ट्रम्प को नोबेल मिल भी जाए, तो क्या होगा !

डोनाल्ड ट्रम्प को शांति का नोबेल नहीं मिला, यह खबर पूरी दुनिया के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो गई, लेकिन जिस शांति के नाम पर डोनाल्ड ट्रम्प नोबेल मांग रहे हैं, उसके पीछे हुए युद्ध में कितने बच्चे अनाथ हो गए या मारे गए, इसके लिए कोई चिंतित नहीं है। कोई चिंतित इस बात पर भी नहीं है कि युद्ध के दौरान कितने बच्चों की ज़िंदगी बर्बाद हो गई। इस बात पर कहीं बहस तक नहीं हो रही है। नोबेल की चाह रखने वाले ट्रम्प ने बच्चों के लिए कभी कोई स्पेशल आर्थिक पैकेज नहीं दिया है। उनकी समस्या कैसे खत्म हो, इस पर किसी राष्ट्र से बात की हो या फिर खुद उन्होंने युद्धरत राष्ट्राध्यक्षों को यह कहा हो कि वे बच्चों के स्कूल या अस्पताल के आसपास हमला नहीं करें, ऐसा कभी नहीं सुना गया।
वर्ष 2025 के दसवें महीने में चार खबरों ने दुनिया में बच्चों की दशा-दिशा कितनी खराब है, यह भी बता दिया है। इन चार खबरों के संदेश बहुत भयानक और शर्मसार करने वाले हैं। जो चार घटनाएं हैं, वे यह समझाने के लिए काफी हैं कि बच्चों के लिए अभी भी हम सिर्फ सोच ही रहे हैं। भारत में भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। यहां के विद्यालयों, खासकर सरकारी विद्यालयों की छतें गिर जाती हैं और दर्जनों बच्चे मौत के मुंह में चले जाते हैं। अस्पतालों में उन्हें जो दवाएं दी जा रही हैं, वे इतनी खतरनाक हैं कि सांस आने के रास्ते सुगम होने के स्थान पर सांस हमेशा के लिए जिस्म को छोड़कर चली जाती है। विद्यालय में शिक्षक द्वारा बच्चे को उल्टा लटका कर पीटना और इन सबसे बढ़कर सुपरस्टार के दामाद तथा बॉलीवुड के स्टार अक्षय कुमार की बेटी से साइबर अपराधी न्यूड फोटो मांगते हैं। ये घटनाएं वे हैं, जो हमें चौंकाती तो हैं पर चिंतित नहीं करतीं।
दुनिया का हाल बहुत खराब है। युद्धविराम का श्रेय ले रहे ट्रम्प इस बात का कभी कोई कदम क्यों नहीं उठाते कि रूस-यूक्रेन युद्ध में हजारों बच्चे क्यों मारे गये या घायल हुए? इज़रायल-हमास के बीच चल रही जंग में 20,000 से अधिक बच्चे मारे गए और कम से कम इतने ही घायल हैं। पूरी दुनिया इस बात से परेशान है कि डिजिटल स्कैम बढ़ रहे हैं, लेकिन तस्करी के लिए बच्चों को किडनैप करना, उनसे भीख मंगवाना, तस्करी में उनका उपयोग करना, ये सब बातें चिंता का सबब नहीं रहीं। हालात ये हैं कि अब बच्चे पूरी दुनिया में कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। इंटरनेट किस तरह से बच्चों की ज़िंदगी को लील रहा है, यह बात सभी को पता है। वह रील में अपना समय खपाते हैं, मोबाइल के गेम में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन्हें मोबाइल ड्रगिस्ट कहा जाने लगा है। नीले फीते का जहर इंटरनेट पर उन्हें यौन अपराध करने के लिए उकसाता है। 
कुल मिला कर साइबर अपराध के हजारों तरीके उनकी नसों में मोबाइल की नीली रोशनी बहा रहे हैं। आज के बच्चों की बोलचाल की भाषा इतनी भ्रष्ट हो गई है कि वे भूल जाते हैं कि घर में कैसी भाषा बोलनी चाहिए। इंटरनेट ने उनकी ज़िंदगी को नर्क बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बच्चों के पालनहार अपनी ही समस्याओं में उलझे हुए हैं और उनके नेता अपने लिए शांति और खुशहाली का नोबेल पुरस्कार का सपना देख रहे हैं। इंटरनेट में किस तरह इन दिनों बच्चे ऑनलाइन गेमिंग में व्यस्त हैं, यह उनकी आड़ में नोट कमाने वाले और उनके शोषण की तरह-तरह की कल्पना करने वाले ही जानते हैं।
 ऐसे लोगों को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि वे जिन मासूमों को ठग रहे हैं, डरा रहे हैं या फिर उनकी ज़िंदगी से खेल रहे हैं, उसके मायने क्या हैं? जब अक्षय कुमार की बेटी तक से आपत्तिजनक फोटो की मांग होती है, तब भी ऑनलाइन गेमिंग को बढ़ावा देने वाले स्टार या विज्ञापन से नोट कमाने और उसकी निंदा करने के बारे में कतई नहीं सोचते। इससे ज्यादा शर्मशार करने वाली और क्या बात होगी? 
जरा सोचिए जब किसी देश में सुपरस्टार माने जाने वाले किसी शख्स को किसी भुगतभोगी की तरह सार्वजनिक रूप से अपना दुखड़ा सुनाना पड़ता है, तब सोचिए कि आम लोगों के बच्चों की क्या हालत होगी? यह अकारण नहीं है कि आज दुनिया का हर बच्चा ऑनलाइन यौन उत्पीड़न का शिकार है। बच्चों की ज़िंदगी सबसे अधिक युद्ध क्षेत्रों में नारकीय हो चुकी है। जब भी कहीं, किसी पर हमला होता है, तो उस क्षेत्र में बच्चों को अपने माता-पिता और संरक्षकों के साथ पलायन करना पड़ता है। ऐसे में बिना युद्ध का हिस्सा हुए भी बच्चे विस्थापन और पलायन की पीड़ा भुगत रहे होते हैं। युद्ध के डर और उससे उपजी समस्याओं-बीमारियों के कारण इन इलाकों के बच्चों का स्वास्थ्य बिना युद्ध का हिस्सा हुए भी युद्ध जैसी स्थितियों का हो जाता है। वे हिंसा के उस घिनौने रूप से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर रूबरू होते हैं और यह बात उन्हें हमेशा हमेशा के लिए भावनात्मक संकट का शिकार बना डालती है। इसके नुकसान स्वरूप बच्चे न सिर्फ गरीबी झेलते हैं बल्कि शिक्षा से भी वंचित रहते हैं और मासूमियत तो बचपन में ही उनसे हमेशा हमेशा के लिए छिन जाती है। 
एक अनुमान के मुताबिक दुनिया के करीब तीस करोड़ बच्चे दुरावस्था में हैं। इनके पास जीने के लिए जो मूलभूत सुविधाएं होनी चाहिएं, वे नहीं हैं। इनसे कई गुना अधिक बच्चे ऐसे हैं, जो दूसरी परेशानियों के कारण खुद को कई तरह के अपराधों और यौन हिंसा जैसी अपराधों के दलदल में फंसा पाते हैं। ऐसे में दुनिया को एक आदर्श नागरिक की जगह ये अपराधी बच्चे मिल रहे हैं। सामूहिक दुष्कर्म के कितने मामले हैं, जिनमें अल्पवयस्क बच्चों को लिप्त पाया जाता है। इसके बाद आमतौर पर उन्हें किशोर या बाल सुधार गृहों में भेज दिया जाता है। यहां आकर या जाकर भी ये बच्चे सुधरते नहीं हैं। स्कूलों की टूटती छतें, मिलने वाले भोजन में मरी छिपकलियां और कीड़ों का मिलना आखिर किस बात का द्योतक है। अस्पतालों में जब उन्हें दवा की जगह जहर मिलता है, तो यह जिम्मेदारी किसकी होती है, मां-बाप की या उस सरकार की, जो खुद को शासक या देश पालनहार समझती है। डोनाल्ड ट्रम्प को शांति का नोबेल मिल भी जायेगा तो इन बच्चों की दुनिया राई रत्ती भी नहीं सुधरेगी और कोई पुरस्कार देने वाला इस दिशा में एक पल को भी नहीं सोचेगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर

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