मुश्किलों के दौर में भारत की लम्बी छलांग
जब पूरे भारत में दीप जलते हैं, तो रामायण का एक अमर दृश्य आज के समय से संवाद करता है। हनुमान जी अपने बल पर संदेह करते हुए सागर के किनारे खड़े हैं, जब तक कि जाम्बवंत उन्हें यह याद नहीं दिलाते कि वह ताकत तो पहले से ही उनके भीतर है। उसके बाद जो छलांग लगती है, वह कोई चमत्कार नहीं बल्कि आत्मविश्वास का परिणाम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यही आत्मविश्वास भारत की अर्थव्यवस्था में जगाने की तैयारी कर रहे हैं, ताकि भारत अपनी भीतरी शक्ति के सहारे वैश्विक चुनौतियों को पार कर सके। जैसे-जैसे दुनिया नई वीजा बाधाओं और शुल्कों के साथ सिमट रही है, तब मोदी के नेतृत्व में भारत अपने आत्मविश्वास को दुनिया के सामने ला रहा है। भारत विपरीत परिस्थितियों को आगे बढ़ने की ताकत में बदल रहा है।
हाल के महीनों में अमरीका ने नए एच.1बी वीज़ा आवेदनों पर 1,00,000 डॉलर की फीस और ब्रांडेड व पेटेंट वाली दवाओं के आयात पर 100 प्रतिशत शुल्क लगाया है। इन कदमों को रोज़गार सुरक्षा के नाम पर लिया गया बताया गया, लेकिन इसके पीछे एक गहरी चिंता छिपी है। यह विश्व देशों में विकसित देशों में बढ़ता संरक्षणवाद और जनसंख्या से जुड़ी असुरक्षा। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारत ने इसका जवाब तीन ऐसे स्तंभों को मज़बूत बनाकर दिया है, जिन्हें कोई भी शुल्क प्रभावित नहीं कर सकता। पैमाना (स्केल), कौशल (स्किल) और आत्मनिर्भरता (सेल्फ रिलायंस)।
दुनिया से भारत का अंतर बहुत साफ दिखाई देता है। चीन की आबादी तेज़ी से बूढ़ी हो रही है। वहां की औसत आयु अब 40 साल से ज्यादा हो गई है, जबकि भारत में यह 29 साल से कम है। हमारे दो-तिहाई लोग 35 साल से कम उम्र के हैं। इस युवा ऊर्जा को जब कौशल, शिक्षा और उद्यमिता के ज़रिए सही दिशा दी जाती है तो वो भारत को विश्व अर्थव्यवस्था का ‘विकास इंजन’ बनाती है। जब वैश्विक संस्थाएं बताती हैं कि पिछले साल दुनिया की कुल आर्थिक वृद्धि में भारत का योगदान 16 प्रतिशत से ज्यादा रहा, तो यह कोई नारा नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में पिछले एक दशक के सुधार, निवेश और बुनियादी ढांचे के निर्माण का परिणाम है।
हाल के आंकड़े इस रफ्तार को और पुख्ता करते हैं। भारतीय रिज़र्व बैंक ने वित्त वर्ष 2026 के लिए भारत की जीडीपी अनुमान को बढ़ाकर 6.8 प्रतिशत किया है। इसके पीछे कारण बताए गए हैं। मज़बूत घरेलू मांग, स्थिर निवेश प्रवाह और अच्छे मानसून की उम्मीद। सितम्बर में जीएसटी संग्रह 1.89 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। यह लगातार नौवां महीना है जब संग्रह 1.8 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा रहा। यह दर्शाता है कि देश में खपत बढ़ रही है और टैक्स का दायरा भी फैल रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार 700 अरब डॉलर तक पहुंच गया है, जो लगभग 11 महीनों के आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त है। वहीं जून तिमाही में विदेशी धन प्रेषण 33.2 अरब डॉलर रहा, जो पिछले साल की तुलना में काफी अधिक है।
यह सकारात्मक रुझान बाज़ारों और सड़कों दोनों पर दिखाई दे रहा है। इस दशहरा सीज़न में खुदरा और ई-कॉमर्स बिक्री अपने अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई। उद्योग संगठनों जैसे कैट और रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार बिक्री 3.7 लाख करोड़ रुपये को पार कर गई, जो पिछले साल से लगभग 15 प्रतिशत ज्यादा है। सिर्फ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर ही त्योहारों के पहले पंद्रह दिनों में 90,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार हुआ। सबसे ज्यादा मांग ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रॉनिक्स, सोना और कपड़ों में देखी गई। अब उम्मीद है कि दीवाली इस बार सभी पुराने रिकॉर्ड तोड़ देगी, जो न केवल उपभोक्ता विश्वास को दिखाता है, बल्कि सरकार के औपचारिक ऋण, डिजिटल भुगतान और ग्रामीण क्रय शक्ति बढ़ाने के लगातार प्रयासों की सफलता को भी दर्शाता है।
भारत की आर्थिक नींव अब मज़बूत हो चुकी है। पिछले दस वर्षों में भारत का सकल घरेलू उत्पाद लगभग दोगुना हो गई है और अब वह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। जल्द ही जर्मनी को पीछे छोड़ देने की उम्मीद है। विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डॉलर से अधिक है। मुद्रास्फीति नियंत्रित है और वित्तीय अनुशासन के साथ सरकार ने रिकॉर्ड सार्वजनिक पूंजीगत निवेश किया है। वित्त वर्ष 2024-25 में, भारत का वस्तुओं और सेवाओं का समग्र निर्यात लगभग 825 बिलियन अमरीकी डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया, जबकि अकेले व्यापारिक निर्यात लगभग 437 बिलियन अमरीकी डॉलर था। भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता अब 220 गीगावॉट से अधिक हो गई है।
ये आंकड़े एक ऐसे देश की कहानी कहते हैं जो कभी नाजुक था, और अब एक मज़बूत राष्ट्र बन गया है। ऐसे नेतृत्व में, जो दूरदृष्टि और क्रियान्वयन दोनों को साथ लेकर चलता है। यह दुखद सच्चाई है कि प्रधानमंत्री मोदी की आत्मनिर्भर भारत की सोच को कुछ लोग राजनीतिक लाभ के लिए गलत तरीके से पेश कर रहे हैं। वे अब भी इसे 20वीं सदी की पुरानी सोच से देख रहे हैं। आत्मनिर्भरता का मतलब अलग-थलग रहना नहीं है। आत्मनिर्भर भारत का असली अर्थ है। अपनी शक्ति को दुनिया के सामने प्रस्तुत करना। यह वह ताकत है जो भारत को बराबरी के आधार पर वैश्विक स्तर पर भागीदारी करने की क्षमता देती है।
इसका उद्देश्य है- भारत में बनाना, लेकिन दुनिया के लिए अवसरों को विकेन्द्रित करना, ताकि मूल्य उन तक पहुंचे जो उसे बनाते हैं और वैश्विक बाज़ारों में समान शर्तों पर प्रतिस्पर्धा करना। मोबाइल फोन, रक्षा उपकरण, चिकित्सा यंत्रों से लेकर सौर मॉड्यूल तक उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजनाओं ने भारत में निवेश, रोज़गार और निर्यात तीनों को तेज़ी से बढ़ावा दिया है।
50,000 करोड़ की लागत से अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन, हमारे अनुसंधान और विकास तंत्र को नई ऊर्जा देने वाला कदम है। स्टार्टअप्स के लिए दूसरा फंड-ऑफफंड्स और पीएलआई योजनाओं का विस्तार भारत की तकनीकी नींव को और गहरा बनाएगा। यही है रणनीतिक स्वतंत्रता के रूप में आत्मनिर्भर भारत, जो आत्मविश्वास पर आधारित नीतियों के ज़रिए साकार और वैस्विक साझेदारियों के माध्यम से और भी मज़बूत बनता है। प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में भारत ने दुनिया का सबसे समावेशी डिजिटल सार्वजनिक ढांचा तैयार किया है। यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस अब वीज़ा की तुलना में अधिक दैनिक लेनदेन को संभालता है, जो प्रतिदिन 650 मिलियन से अधिक है। आधार, डिजिलॉकर और ओएनडीसी मिलकर एक ऐसा इकोसिस्टम बनाते हैं जो बड़े पैमाने पर नागरिकों, छोटे व्यवसायों और नवप्रवर्तकों को जोड़ता है। सिंगापुर, यूएई और अन्य के साथ यूपीआई की वैश्विक साझेदारियां दर्शाती हैं कि भारतीय नवाचार वैश्विक मानक स्थापित कर सकता है। यह है तकनीक के रूप में शासन, सशक्तिकरण और निर्यात।
इसलिए हनुमान की छलांग का प्रतीकात्मक महत्व यहां बहुत उपयुक्त है। यह कोई विरोध का कार्य नहीं था, बल्कि कर्त्तव्य का निर्वाह था, जो आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से संभव हुआ। प्रधानमंत्री मोदी का शासन दर्शन भी इसी विश्वास पर आधारित है कि भारत की नियति अपने लोगों की संकल्पशक्ति और संभावनाओं को जागृत करने में निहित है। इन्फ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल रूपांतरण, हरित ऊर्जा व वैश्विक साझेदारियां इस जागृति के साधन हैं। जहां दूसरे दीवारें बनाते हैं, भारत क्षमता का निर्माण करता है। जहां दूसरे व्यापार को सीमित करते हैं, भारत अवसर बढ़ाता है। जहां दूसरे भविष्य से डरते हैं, भारत उसकी तैयारी करता है।
हनुमान की छलांग स्मृति की पुनर्प्राप्ति थी। प्रधानमंत्री मोदी का प्रयास यही रहा है कि भारत की क्षमता की राष्ट्रीय स्मृति को फिर से जागृत किया जाए। जब दूसरे दीवारें खड़ी करते हैं, तो भारत क्षमता का निर्माण करता है। जहां दूसरे अवसर सीमित करते हैं, भारत उन्हें बढ़ाता है। यही तरीका है जिससे सभ्यता में निहित आत्मविश्वास आधुनिक प्रतिस्पर्धात्मक ताकत में बदल जाता है। जैसे-जैसे हम दिवाली के करीब आ रहे हैं, यह याद रखना ज़रूरी है कि हनुमान की छलांग ने समुद्र को छोटा नहीं किया, बल्कि उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया। दुनिया नई बाधाएं खड़ी कर सकती है, लेकिन भारत के पास आज ऊंचा उठने के लिए नेतृत्व, लचीलापन और उद्देश्य है। प्रधानमंत्री मोदी के दृष्टिकोण के मार्गदर्शन में, यह ऐसा देश है, जो किनारे पर नहीं रुकेगा। यह अपनी ताकत को याद रखता है और आगे छलांग लगाता है।
(लेखक केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्री हैं)