नशे की दलदल में कैसे फंस गया केरल ?

केरल का नाम आते ही जेहन में सबसे पहले शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र आते हैं क्योंकि वामपंथी मीडिया ने इन दोनों को हमेशा आदर्श की तरह पेश किया है, लेकिन क्या अब केरल वाकई एक आदर्श राज्य है? असल में सिर्फ  पर्दे के पीछे ही नहीं खुले तौर पर भी केरल ड्रग्स के संकट से जूझ रहा है। शहरों से लेकर गांवों तक केरल का कोई कोना इस समस्या से अछूता नहीं है। ड्रग्स के कारण सैकड़ों ज़िंदगियां तबाह हो चुकी हैं और अनगिनत परिवार टूट गए हैं।
आबादी के लिहाज़ से देखें तो केरल में हर एक लाख लोगों पर मादक पदार्थों से जुड़े 78 केस सामने आए हैं और यह दर पूरे देश में सबसे अधिक है। राज्य के सभी 14 ज़िले इस संकट से प्रभावित हैं। 2025 के शुरुआती दो महीनों में ही केरल में 30 हत्याएं हुईं, जिनमें से आधी ड्रग्स से जुड़ी थीं।
    राज्यसभा में 12 मार्च, 2025 को पेश किए गए आँकड़ों के अनुसार पिछले तीन सालों से एनडीपीएस एक्ट के तहत सबसे अधिक मामले केरल में ही दर्ज हो रहे हैं। साल 2022 में 26,918 केस, 2023 में 30,715 केस और 2024 में 27,701 केस दर्ज हुए। इसकी तुलना में पंजाब में यही आंकड़े 12,423, 11,564 और 9,025 रहे। महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में भी मामले इतने नहीं हैं। यह साफ  इशारा करता है कि केरल में नशे से जुड़े अपराध बढ़ रहे हैं
जानकारी के अनुसार सन 1971 में अमरीका के हाई स्कूल में पढ़ने वाले 5 दोस्तों ने 4 बजकर 20 मिनट का समय अपने ‘गांजा सेशन’ के कोड के तौर पर तय किया था। आधी सदी से भी ज्यादा वक्त गुजरने के बाद यही ‘420 कल्चर’ अब दुनिया भर के युवाओं में फैल चुका है और केरल की नई पीढ़ी भी इससे अछूती नहीं रही। वहां के युवाओं के बीच यह ‘420 कल्चर’ अब एक तरह के ष्बगावत के प्रतीकष् के रूप में देखा जा रहा है।
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार केरल के युवाओं के सोशल मीडिया अकाउंट्स पर ‘420’ शब्द वाले हैशटैग और स्लैंग खुलेआम देखे जा सकते हैं। इंस्टाग्राम, स्नैपचौट और फेसबुक पर ‘420’ से जुड़ी मीम्स और वीडियो यह दर्शाते हैं कि किस तरह नशे की संस्कृति को अब कूल बना दिया गया है और यह युवाओं के बीच लोकप्रिय होता जा रहा है। गांजा को अक्सर एक हल्का नशा मान लिया जाता है। लेकिन ज़मीनी हकीकत देखने पर समझ आता है कि यह नशे की लत को बढ़ाता ही जाता है। कई नशा करने वाले किशोरों ने अधिकारियों को दिए बयानों में बताया कि उनका नशे की लत का सफर स्कूल के दिनों में दोस्तों के साथ गांजा पीने से शुरू हुआ और फिर धीरे-धीरे यह एमडीएमए, कोकीन और मेथ जैसे खतरनाक ड्रग्स तक पहुंच गया।
एक सरकारी अध्ययन में पाया गया कि केरल के 10वीं कक्षा के 37 प्रतिशत और 8वीं कक्षा के करीब 23 प्रतिशत छात्रों ने कभी न कभी कोई अवैध नशा या इनहेलेंट आजमाया है। इनमें सबसे अधिक प्रचलित गांजा ही है। स्थानीय मीडिया ने इस संकट को ‘उड़ता केरल’ नाम दिया है। अधिकतर मामलों में केरल के युवाओं की नशे की शुरुआत गांजा से होती है लेकिन अब यह आसानी से उपलब्ध भी है। राज्य की पुलिस और एक्साइज विभाग के मुताबिक आज केरल के बाजार में ‘हाइड्रोपोनिक गांजा’ नाम की एक बेहद शक्तिशाली किस्म फैली हुई है जिसमें टीएचसी का स्तर 40 प्रतिशत से भी अधिक होता है। यह गांजा खेतों में नहीं बल्कि लैब में तैयार किया जाता है और अधिकतर दक्षिण-पश्चिम एशिया से तस्करी करके लाया जाता है। 2022 में ऐसे गांजे की तस्करी लगभग ना के बराबर थी, लेकिन 2024-25 में ही अधिकारियों ने 89 किलो से अधिक गांजा एयरपोर्ट्स पर पकड़ा। 2025 के शुरुआती 7 महीनों में यह जब्ती 129.7 किलो तक पहुंच गई है।
    जानकारों की माने तो केरल में नशे की समस्या कोई रातों-रात नहीं आई। इसके पीछे कई गहरे और आपस में जुड़े कारण हैंए जिन्होंने इस राज्य को नशे की लत के प्रति बेहद संवेदनशील बना दिया है। भौगोलिक स्थिति यहाँ वरदान भी है और अभिशाप भी। केरल का 590 किलोमीटर लम्बा समुद्र तट अरब सागर से जुड़ा है। यह जहां अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को आसान बनाता है, वहीं दूसरी ओर मादक पदार्थों की तस्करी के लिए एक खुला दरवाज़ा भी बन गया है। पिछले कुछ वर्षों में तस्करों ने केरल के तटवर्ती अंतर्राष्ट्रीय जहाज़ मार्गों का खुलकर फायदा उठाया है। इसके अलावा राज्य की नजदीकी बड़े ट्रांजिट हब्स जैसे बेंगलुरु और चेन्नई से होने के कारण यहां जमीन के रास्ते बनी नशे की सप्लाई चेन और भी मज़बूत हो गई है। 
कुछ मीडिया रिपोर्टों के अनुसार केरल में अब नशे की होम डिलीवरी उसी तरह हो रही है जैसे पिज्जा ऑर्डर किया जाता है। बाइक पर घूमने वाले डिलीवरी एजेंट्स ग्राहकों के दरवाजे तक नशा पहुंचा रहे हैं। कई तस्कर सुपरबाइक्स पर नकली नंबर प्लेट लगाकर घूमते हैं और शक से बचने के लिए खुद को युवा जोड़ों के रूप में पेश करते हैं। इस  ई-कॉमर्स स्टाइल नशे के धंधे ने पुलिस की नींद उड़ा दी है क्योंकि उन्हें लगातार अपनी जांच और ट्रैकिंग तकनीक को अपडेट करना पड़ रहा है ताकि इन स्मार्ट तस्करों से निपटा जा सके। सप्लाई चेन के अलावा केरल के सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं ने भी नशे के लिए उपजाऊ जमीन तैयार की है।  (अदिति)

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