खतरनाक है बढ़ता प्रदूषण

दिवाली के त्यौहार से पहले उत्तर भारत में समूचे रूप से प्रदूषण की बेहद खराब स्थिति के दृष्टिगत, देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली और इसके साथ के शहरों (एन.सी.आर.) में पटाखे चलाने संबंधी लम्बे विचार-विमर्श और अलग-अलग पक्षों की पेश की गई रिपोर्टों के बाद, बड़ी हिचकिचाहट दिखाते हुए यह निर्देश जारी किया था कि दिवाली वाले दिन अभिप्राय 20 व 21 अक्तूबर को सुबह 6 बजे से 7 बजे तक और सायं को 8 बजे से 10 बजे तक ग्रीन पटाखे चलाए जा सकते हैं। यह माना जाता है कि प्रत्येक तरह के ग्रीन पटाखों से हवा में प्रदूषण कम फैलता है।
इस संबंध में सर्वोच्च अदालत ने केन्द्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड को भी पूरा ध्यान देने का निर्देश दिया था, परन्तु देश की राजधानी में इन दिनों में जिस तरह इन निर्देशों की धज्जियां उड़ाई गईं, वे बेहद हैरान और निराश करने वाली बात है। इसके बाद दिल्ली ही नहीं, अपितु समूचे उत्तर भारत में हर तरफ प्रदूषित हवा फैली दिखाई दी, जिसमें पहले ही अनेक तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर रहे मनुष्य को सांस लेने के लिए विवश होना पड़ रहा है। जहां तक हवा में घुले इन ज़हरीले तत्वों का संबंध है इस संबंध में अलग-अलग शहरों और कस्बों से प्राप्त किए गए आंकड़े बेहद चिन्ता पैदा करने वाले हैं। ज्यादातर शहरों में हवा की दूषित गुणवत्ता 271 से लेकर 297 तक दर्ज की गई है, जबकि हवा का गुणवत्ता इंडैक्स 50 होना चाहिए। यह सोचना मुश्किल प्रतीत होता है कि लोग ऐसी धुएं वाली हवा में सांस कैसे लेते रहे हैं? हालत यह थी कि दिल्ली और उसके आस-पास शहरों में 2 दिन जमकर पटाखे चलाए गए और आतिशबाज़ी की गई। ग्रीन पटाखे चलाने के सर्वोच्च अदालत के निर्देशों को पूरी तरह अनदेखा किया गया और प्रत्येक तरह के ज़हरीले पटाखों का इस्तेमाल किया गया। हवा में प्रदूषण वाहनों से, धूल से, निर्माण, और फसलों के अवशेष को जलाने से लगातार बढ़ता रहता है, परन्तु जहां तक दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में प्रदूषण की बात है इसमें कृषि अवशेषों का हिस्सा मात्र 8 प्रतिशत ही होता है। जहां तक पंजाब का संबंध है  प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार अब तक पराली को आग लगाने की 353 से अधिक घटनाएं घटित हो चुकी हैं। पिछले 10 दिनों में खेतों में आग लगने की घटनाओं में तीन गुणा वृद्धि दर्ज की गई है। 15 सितम्बर से 20 अक्तूबर तक ऐसी 353 घटनाएं सामने आई हैं। इससे पहले प्रदेश सरकार ने लोगों को सुचेत करने के लिए प्रत्येक स्थान पर व्यापक स्तर पर प्रचार भी किया था।
पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने सरकार के निर्देशों पर अनेक टीमें बनाई थीं। पिछले वर्षों की सूचियों को आधार बना कर क्षेत्रों की निशानदेही भी कर ली थी। सैटेलाइट द्वारा भी निगरानी रखने का यत्न किया गया था। इसके लिए ज़िम्मेदार किसानों की ज़मीनों की लाल एंट्रियां करने और भारी ज़ुर्माने लगाने के कड़े प्रबन्ध भी किए गए थे, परन्तु इसके बावजूद अभी भी ऐसा कुछ घटित होना यह ज़रूर दर्शाता है कि अभी इस क्षेत्र में सचेत होकर बहुत कुछ करने की ज़रूरत है। इस संबंध में राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में विचरण करते नेताओं और पर्यावरण प्रेमियों को भी एक लहर चलाने की ज़रूरत होगी, जो समाज में इसके प्रति जागरुकता भी पैदा करें और एक ऐसा कानून भी बना सकें, जो नकारात्मक क्रियान्वयन को नकेल डालने में पूरा सहायक हो सके। नि:संदेह समय के व्यतीत होने से समाज सचेत ज़रूर हो रहा है परन्तु अभी भी इस पक्ष से लम्बा रास्ता तय किए जाने की ज़रूरत है, जो लोगों के मन में ऐसे सकारात्मक संदेशों को परिपक्व करने के समर्थ हो सके।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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