इसलिए यह दिन गौ पालक रूप में श्रीकृष्ण के प्रथम दिन का उत्सव है। पुराणों के मुताबिक इस दिन गौ और गौवत्स की पूजा कर श्रीकृष्ण का स्मरण करना परम फलदायक होता है। यह व्रत गौ माता और गौ पालक कृष्ण दोनों की आराधना का दिन है।
वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण गौ माता को ईश्वर का रूप मानते थे। इसलिए इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के भक्त विशेष रूप से गायों को स्नान कराते हैं, अपने हाथों से उन्हें चारा खिलाते हैं, उन्हें फूलों और कपड़ों से सजाते हैं तथा उनकी आरती, तिलक और परिक्रमा करते हैं। माना जाता है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण को माता यशोदा ने गौ चराने के लिए विदा किया। इसलिए इस दिन माताएं अपनी संतान की दीर्घायु और उनमें भगवान श्रीकृष्ण जैसे सद्गुणों के लिए गोपाष्टमी का व्रत रखती हैं। गोपाष्टमी व्रत करने के लिए प्रात: स्नान कर पवित्र वस्त्र धारण किये जाते हैं। घर या गौशाला में श्रीकृष्ण और गौ माता की मूर्ति स्थापित की जाती है। दूध, दही, घी, गुड़, अक्षत और फूलों से गौ माता की पूजा की जाती है तथा इस दिन गौ दान देने की भी परम्परा है। भक्तगण गोपाष्टमी व्रत के दौरान श्रीकृष्ण के बाल रूप की आरती करके गोविंद, गोपाल, केशव नाम का जप करते हैं। साथ ही सांयकाल भजन, कीर्तन के साथ व्रत का समापन करते हैं।
इस दिन गौ सेवा और गौ दान का विशेष पुण्य माना गया है। कहा गया है कि जो व्यक्ति इस दिन गौ माता और भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करता है, उसे सात जन्मों के पापों से मुक्ति मिल जाती है। यह व्रत सौभाग्य, समृद्धि, अरोग्य और मोक्षदायी होता है। भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के अलावा आम लोगाें के बीच भी इस दिन गोपाष्टमी व्रत विशेष रूप से मथुरा, वृंदावन, गोकुल, बरसाना, हरिद्वार, राजस्थान और गुजरात में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। गौशालाओं में इस दिन गौ पूजन महोत्सव का आयोजन किया जाता है और गांवों में छोटे बच्चे गोपाला बनकर झांकियां निकालते हैं। महिलाएं सात बार गौ माताओं की परिक्रमा करती हैं और उनसे अपने परिवार की रक्षा व सुरक्षा का आशीर्वाद मांगती हैं। वास्तव में गोपाष्टमी व्रत हमें यह सीख देता है कि गाय केवल पशु नहीं है बल्कि ये भारतीय जीवन के आर्थिक और आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक केंद्र का प्रतीक है। यह व्रत करुणा, संरक्षण व कृतज्ञता के भाव को जगाता है, वही भाव जो श्रीकृष्ण के गोपाल स्वरूप में उनके भक्तों को झलकता है।
गोपाष्टमी का जितना धार्मिक महत्व है उससे कहीं ज्यादा इसका सांस्कृतिक महत्व है। गोपाष्टमी भारतीय संस्कृति के उस मूलभाव को पुन:जीवित करती है, जिसमें गाय को गौरव और समृद्धि का प्रतीक माना गया है। ग्रामीण भारत में यह दिन कृषि और पशुधन की समृद्धि का पर्व है। यह त्योहार गांव, गौशालाओं और गौ भक्तों में विशेष उत्साह जगाता है। इस दिन बच्चे और महिलाएं गायों को स्नान कराती हैं, उन्हें सजाती हैं और उनके सींगों पर चांदी या पीतल की घंटियां बांधती हैं तथा माथे पर सिंदूर और हल्दी का तिलक लगाती हैं, इसके बाद गौ पूजन और श्रीकृष्ण की आराधना की जाती है। वास्तव में गोवर्धन पूजा के समान ही इस दिन गौ सेवा का पुण्यफल बताया गया है।
जहां तक गोपाष्टमी को पर्व के रूप में मनाये जाने की परंपरा का सवाल है तो इसे विशेष रूप से उत्तर और पश्चिम भारत में सबसे अधिक भक्ति, भाव और उत्साह के साथ मनाया जाता है। मथुरा, वृंदावन, गोकुल, नंदगांव और बरसाना के अलावा गोपाष्टमी गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा और बिहार राज्य में भी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाये जाते हैं। इस दिन गौशालाओं में गऊओं को स्नान कराया जाता है। लोग गौशालाओं को दान देते हैं और गौशालाओं में भंडारों का भी आयोजन किया जाता है, जिसमें गऊओं के लिए हरे चारे के साथ गौ भक्तों के लिए वैसे ही प्रसाद भंडारा होता है जैसे नवरात्र या दूसरे विशेष धार्मिक अवसरों पर भंडारा होता है।
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