कचरा नहीं, भविष्य की संपत्ति है ई-कचरा
आज अंतर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस पर विशेष
आधुनिक जीवनशैली से जुड़ी सबसे तेज़ी से बढ़ती पर्यावरणीय समस्या इलैक्ट्रॉनिक कचरे (ई-वेस्ट) के प्रति वैश्विक जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से 14 अक्तूबर को विश्वभर में ‘अंतर्राष्ट्रीय ई-कचरा दिवस’ मनाया जाता है। इस वर्ष इसका 8वां संस्करण ‘अपने ई-कचरे को रीसायकल करें, यह महत्वपूर्ण है!’ विषय के साथ मनाया जा रहा है, जो हमें याद दिलाता है कि हमारे द्वारा फैंके गए पुराने या खराब इलैक्ट्रॉनिक उपकरण वास्तव में कचरा नहीं बल्कि भविष्य की ऊर्जा व नवाचार के लिए अमूल्य संसाधन हैं।
आज हर व्यक्ति के जीवन में इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गई है। स्मार्टफोन, लैपटॉप, टेलीविजन, रेफ्रिजरेटर, वॉशिंग मशीन, सौर पैनल और इलैक्ट्रिक वाहन जैसे उत्पाद आधुनिक जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं परंतु इन उपकरणों की आयु समाप्त होने पर जो कचरा उत्पन्न होता है, वही दुनिया के लिए गंभीर पर्यावरणीय संकट का रूप ले चुका है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में प्रतिवर्ष लगभग 6.2 करोड़ टन ई-कचरा उत्पन्न होता है। यह मात्रा इतनी अधिक है कि यदि इसे ट्रकों में भर दिया जाए तो ये ट्रक पृथ्वी के चारों ओर एक बार घूम सकते हैं। भारत, चीन व अमरीका विश्व के सबसे बड़े ई-कचरा उत्पादक देशों में शामिल हैं। अकेले भारत में प्रतिवर्ष 32 लाख टन से अधिक ई-कचरा उत्पन्न होता है, जो हर साल लगभग 10 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है।
2025 की थीम ‘अपने ई-कचरे को रीसायकल करें, यह महत्वपूर्ण है’ एक चेतावनी है। इस वर्ष का अभियान उन महत्वपूर्ण कच्चे माल के संरक्षण और पुन: उपयोग पर केंद्रित है, जो इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों के निर्माण में प्रयुक्त होते हैं। इनमें लिथियम, कोबाल्ट, निकेल, पैलेडियम, तांबा, सोना, प्लैटिनम व दुर्लभ मृदा तत्व शामिल हैं, जो नई पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों जैसे स्मार्टफोन, इलैक्ट्रिक वाहनों, बैटरियों व सौर पैनलों के लिए अत्यावश्यक हैं। ये सभी तत्व सीमित मात्रा में पृथ्वी पर उपलब्ध हैं और उनके खनन से न केवल पारिस्थितिकी को हानि पहुंचती है बल्कि ऊर्जा की भी भारी खपत होती है। अत: ई-कचरे का पुनर्चक्रण इन दुर्लभ संसाधनों की ‘दूसरी खुदाई’ के समान है, जो नए खनन की आवश्यकता को कम कर पृथ्वी के प्राकृतिक संतुलन की रक्षा करता है।
ई-कचरा वास्तव में एक खजाना है, यदि इसे वैज्ञानिक और जिम्मेदार तरीके से पुन: उपयोग किया जाए। उदाहरण के तौर पर एक टन मोबाइल फोन सर्किट बोर्ड से लगभग 300 से 400 ग्राम सोना प्राप्त किया जा सकता है जबकि इतनी मात्रा में सोना निकालने के लिए प्राकृतिक खदानों में लगभग 80 टन मिट्टी की खुदाई करनी पड़ती है। इसी प्रकार, ई-कचरे से तांबा, चांदी, पैलेडियम व एल्युमिनियम जैसी धातुएं भी निकाली जा सकती हैं। यदि विश्व के केवल 20 प्रतिशत ई-कचरे का भी सही तरीके से पुनर्चक्रण किया जाए तो हर साल करीब 10 अरब डॉलर मूल्य की कीमती धातुएं वापस प्राप्त की जा सकती हैं। यह न केवल आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि सतत विकास की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। परंतु जब यही ई-कचरा बिना किसी प्रक्रिया के खुले में फैंक दिया जाता है या जलाया जाता है तो यह हमारे पर्यावरण के लिए घातक साबित होता है। इसमें मौजूद सीसा, पारा, कैडमियम, क्रोमियम व ब्रोमिनेटेड फ्लेम रिटार्डेंट जैसे जहरीले तत्व मिट्टी, जल व वायु को प्रदूषित कर देते हैं। आज ज़रूरत है कि सरकारें, उद्योग, संस्थान और आम नागरिक सभी मिलकर इस दिशा में ठोस कदम उठाएं ताकि हमारा डिजिटल भविष्य वास्तव में हरित, सुरक्षित और टिकाऊ बन सके।