इज़रायल-हमास समझौते का पहला चरण
पश्चिम एशिया में पिछले 2 साल से इज़रायल-हमास में चल रहे युद्ध ने गाज़ा पट्टी में भारी तबाही मचाई है। इस छोटे से इलाके में 20 लाख के लगभग फिलिस्तीनी लोग रहते हैं। चाहे फिलिस्तीनियों के लम्बे संघर्ष के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फिलिस्तीनी अथॉरिटी को मान्यता मिली थी, जिसके प्रमुख मोहम्मद अब्बास हैं परन्तु इज़रायल के अस्तित्व को मिटाने के प्रण से बने हमास संगठन ने साल 2007 में गाज़ा पर कब्ज़ा कर लिया था। इज़रायल की सीमा पर इस पट्टी में हमास गोरिल्लों के कब्ज़े ने हमेशा ही इज़रायल के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर रखी थी। हमास को ईरान और अरब देशों द्वारा हर प्रकार की मदद मिलती रही है। पहले इज़रायल के अस्तित्व के विरोध में बहुत सारे अरब देशों ने इज़रायल को चुनौती दी हुई थी परन्तु समय के व्यतीत होते-होते उन्होंने इज़रायल के अस्तित्व को स्वीकार कर लिया और उससे कई तरह के समझौते भी कर लिए थे, परन्तु खाड़कू संगठन हमास के साथ-साथ लेबनान में सक्रिय दूसरे संगठन हिजबुल्लाह और ईरान ने इज़रायल के विरुद्ध हमेशा अपना विरोध जारी रखा। इसीलिए ही पिछले 2 सालों के समय में गाज़ा में युद्ध के साथ-साथ इज़रायल ने लेबनान पर भी हवाई हमले किए और ईरान पर हमले करके उसको भी बड़ी चुनौती दी थी।
हमास के गोरिल्लों द्वारा 7 अक्तूबर, 2023 को इज़रायल की सीमा पार करके एक सख्त हिंसक कार्रवाई की गई थी, जिसमें उन्होंने 1200 के करीब लोगों को मार दिया था और लगभग 250 लोगों को बंधक बनाकर गाज़ा पट्टी में ले गए। इसके बाद इज़रायल ने गाज़ा पट्टी पर हमले करके वहां के सबसे बड़े शहर गाज़ा को पूरी तरह खंडहर बना दिया। लाखों ही लोग घर से बेघर हो गए और 67,000 से भी अधिक फिलिस्तीनी मारे गए। हमास गोरिल्लों ने पिछले लम्बे समय से गाज़ा पट्टी में बड़ी सैन्य तैयारियां कर रखी थी और जगह-जगह छिपने के लिए बंकर भी बना लिए थे। इस आधार पर ही वह पिछले 2 साल गाज़ा पट्टी में डटे रहे। इस लड़ाई में बड़ी संख्या में उनके अपने गोरिल्ले मारे गये, यह पट्टी बुरी तरह तबाह हो गई, लाखों ही लोग घर से बेघर हो गए और 67,000 से अधिक लोग जिनमें बच्चे, बुज़ुर्ग और महिलाएं भी शामिल थी, मारे गए। इज़रायल ने गाज़ा पट्टी की पूरी तरह घेराबंदी कर रखी थी जिस कारण वहां पर बाहर से अनाज या अन्य खाद्य सामग्री भेजना बेहद कठिन था, जिससे वहां भुखमरी की स्थिति पैदा हो गई थी और बहुत-से देशों ने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर इस मानवीय त्रासदी के लिए इज़रायल को ज़िम्मेदार ठहराया था। यूरोप के कई बड़े देशों ने स्वतंत्र फिलिस्तीन देश के अस्तित्व के लिए प्रस्ताव पारित किए और इसे मान्यता देने की घोषणाएं भी कीं। आज भी विश्व के अधिकतर देश फिलिस्तीन को एक अलग स्वतंत्र देश बनाने की मांग कर रहे हैं। इस विनाशकारी लम्बे युद्ध के दौरान हमास ने समय-समय पर बंधक इज़रायलियों को छोड़ना भी शुरू कर दिया था, परन्तु सभी बंधकों को छोड़ने से इन्कार कर दिया था और वह अपनी इस ज़िद पर अडिग रहा। इसी दौरान सऊदी अरब तथा कतर जैसे अरब देशों ने समझौते के लिए बड़े यत्न किए। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी इस समस्या का समाधान करने के लिए अपनी तत्परता दिखाई। अंत में संयुक्त अंतर्राष्ट्रीय यत्नों से हमास शेष रहते इज़रायली बंधकों को छोड़ने के लिए सहमत हो गया। नि:संदेह इस समस्या को सुलझाने में अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की बड़ी भूमिका मानी जा रही है। दोनों पक्षों द्वारा बंधकों को रिहा करने के समझौते से एक बार तो भीषण युद्ध रुक गया है, जिसकी इज़रायल, गाज़ा पट्टी के फिलिस्तीनियों, अरब देशों तथा दुनिया भर के अन्य देशों ने भी प्रशंसा की है, परन्तु इसके बाद गाज़ा पर प्रशासन चलाने को लेकर अनिश्चितता वाली स्थिति अभी भी बनी हुई है।
अमरीकी योजना के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था इस क्षेत्र पर प्रशासन चलाएगी, जबकि हमास ने कहा है कि गाज़ा की सरकार फिलिस्तीनियों के साथ मिल कर बनाई जानी चाहिए। इस मामले के समाधान के लिए अंतर्राष्ट्रीय यत्न जारी हैं। इसके साथ ही यह सवाल भी सामने खड़ा है कि बड़ी सीमा तक तबाह हुई गाज़ा पट्टी के पुनर्निर्माण के खर्च की ज़िम्मेदारी कौन उठाएगा। चाहे संयुक्त राष्ट्र द्वारा आगामी महीनों में प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध करने के साथ-साथ भारी मात्रा में यहां खाद्य सामग्री भेजने तथा मलबे को हटाने के लिए यत्न किए जाने की सम्भावना है। इस सारी कवायद में से एक बात स्पष्ट रूप में उभर कर सामने आती है कि फिलिस्तीनियों के लिए एक अलग स्वतंत्र देश बनना चाहिए, ताकि दशकों से पैदा हुई इस समस्या का कोई स्थायी समाधान हो सके।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द