भाजपा के लोजपा प्रेम से राजग के अन्य सहयोगी आहत

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे की प्रक्रिया जैसे-जैसे आगे बढ़ी, अति-आत्मविश्वासी भाजपा नेतृत्व राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में अपने सहयोगी दलों में से एक लोजपा (रामविलास) के प्रति आसक्त हो गया। राजग के पांच सहयोगियों में से तीन—जद (यू), राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) और हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (एचएएम) ने इस पर नाराजगी जताई है। जहां प्रमुख सहयोगी जद (यू) ने सीटों के बंटवारे के खिलाफ कोई सार्वजनिक बयान देने से परहेज करते हुए भाजपा नेतृत्व से अपनी आपत्तियां व्यक्त कीं, वहीं रालोम और एचएएम ने सार्वजनिक रूप से अपनी नाराज़गी व्यक्त की, जिससे उनके समर्थकों को भाजपा के खिलाफ  स्पष्ट संदेश मिल गया है। हालांकि भाजपा ने तुरंत ही इस नाराज़गी की आग पर काबू पाने के लिए अग्निशमन शुरू कर दिया है, लेकिन राजनीतिक नुकसान पहले ही हो चुका है, जिसका असर नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनावों के नतीजों पर पड़ना तय है।
बिहार में सत्तारूढ़ राजग द्वारा सीट बंटवारे की घोषणा स्पष्ट रूप से भाजपा का निर्णय है, जिस पर उसके किसी भी सहयोगी दल ने सहमति नहीं जताई, सिवाय मुख्य लाभार्थी चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के, जिसे चुनाव लड़ने के लिए 29 सीटें दी गई हैं।
आरएलएम और एचएएम ने 15 अक्तूबर को लोजपा (रामविलास) को 29 सीटों के आवंटन पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की और इसे ‘असमानुपातिक’ बताया। इस सार्वजनिक आलोचना के कारण राजग, विशेषकर भाजपा नेतृत्व को घोषणा के तीन दिनों के भीतर कई सीटों पर फिर से बातचीत करनी पड़ी।
निवर्तमान बिहार विधानसभा में लोजपा (रामविलास) के पास एक भी सीट नहीं है, लेकिन उसे चुनाव लड़ने के लिए 29 सीटें मिली हैं और यह सब भाजपा के पार्टी के प्रति नए प्रेम के कारण है। लोजपा ने 2020 का विधानसभा चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़ा था। लोजपा ने एक सीट जीती थी और वह 5 सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी। बाद में लोजपा के एकमात्र विधायक जद (यू) में शामिल हो गये।
2021 में लोजपा का विभाजन हो गया, जब पशुपति नाथ पारस पार्टी के पांच में से चार सांसदों को लेकर भाजपा से हाथ मिला लिया। उस समय भाजपा ने चिराग पासवान की पूरी तरह से उपेक्षा की थी।
अब स्थिति बदल गई है। चिराग पासवान अब भाजपा के साथ गठबंधन में हैं और उनके चाचा पशुपति नाथ पारस बिहार में महागठबंधन नामक ‘इंडिया’ ब्लॉक में शामिल हो गए हैं। लोजपा (रामविलास) 2024 का लोकसभा चुनाव राजग के साथ लड़ी थी और पांच सीटें जीती थीं। चिराग पासवान के पक्ष में परिणाम प्रभावशाली रहे थे, हालांकि जद (यू) नेता और मुख्यमंत्री नितीश कुमार शुरू में चिराग को राजग में शामिल करने के विरोधी थे।
भाजपा स्पष्ट रूप से राजग में मुख्यमंत्री नितीश कुमार के महत्व को कम करके चिराग पासवान को आगे बढ़ा रही है। भाजपा नेतृत्व के इस बदले हुए रवैये से मुख्यमंत्री नितीश कुमार और अन्य जद (यू) नेता नाखुश हैं, लेकिन पार्टी के पास इसके साथ समझौता करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। नितीश ने 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ‘इंडिया’ ब्लॉक को छोड़ दिया था और भाजपा से हाथ मिला लिया था। भाजपा बिहार में अपने हर राजनीतिक कदम से नितीश कुमार को अपमानित करती रहती है। फिर भी जद (यू) अभी भी भाजपा की किसी भी सार्वजनिक आलोचना से बच रही है और भाजपा नेतृत्व को अपनी नाराज़गी से नियमित रूप से अवगत कराती रही है।
जेडी (यू) पार्टी में गुटबाजी से जूझ रही है और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का एक समूह भाजपा नेतृत्व को अपनी शर्तें मनवाने की छूट दे रहा है। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने अपनी नाराज़गी ज़ाहिर की है और अपने पार्टी नेताओं से ऐसा न करने को कहा है। बताया जा रहा है कि वह अपनी पार्टी के कुछ नेताओं से नाराज़ हैं जो भाजपा के हित में पार्टी को कमज़ोर कर रहे हैं।
आरएलएम और एचएएम के नेतृत्व भाजपा द्वारा सीटों के बंटवारे की एकतरफा घोषणा की सार्वजनिक रूप से आलोचना की है। आरएलएम प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा ने कहा, ‘ इस बार राजग में सब ठीक नहीं है।’ उन्होंने यह टिप्पणी भाजपा नेता और उप-मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी और केंद्रीय मंत्री नित्यानंद राय के साथ बंद कमरे में हुई बैठक के तुरंत बाद की।
कुशवाहा की नाराज़गी का कारण यह था कि उनकी इच्छा के विरुद्ध दिनारा और महुआ सीटें लोजपा (रामविलास) को दे दी गईं। वह भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मिलने दिल्ली पहुंचे और कथित तौर पर उन्हें अपनी पार्टी के लिए दो सीटों के बदले में केन्द्रीय कैबिनेट में जगह और राज्यसभा में एक और कार्यकाल और बिहार विधान परिषद में एक सीट का आश्वासन मिला। कुशवाहा ने कहा, ‘अब कोई असमंजस नहीं है।’ इस तरह 15 अक्तूबर की शाम तक मामला सुलझ गया।
केंद्रीय मंत्री और एचएएम के नेता जीतन राम मांझी लोजपा (रामविलास) द्वारा अन्य गठबंधन सहयोगियों को आवंटित सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा से नाराज़ थे। उन्होंने सोनबरसा और राजगीर की जद (यू) सीटों का उदाहरण देते हुए मुख्यमंत्री नितीश कुमार की नाराज़गी को जायज़ ठहराया। राजग सहयोगियों के बीच गहरा अविश्वास खुलकर सामने आ गया है। (संवाद)

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