किसानों के उलझे मामलों की ओर ध्यान दे सरकार

कृषि रोज़गार का सबसे बड़ा साधन है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 70 प्रतिशत आबादी को कृषि रोज़गार उपलब्ध करती है। आय बढ़ाने के लिए कृषि व्यवसाय में मुनाफा बढ़ाना पड़ेगा। पंजाब की आर्थिकता का आधार तो है ही कृषि एवं फसलों का मंडीकरण। फसलों की कीमतें एवं उत्पादन तथा हरे-भरे खेत ही इसकी आर्थिकता का केन्द्र हैं। यदि एक वर्ष फसल खराब हो जाए तो आम किसानों में मंदी का माहौल बन जाता है। इस वर्ष तो भारी बारिश, बाढ़, चाइनीज़ वायरस (पौधों के बौनेपन की बीमारी), झुलस रोग तथा हल्दी रोग ने खरीफ की मुख्य फसल धान को बुरी तरह प्रभावित किया है। बासमती का और भी नुकसान हुआ है। इसकी गुणवत्ता खराब हो गई है, जिस कारण इसकी कीमत किसानों को लाभदायक नहीं मिल रही। 
वैज्ञानिकों को किसानों की मदद करने की ज़रूरत है कि वे उन्हें रबी विशेषकर गेहूं जो सीज़न की मुख्य फसल है, से अधिक से अधिक लाभ लेने के लिए अनुसंधान करके दिशा दें। उन्हें सही तरह बताएं कि बिजाई के लिए किस समय कौन-सी किस्म लगाएं ताकि उन्हें अधिक से अधिक उत्पादन की प्राप्ति हो और लाभ मिले। मंडी में धान की आमद का 185 लाख टन अनुमान लगाया जा रहा था, जिसे कम करके 170-175 लाख टन कर दिया गया। इसमें से अभी मुश्किल से 25-30 प्रतिशत धान ही मंडियों में बिकने के लिए आया है। धान की कटाई देरी से होने के कारण तथा फसल अभी खेतों में खड़ी होने के कारण गेहूं की बिजाई भी पिछेती पड़ जाएगी, जिस कारण उत्पादन कम होगा। वैज्ञानिकों को इसलिए भी ज़रूरी जानकारी किसानों को देने की ज़रूरत है।
अनुसंधान के लिए धान तथा गेहूं के अतिरिक्त तेल बीजों, दालों आदि के क्षेत्रों को मज़बूत किए जाने की ज़रूरत तो है ही, परन्तु इस वर्ष वैज्ञानिकों को गेहूं की काश्त की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए, ताकि जहां तक हो सके देर से बिजाई होने के कारण या ज़मीन की उपजाऊ शक्ति गाद आदि में बिछ जाने के कारण कम होने से प्रति हैक्टेयर उत्पादन प्रभावित न हो। जो किसान अब धान की कटाई के बाद गेहूं की बिजाई करेंगे, वे ज़रूरत तथा पी.ए.यू. की सिफारिशों से हट कर गेहूं के लिए यूरिया और डी.ए.पी. डालेंगे। यूरिया के चार-चार, पांच-पांच थैले डाल रहे हैं, जबकि सिफारिश दो थैलों से थोड़ी-सी मात्रा अधिक की, की गई है। नाइट्रोजन यूरिया अधिक डालने से वास्तव में कई समस्याएं आती हैं। कीड़े-मकौड़े तथा बीमारियों का फसल को सामना करना पड़ता है। किसानों को नदीननाशकों तथा कीटनाशकों का अधिक छिड़काव करना पड़ता है, जिन पर अधिक खर्च आता है।
किसानों में अधिक छोटे तथा मध्यम दर्जे के किसान हैं। इनकी आय बढ़ाने के लिए मंडीकरण में भी सुधार लाने की ज़रूरत है। एक तो उत्पादन कम और दूसरा किसानों को मंडियों में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहा, जिससे उनकी हालत और दयनीय होती जा रही है। गैर-कृषि क्षेत्र भी किसानों की आय को प्रभावित करता है। इसलिए आय का फैलाव कृषि तथा गैर-कृषि क्षेत्र दोनों में होना चाहिए। गैर-कृषि क्षेत्र में यदि आय बढ़ेगी तो कृषि पदार्थों की मांग बढ़ेगी तथा किसानों को उनकी उपज की उचित कीमत मिलेगी। रहन-सहन का स्तर बढ़ने के कारण अनाज की खपत कम हो गई है और सब्ज़ियों, फलों, मछली, अंडों तथा डेयरी पदार्थों की मांग बढ़ गई है। कृषि पदार्थों की उचित कीमत किसानों को मिले, इसके लिए प्रोसैसिंग सुविधाओं का विकास भी होना आवश्यक है। कृषि में सरकारी लागत ज़रूरत के अनुसार नहीं, इसलिए निजी क्षेत्र में लागत बढ़ाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। निजी क्षेत्र में लागत तभी बढ़ेगी, यदि कृषि आधारित उद्योगों की सुविधाओं में सुधार आएगा। अनाज का उत्पादन लगभग प्रत्येक देश में बढ़ रहा है। आयात तथा निर्यात का दायरा बहुत सीमित है, क्योंकि दूसरे देशों के उत्पादन में भी वृद्धि हो रही है। उनकी गेहूं, धान की अंतर्राष्ट्रीय कीमत घरेलू एम.एस.पी. से कम है। बासमती का निर्यात बढ़ाने की काफी सम्भावना है, परन्तु बासमती की गुणवत्ता पर ज़ोर देना ज़रूरी है। 
भंडारन की सुविधा न होने के कारण अनाज का ज़्यादातर हिस्सा खराब हो जाता है, जो उचित प्रबंधन से ही बचाया जा सकता है। चाहे भारत विश्व का चौथा बड़ा कृषि कीटनाशक निर्माता है और इन्हें निर्यात भी करता है, परन्तु कीटनाशकों का इस्तेमाल यहां दूसरे देशों के मुकाबले सूझ-बूझ तथा सही मात्रा में नहीं किया जाता। इसलिए किसानों को योग्य नेतृत्व तथा प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। कृषि प्रसार सेवा तथा पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना को अपनी सेवाएं निपुण बनाकर इनमें वृद्धि करनी चाहिए। कीटनाशकों के इस्तेमाल संबंधी सोच में सुधार लाने की ज़रूरत है। खरीफ की मुख्य फसल धान और बासमती के नुकसान के कारण किसान मुश्किल स्थिति में हैं। सरकार को इस तरफ विशेष ध्यान देकर किसानों के नुकसान की पूर्ति करनी चाहिए और पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना को मज़बूत करके रबी की फसलों, विशेषकर गेहूं के बेहतर उत्पादन के लिए किसानों का उचित नेतृत्व करने की ज़रूरत है। 

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