राजा भोज द्वारा बसाया शहर है भोपाल

राजा भोज द्वारा बसाए गए शहर भोपाल का नाम पहले भोजपाल था, अपभ्रंश में इसे भोपाल कहा जाने लगा। मुगल शासकों का यहां लंबे वक्त तक राज रहा, उसमें भी दिलचस्प बात यह है कि अधिकांश वक्त शासन बेगमों ने किया। आज़ादी के बाद भोपाल का विकास शुरू हुआ, तब एक नए भोपाल ने आकार लिया। नतीजतन, यह भी 2 हिस्सों में बंट गया। पुराना भोपाल और नया भोपाल। राजधानी बनने के बाद तो यहां ताबड़तोड़ निर्माण कार्य हुए मगर 70 के दशक में बने न्यू मार्किट ने मानो भोपाल का कायाकल्प कर दिया। 
न्यू मार्किट न केवल व्यापारिक गतिविधियों का एक बड़ा केंद्र है बल्कि पर्यटकों के लिए शॉपिंग का एक अलग अनुभव भी है। दर्जनों तंग और छोटी गलियों से होकर जब आप बाहर निकलते हैं तो एक भोपाली जज्बा भी आपके साथ होता है। नए और पुराने भोपाल को बांटते न्यू मार्किट की खूबी है कि आप किसी भी तरफ चले जाइए, कोई न कोई पर्यटन स्थल आपका स्वागत कर रहा होगा। 
पुराने भोपाल की भी शान निराली है जहां पर्यटक एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद ताजुल मसाजिद की शान और वास्तु दोनों निहारते हैं। इसके निर्माण में संगमरमर का इफरात से इस्तेमाल हुआ है। पुराने भोपाल में ही गौथिक शैली में निर्मित शौकत महल भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहता है। ऐतिहासिक महत्त्व की एक और इमारत गौहर महल भी देखने के काबिल है। 
साहित्य और कला में रूचि रखने वालों में से शायद ही कोई भारत भवन के नाम से वाकिफ न होगा। झील के किनारे बसे भारत भवन को कला और संस्कृति प्रेमियों का पसंदीदा अड्डा माना जाता है, जहां हर वक्त कोई न कोई आयोजन हो रहा होता है। यहां शासकीय पुरातत्व संग्रहालय और गांधी भवन भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। भदभदा रोड पर पर्यटन विकास निगम द्वारा विकसित किया गया पिकनिक स्पॉट का सैरसपाटा भी लोगों को अपनी तरफ खींचता है, जहां पार्क, बगीचा, हरियाली और रेस्तरां के अलावा बच्चों के मन बहलाने के तमाम साधन मौजूद हैं। 
पर्यटन स्थलों पर घूमते-घूमते बीच में कभी न कभी व्यापारिक क्षेत्र एमपी नगर आता है, जहां ठहरने के लिए सुविधाजनक होटल और घूमने के लिए मॉल हैं। भोपाल अगर देश का प्रमुख पर्यटन स्थल बना तो इसकी एक वजह इसका शैक्षणिक हब बन जाना भी है। 100 से भी ज्यादा इंजीनियरिंग कॉलेज शायद ही देश के किसी एक शहर में हों।  हवाई अड्डे को शहर से जोड़ती वीआईपी रोड रोज शाम को आबाद होती है तो देर रात तक यहां चहल-पहल रहती है। हाल ही में तालाब में भोज की विशाल प्रतिमा लगाई गई है। वीआईपी रोड के पुल पर खड़े होकर तालाब के दूसरी तरफ बोट क्लब के नजारे चाहकर भी लोग नहीं भूल पाते, जहां से तालाब के सीने पर चलती मोटरबोट और क्रूज दिखते हैं। चप्पू वाली नावों या पैडल बोट में बैठकर नौकायान का लुत्फ भी लोग उठाते नज़र आते हैं। 
मछलीघर और श्यामला हिल्स स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय सहित ये सभी पर्यटन स्थल एक दिन में आसानी से घूमे जा सकते हैं। किराए की टैक्सी से भोपाल घूमने में लगभग 1200 रूपए का खर्च आता है। पर्यटकों के खानपान के मामले में भी भोपाल सस्ता या किफायत वाला शहर महसूस होता है। 
भोपाल शहर के बाहर होशंगाबाद रोड से होते भोजपुर का शंकर मंदिर भी दर्शनीय है, जहां 20 किलोमीटर दूर भीमबैठका की गुफाएं हैं। इन गुफाओं के भित्ति और शैलचित्र आदिम युग और मानव इतिहास की जीती जागती मिसाल हैं। पुरातत्वविदों और इतिहास प्रेमियों को भीमबैठका की गुफाएं ज़रूर देखनी चाहिए। 
भोपाल से 35 किलोमीटर दूर विश्वविख्यात बौद्ध तीर्थस्थल सांची है जिसके स्तूप सम्राट अशोक द्वारा बनवाए गए थे। बुद्ध के उपदेश, जातक कथाएं और उनसे जुड़ी कुछ धरोहरें सांची में सलामत हैं। 
खरीदारी के लिए हस्तनिर्मित जो आइटम देशभर में मशहूर हैं उनमें भोपाली बटुआ प्रमुख है। भोपाल सालभर भेंट कभी भी आया जा सकता है लेकिन मई-जून में यहां अब तेज गर्मी पड़ती है। नवंबर से मार्च तक का मौसम काफी सुहाना रहता है। रात में मौसम चाहे कोई भी हो, वीआईपी रोड के पास पुराने भोपाल के चौक बाज़ार की रौनक शबाब पर होती है। चौक की गलियों में चाट और खानपान का लुत्फ उठाने के साथ कपड़ों व ज्वैलरी की खरीदारी भी की जा सकती है। 
पुराने भोपाल के सुल्तानिया रोड स्थित चटोरी गली में आपको सभी प्रकार के नॉनवेज आइटम की तरह-तरह की वैरायटियां मिल जाएंगी जिनके जायके देशभर में मशहूर हैं। अगर कुछ चटपटा खाने का मन हो तो चटोरी गली उसके लिए एक बेहतर जगह है। पिछले 8-10 सालों में भोपाल में फिल्मी कलाकारों का आना-जाना बढ़ा है। अब यहां सालभर किसी न किसी फिल्म या फिर टीवी सीरियल की शूटिंग चलती रहती हैं। मध्य प्रदेश सरकार भी फिल्म निर्माताओं को खूब प्रोत्साहन दे रही है। (उर्वशी)

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