बिहार चुनाव : आखिरकार तेजस्वी के नाम पर लग गई मुहर

आखिरकार महागठबंधन ने बिहार में तेजस्वी यादव को अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया है। इस फैसले पर पहुंचने के लिए काफी लंबी बातचीत और जद्दोजहद चली और अंतत: महागठबंधन के घटक दलों ने तेजस्वी के नाम पर मुहर लगाकर एकजुटता का संदेश देने की कोशिश की है। यह घोषणा पटना में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रैंस में की गई जहां गठबंधन के सभी प्रमुख चेहरे मौजूद थे। हालांकि कांग्रेस और राजद के नेताओं पर सबसे ज्यादा ध्यान था, क्योंकि सीट शेयरिंग और मुख्यमंत्री उम्मीदवार का असली पेंच इन्हीं दोनों दलों के बीच फंसा था। इस देरी से महागठबंधन में असमंजस बढ़ रहा था। तेजस्वी ने 2020 के चुनावों में भी गठबंधन का नेतृत्व किया था। वह जानते थे कि कांग्रेस कुछ अतिरिक्त सीटों के लिए उनके मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा टाल कर दबाव की रणनीति अपना रही है।
कांग्रेस के तत्कालीन बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरु का स्पष्ट मानना था कि पार्टी को केवल तीन प्रकार की सीटें मिलनी चाहिए। जहां पार्टी के विधायक हैं, ऐसी सीटें जहां पार्टी 2020 में दूसरे स्थान पर रही थी और वह निर्वाचन क्षेत्र जहां पार्टी को पिछली बार 20,000 से अधिक वोट मिले थे।
हालांकि तेजस्वी कांग्रेस और उप-मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी से खींचतान और दबावों के बावजूद अपनी प्रधानता फिर से स्थापित करने में सफल रहे। पांच साल पहले तेजस्वी ने गठबंधन को 110 सीटों पर पहुंचाया था, जो बहुमत से केवल 12 सीटें कम थी। राजद तब 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। पार्टी के भीतरी सूत्रों के अनुसार तेजस्वी ने शपथ ग्रहण समारोह के लिए अपनी शेरवानी भी तैयार कर ली थी, लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी उनसे दूर रही। राजद के भीतरी सूत्रों का कहना है कि अनुभव ने तेजस्वी को एक नेता के रूप में विकसित होने में मदद की और वह अधिक परिपक्व और संयमित हो गए। हालांकि तेजस्वी की पार्टी के सामाजिक आधार का विस्तार करने और ‘माई’ (मुसलमानों और यादवों का वोट बेस) की छवि को तोड़ने और इसे ‘ए’ से ‘जेड’ पार्टी में बदलने की कोशिश कामयाब नहीं हुई है। आरक्षित सीटों को छोड़कर और जहां मुस्लिम उम्मीदवारों के नाम हैं, 104 निर्वाचन क्षेत्रों में राजद ने 52 यादवों को मैदान में उतारा है।
पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 70 सीटें मिली थीं लेकिन जीत सिर्फ 19 पर मिली थी। इसलिए, पार्टी इस बार ज्यादा और जीतने की संभावना वाली सीटें चाहती थी। इस बातचीत में काफी वक्त लग गया और अगर अब तेजस्वी के नाम पर एकता प्रदर्शित नहीं की जाती तो शायद महागठबंधन के लिए देर हो जाती। हालांकि कुछ सीटों पर ‘फ्रेंडली फाइट’ यानी आपसी सहमति से चुनाव लड़ने की संभावना अब भी बनी हुई है। अभी की स्थिति के अनुसार बिहार की दौड़ में तेजस्वी ही एकमात्र आधिकारिक रूप से नामित मुख्यमंत्री उम्मीदवार हैं। 
एनडीए के नेता कहते हैं कि नतीजों के बाद विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री तय होगा। अपने 20 साल के कार्यकाल में नितीश ने जो भी काम किया है, उसके बावजूद तेजस्वी यह दावा कर सकते हैं कि उन्होंने जन सुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर के साथ मिलकर इन चुनावों की कहानी नौकरियों और रोज़गार के इर्द-गिर्द गढ़ी है।
तेजस्वी ने जहां गरीबों और किसानों के लिए 200 यूनिट मुफ्त बिजली का वादा किया है, वहीं नितीश सरकार ने घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने की घोषणा की है। इसके अलावा तेजस्वी ने ‘मां-बहन मान’ योजना लाने का वादा भी किया है जिसके तहत महिलाओं को हर महीने 2,500 रुपये मिलेंगे। इसी के चलते एनडीए सरकार को मुख्यमंत्री महिला रोज़गार योजना शुरू करनी पड़ी जिसके तहत 1.21 करोड़ महिलाओं को 10-10 हज़ार रुपये दिए गए। एक राजद नेता ने कहा, ‘तेजस्वी नितीश के खिलाफ  खुलकर अपनी बात रख सकते हैं। उनका दावा है कि उन्होंने महागठबंधन का खाका पेश किया है जबकि एनडीए ने कोई एजेंडा तय नहीं किया है और बस चंद खैरातों पर निर्भर है। तेजस्वी ने लड़कियों के लिए एक समग्र योजना और 85 लाख जीविका कार्यकर्ताओं को सरकारी नौकरी देने और हर परिवार को एक नौकरी देने के अलावा 5 लाख रुपये का बीमा कवर देने का वादा किया है।’
तेजस्वी ने आईआरसीटीसी मामले में अपने और अपने माता-पिता के खिलाफ  हाल ही में लगाए गए आरोपों के बावजूद दृढ़ता दिखाई है जिसे उन्होंने भाजपा द्वारा राजनीतिक प्रतिशोध का हिस्सा बताया है। पारिवारिक मोर्चे पर तेजस्वी के सामने कोई चुनौती नहीं है। बड़े भाई तेज प्रताप अपनी राह खुद तय कर रहे हैं और पाटलिपुत्र से सांसद बड़ी बहन मीसा भारती राष्ट्रीय राजनीति में स्थापित हो रही हैं। ऐसे में पार्टी के मामलों में तेजस्वी ही सारे फैसले लेते हैं। महागठबंधन के नंबर एक नेता के रूप में तेजस्वी की पुष्टि 15 साल बाद हुई है, जब उन्होंने पटना स्थित राजद कार्यालय में मीडिया के सामने आकर राजनीति में आने के अपने इरादे के संकेत दिए थे। तेजस्वी ने आखिरकार 2013 में राजनीति में कदम रखा और दो साल बाद वैशाली ज़िले की राघोपुर विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे। इसके बाद उनकी राजनीतिक तरक्की तेज़ी से हुई और पह नितीश सरकार में उप-मुख्यमंत्री बने। उस 17 महीने के कार्यकाल में उन्होंने सड़क निर्माण मंत्री के रूप में उनकी काफी चर्चा हुई।
हालांकि नितीश द्वारा कई बार पार्टी बदलने के बाद तेजस्वी पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों का हवाला देते हुए सरकार गिर गई, लेकिन बिहार की राजनीति में आरजेडी के इस उत्तराधिकारी के उदय पर कोई असर नहीं पड़ा। विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में उन्होंने नितीश सरकार के खिलाफ  आक्रामक तरीके से अपनी पार्टी का नेतृत्व किया। 2020 में तेजस्वी के नेतृत्व में महागठबंधन के प्रभावशाली प्रदर्शन ने नौकरियों को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने की उनकी रणनीति की बदौलत राज्य में प्रमुख विपक्षी नेता के रूप में उनकी जगह पक्की कर दी। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता किस वादे पर भरोसा करती है और बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन बनता है। (युवराज)

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