अनीता आनंद की यात्रा का संदेश
विगत दिवस कनाडा की विदेश मंत्री अनीता आनंद भारत आईं। वह भारतीय मूल की कैनेडियन नागरिक हैं। उनका क्षेत्र शिक्षा भी रहा है। वह कनाडा में ही जन्मीं। उनके पिता तमिलनाडू और माता पंजाब मूल के हैं। वह एडवोकेट भी रही हैं और राजनीति में भी सक्रियता दिखाती रही हैं। कनाडा बसते पंजाबियों के साथ भी उनका हमेशा नज़दीकी संबंध रहा है। उन्हें भारत की सरकारी यात्रा पर भेजने का उद्देश्य समझ आता है। भारत और कनाडा के संबंधों में प्रत्येक पक्ष से सुधार आता देखा जा सकता है। कनाडा के भारत के साथ गहन संबंध हमेशा बने रहे हैं। आज लाखों ही भारतीय जिनमें पंजाबी बहुसंख्या में हैं, वहां के निवासी हैं। उनका प्रत्येक क्षेत्र में बड़ा योगदान माना जाता रहा है। पंजाब में दशकों तक खाड़कू लहर चलती रही है। इस दौरान कई गर्म-दलीय संगठनों के युवाओं ने भी किसी न किसी तरह कनाडा में प्रवास कर लिया था। उन्होंने वहां लगातार भारत के विरुद्ध प्रचार किया और वहां होते रोष प्रदर्शनों में लगातार अपनी शमूलियत रखी।
विगत अवधि से भारी संख्या में वे खाड़कू भी वहां रह रहे हैं, जो भारत में अलग-अलग मामलों संबंधी वांछित हैं। भारत सरकार को तत्कालीन कनाडा की सरकारों से यह शिकायत रही है कि वहां की धरती भारत के विरुद्ध प्रचार के लिए इस्तेमाल की जाती रही है। इसी संबंध में भारत द्वारा समय-समय पर वहां की सरकार के समक्ष रोष भी प्रकट किया जाता रहा है। कनाडा के साथ भारत का प्रत्येक पक्ष से संबंध बना रहा। यहां लाखों की संख्या में विद्यार्थी कनाडा पढ़ाई के लिए जाते रहे और बाद में वहीं पर बस गए। उनके अन्य पारिवारिक सदस्य भी कनाडा में जाकर बसने को प्राथमिकता देते रहे। इसलिए आज वहां पंजाबियों की संख्या में भारी वृद्धि हो गई है। अलग-अलग क्षेत्रों में उन्होंने अपना नाम भी कमाया है। कनाडा की राजनीति में भी उन्होंने एक तरह से अपनी धाक ही जमा दी है। चाहे वहां खालिस्तान पक्षीय गर्म-दलीय तो समूचे रूप में बहुत कम संख्या में हैं परन्तु उनकी गतिविधियां और बयान भारतीय सरकार के लिए सिरदर्द ज़रूर बने रहे हैं। कनाडा में हुए भयावह कनिष्क विमान हादसे के तार भी इन खाड़कू संगठनों के साथ ही जोड़े जाते रहे हैं। कनाडा में जून 2023 में खालिस्तानी समर्थक खाड़कू हरदीप सिंह निज्जर की हत्या कर दी गई थी। तब जस्टिन ट्रूडो वहां के प्रधानमंत्री थे, जिनका समर्थन लगातार वहां के गर्म-विचारधारकों को मिलता रहा था। इसी कारण ही जस्टिन ट्रूडो के कार्यकाल में दोनों देशों के संबंधों में तनाव और टकराव होता रहा है। हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के तार को भी जस्टिन ट्रूडो ने भारत के साथ जोड़ा था और इस कार्रवाई को भारतीय एजेंटों की कार्रवाई कहा था, परन्तु भारत हमेशा इससे इनकार करता रहा। इस घटनाक्रम से दोनों देशों के संबंध बिगड़ गए और यहां तक पहुंच गए कि दोनों देशों ने व्यापक स्तर पर आपसी कूटनीतिक संबंध तोड़ लिए थे। दूतावास एक तरह से बंद ही हो गए। कनाडा में भी जस्टिन ट्रूडो की भारत के प्रति इस रवैये की कड़ी आलोचना होती रही। इसके साथ ही घरेलू और अन्य अनेक कारणों के दृष्टिगत ट्रूडो का प्रभाव बेहद कम हो गया। इस अप्रैल में वहां हुए संसदीय चुनावों में उनकी अपनी लिबरल पार्टी ने ही उनको हटा कर मार्क कार्नी को प्रधानमंत्री बना दिया। कार्नी ने सत्ता सम्भालते ही भारत के प्रति अपने रवैये में बड़ा बदलाव कर लिया और दोनों देशों के संबंधों को पुन: सुखद बनाने के लिए यत्न शुरू किए। विगत जून महीने में कनाडा के कनानासिक्स में जी-7 शिखर सम्मेलन हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भी भाग लिया। वहीं पर उनकी आपस में बड़ी लम्बी वार्ता भी हुई, जिससे दोनों देशों के संबंधों में पुन: सुधार होने लगा।
इसी क्रम में विदेश मंत्री अनीता आनंद ने भारत की संक्षिप्त यात्रा की है। यहां वह विदेश मंत्री एस. जयशंकर को भी मिलीं और प्रधानमंत्री मोदी के साथ भी बातचीत की। दोनों देशों ने पुन: व्यापार, ऊर्जा, तकनीक और निवेश में आपसी मेल-मिलाप को उत्साहित करने के लिए आगे कदम बढ़ाए हैं। इसके साथ ही आगामी समय में भारतीय विद्यार्थियों पर लगाये जा रहे प्रतिबन्धों के भी नरम होने की सम्भावना बन गई है। ब्रिटेन के बाद कनाडा के भारत के साथ पहले जैसे बन रहे संबंध दोनों देशों के लिए एक सुखद संदेश भी है और आपसी मेल-मिलाप के साथ प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने की सम्भावना को भी उजागर करता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द