सोने की आसमान छूती कीमतें : कोई साज़िश या सहजता ?
सोने की लगातार आसमान छूती कीमतें हैरान कर रही हैं। सोने की कीमतें पिछले एक साल में यानी 2024 की धनतेरस के बाद से 2025 की धनतेरस तक 64 फीसदी बढ़ चुकी हैं, जबकि इसी दौरान चांदी की कीमतों में 73 फीसदी का इजाफा हुआ है। पिछली धनतेरस में जहां सोना 78,846 रुपये प्रति 10 ग्राम था, वहीं 17 अक्तूबर 2025 को यह बढ़कर 1,29,584 रुपये प्रति 10 ग्राम हो गया। क्या यह किसी सहज आर्थिक नियम या समीकरण का नतीजा है या फिर इसके पीछे कोई गहरी साज़िश या रणनीति काम कर रही है? आखिरकार सोने की इन आसमान छूती कीमतों का दीर्घकालिक नतीजा क्या होगा? क्या भारत की अर्थव्यवस्था पर इससे कोई विशेष असर पड़ सकता है, जिसे अभी हम समझ ही न पा रहे हों? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जो इन दिनों अर्थशास्त्र के जानकारों से लेकर आम लोगों तक को परेशान कर रहे हैं। क्योंकि हाल के 10-12 महीनों में सोने की कीमतें जिस अंदाज़ में बढ़ी हैं, वह सिर्फ एक व्यावसायिक चक्र नहीं है बल्कि दुनिया की आर्थिक, राजनीतिक और मौद्रिक व्यवस्थाओं के बीच की विविध अंत:क्रियाओं का एक जटिल परिणाम है। हालांकि सोने की बढ़ती कीमतों की कई ऐसे मूलभूत कारण हैं, जो स्वाभावत: उसकी कीमतों को आसमान की ओर धकेल सकते हैं। मसलन सोना कोई ब्याज या लाभांश नहीं देता। इसका मतलब यह है कि यदि किसी समय कोई बॉन्ड या सावधि ब्याज आदि की दरें जिनमें रीयल एस्टेट भी शामिल है, बहुत आकर्षक न हों, तो लोग इन सबको छोड़कर सोने पर निवेश करने लगते हैं। इसी तरह यदि ब्याज दरों के घटने की उम्मीद हो, विशेष रूप से अमरीकी फेडरल रिज़र्व की दरों में कटौती की पुख्ता उम्मीद लग रही हो, तो भी सोने का लोगों के बीच आकर्षण बढ़ जाता है। क्योंकि इस दौरान बॉन्ड जैसे आय देने वाले उपकरणों का आकर्षण काफी घट जाता है।
इसी तरह यदि कोई विशेष मुद्रा जैसे अमरीकी डॉलर अथवा भारतीय रुपया की क्रयशक्ति घट रही हो, तो व्यवहार में सोने पर निवेश को सुरक्षित आश्रय मान लिया जाता है। निवेशक सोचते हैं कि पैसे के मूल्य तो घटेंगे, लेकिन सोना अपने मूल्य को बनाये रखेगा। इसलिए इस स्थिति में भी सोने की कीमतें बढ़ जाती हैं। खास करके यदि रुपये की तुलना में डॉलर बहुत ज्यादा मज़बूत हो रहा हो, तो भारत में सोना बहुत महंगा हो जाता है। क्योंकि भारत में अधिकांश सोना आयात किया जाता है। सोने की कीमतें तब भी बहुत ज्यादा बढ़ जाती हैं, जब वैश्विक स्तर पर आर्थिक, वित्तीय या राजनीतिक अनिश्चय के बादल मंडरा रहे हों। जैसे विभिन्न देशों के बीच युद्ध का तनाव हो, व्यापार गतिरोध हो और सरकारों की वित्तीय स्थिति डावांडोल हो तो निवेशक सरकारों की सुरक्षित परिसंपत्तियों या बॉन्ड पर निवेश करने की बजाय सोना खरीदना ज्यादा बेहतर विकल्प मानते हैं। उदाहरण के लिए अमरीका, चीन के बीच जिस तरह का व्यापारिक तनाव चल रहा है, उससे वैश्विक व्यापार की चिंताएं बढ़ गई हैं, विश्व विकास की दर सुस्त पड़ गई है, ऐसे में लोगों को लगने लगा है कि सोने पर निवेश किया जाए।
मगर हाल के वर्षों में सोने की बढ़ने वाली कीमतों के पीछे एक बड़ा कारण दुनियाभर की केंद्रीय बैंकों द्वारा सोना खरीदा जाना भी है। हाल के सालों में कई देशों के केंद्रीय बैंकों ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में सोने की तादाद बढ़ायी है ताकि उनकी आरक्षित संपत्तियों का विविधीकरण हो और डॉलर पर उनकी निर्भरता घटे। उदाहरण के लिए हाल के महीनों में रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) ने भी 75 टन सोना खरीदा है, जिसके बाद आरबीआई का कुल स्वर्ण भंडार बढ़कर 880 टन हो चुका है और हां, पिछले कुछ सालों से लोग ईटीएफ (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स) आदि पर बड़े पैमाने पर निवेश कर रहे हैं। इस कारण भी सोने के कीमतों के बढ़ने का दबाव बना है। एक और कारण यह भी है कि हर गुज़रते साल के साथ सोने का उत्पादन सीमित हो रहा है। सोना ‘स्टॉक टू फ्लो’ में बहुत ऊंचा होता है। मतलब यह कि सोना लगातार जमा हो रहा है और मौजूदा उत्पादन नई मांग की पूर्ति नहीं कर सकता। इसलिए इसी स्टॉक में उलट-पलट होती रहती है। जिस कारण भी सोने की कीमतों में बढ़ोत्तरी होती है। कुछ देशों में सोने की बढ़ती कीमतों की सबसे बड़ी वजह सांस्कृतिक है जैसे भारत में त्योहारों और विवाहों पर सोने की खरीद के लिए उसकी हर तरह की महंगाई की अनदेखी की जाती है यानी सोना कितना भी महंगा हो, जो लोग खरीद सकते हैं, वह इसे खरीदेंगे। इसलिए भी सोने की मांग घटती नहीं है।
भारत में हर साल बल्कि साल में दो बार सोने के बाज़ार में उछाल आता है, जब भारत के ज्यादातर हिस्सों में शादियां होती हैं और तब जब दिवाली तथा अक्षय तृतीया को लोग धार्मिक व सांस्कृतिक कारणों के चलते सोना खरीदते हैं। इस कारण भारत में हर साल सोने की कीमतों में कुछ न कुछ वृद्धि होती ही है। भारत का आभूषण उद्योग नियमित रूप से सोने का उपभोक्ता है, सोने की कीमतों में बढ़ोत्तरी का एक कारण यह भी है। मगर हां, हाल के महीनों में सोने की कीमतों में जो बेतहाशा वृद्धि हुई है, उसमें किसी न किसी तरह की रणनीति या साज़िश की बू सूंघना भी गलत नहीं होगा। कुछ लोग यह दावा करते हैं कि देश की कई शक्तिशाली निवेशक संस्थाएं मसलन बैंक या कुछ देशों ने स्वर्ण आपूर्ति में साज़िशन रोक लगा रखी है, इस वजह से भी सोने की कीमतें आसमान छू रही हैं। हालांकि सोना दुनियाभर में एक बड़ा ही सजीव बाज़ार है। लाखों खनन कंपनियां, निवेशक, फंड मैनेजर और केंद्रीय बैंक इसके पूरे कारोबार पर नियंत्रण करते हैं। ऐसे में आसानी से यह भी नहीं अनुमान लगाया जा सकता कि कोई एक ताकत सोने के बाज़ार का मैन्यूपुलेशन कर सकती है। हां, मैन्यूपुलेशन तभी संभव है, जब उसमें बड़े पैमाने पर छिपी हुई खरीद-फरोख्त मौजूद हो। लेकिन क्या इतना बड़ा पूंजी फंड किसी देश या संस्था के पास हो सकता है, जो दुनिया के स्वर्ण कारोबार को प्रभावित कर सके?
कुल मिलाकर लगता नहीं है कि सोने के इस कारोबार में उसकी जो कीमतें आसमान छू रही हैं, उसके पीछे कोई बहुत बड़ी साज़िश काम कर रही हो। हां, यह माना जा सकता है कि जिस तरह हाल के सालों में शेयर बाज़ार से लेकर प्रॉपर्टी के बाज़ार तक में लोगों का विश्वास डावांडोल हुआ है, शायद उस कारण ही लोग पलटकर सोने की तरफ लौटे हैं, क्योंकि सोने का एक ऐसा इतिहास है, जिसमें पिछली दो शताब्दियों में सोने की कीमतों में गिरावट बहुत कम बार देखी गई। अगर हम आज़ाद भारत के समूचे इतिहास में देखें, तो कुल चार बार ही ऐसे मौके आये हैं, जब सोने की मौजूदा दरें घटीं वर्ना तो सोना लगातार ऊपर की तरफ ही बढ़ता रहा है। कुल मिलाकर गहराई से देखें, तो लगता है सोने की कीमतों में इन दिनों जो आग लगी हुई है, उसमें दुनियाभर के निवेशकों का विभिन्न तरह के निवेशों पर घटा आत्मविश्वास है। कहने का मतलब यह है कि सोने की कीमतों में जो वृद्धि हो रही है, भले वह हैरान करने वाली हो, लेकिन उसमें किसी बड़ी साज़िश की बू नहीं आ रही।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर