क्या धान का नुकसान गेहूं की फसल से पूरा हो सकेगा ?
पिछले माह अक्तूबर की शुरुआत में और उससे पहले अगस्त में भारी बारिश होने के कारण खरीफ की फसल का विशेष तौर पर धान और बासमती जो लगभग 31 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल पर लगाये जाते हैं, का बहुत नुकसान हुआ। राजस्व विभाग की रिपोर्ट के अनुसार लगभग 3 लाख एकड़ क्षेत्रफल पर फसलों के नुकसान हो गया। इसलिए पंजाब सरकार ने केन्द्र से 20,000 करोड़ रुपये का राहत पैकेज देने की मांग की है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बाढ़ संबंधी दौरे दौरान बाढ़ के कारण हुए नुकसान के लिए 1600 करोड़ रुपये देने का ऐलान किया है, जिसको पंजाब सरकार ने बिल्कुल नाममात्र कहा है।
प्रकृति के कहर भाव पहले भी भारी बारिश, बाढ़, चाइना वायरस (धान के पौधे का छोटा होना), झुलस रोग, हल्दी रोग आदि ने बहुत से क्षेत्रों में मुख्यतौर पर धान की फसल को तबाह करके रख दिया, जिस कारण मंडियों में पिछले साल के मुकाबले कम पैदावार बिकने के लिए आई है। किसानों को दोहरा नुकसान हो रहा है। उन्होंने न्यूनतन समर्थन मूल्य भी नहीं मिल रहा, क्योंकि धान और बासमती की नमी निर्धारित सीमा 17 प्रतिशत से अधिक है। किसानों द्वारा मांग की जा रही है कि इस सीमा को 21 प्रतिशत तक किया जाए। खरीफ विशेष तौर पर धान, बासमती से हुए इस नुकसान की पूर्ति के लिए सरकार और किसानों का प्रयत्न है कि गेहूं की अच्छी फसल ली जाए। परन्तु धान की कटाई देरी के साथ होने के कारण गेहूं की बिजाई समय पर नहीं हो सकेगी। समय के बाद की गेहूं की बिजाई पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना अनुसार उत्पादन घटाती है। किसान बिजाई के लिए गेहूं की इस प्रकार की किस्में चुनते हैं, जो बिजाई के आदर्शक समय (जो 20 अक्तूबर से 20 नवम्बर तक है) दौरान यदि फसल न भी बीजी जाये तो भी उसकी उत्पादकता में कोई विशेष कमी न आए। मंडी में गेहूं की किस्मों की भरमार है। पी.बी.डब्ल्यू. 826, डी.बी.डब्ल्यू. 869, डी.बी.डब्ल्यू. 824, एच.डी. 3386, एच.डी. 3406, एच.डी. 3369, डी.बी.डब्ल्यू. 372, डी.बी.डब्ल्यू. 371, डी.बी.डब्ल्यू. 370, डी.बी.डब्ल्यू. 327, डी.बी.डब्ल्यू. 222, डी.बी.डब्ल्यू. 187 और डब्ल्यू.एच. 1105 आदि किस्में हैं। किसान असमंजस में हैं कि वह कौन सी किस्म का चुनाव करें।
खरीफ की ऋतु समाप्त होने को है। अगला सप्ताह शुरू होने के साथ रबी का संदेशा मिल रहा है। अभी तक तो मंडियों में धान की कम समय में पकने वाली पूसा बासमती 1509 किस्म की फसल ही बहुत आई हुई है, जिसका योग्य मूल्य भी किसानों को नहीं मिल रहा। सबसे अधिक गुणवत्ता अैर लम्बे चावल वाली पूसा बासमती 1121 किस्म की फसल तो अभी खड़ी है। यह अभी तक मंडियों में बिकने के लिए नहीं आई। अधिकतर यह किस्म विदेशों को निर्यात की जाती है और दूसरी किस्में जैसे पी.बी. 1509 जो विदेश भेजी जाती हैं, वह भी पी.बी. 1121 के लेबल तले ही निर्यात की जा रही है। चाहे पी.बी. 1509 किस्म के चावलों की गुणवत्ता पी.बी. 1121 किस्म के चावल से कम नहीं, परन्तु खाड़ी के देशों और सबसे अधिक बासमती आयात करने वाले ईरान और अन्य यूरोपीय देशों में पूसा बासमती 1121 किस्म के लेबल लगाकर बेचे जा रहे चावल ही उपभोक्ताओं को पसंद हैं।
किसान रबी की फसल विशेष तौर पर गेहूं जो 35-26 लाख हैक्टेयर पर बीजी जाती है (चाहे धान की फसल अभी खड़ी है) परन्तु उस संबंधी वह सुचेत हैं। प्रत्येक छोटा-बड़ा किसान गेहूं बीजता है। नवम्बर के पहले सप्ताह से चौथे सप्ताह तक के समय दौरान गेहूं की ज्यादातर बिजाई होगी। पंजाब के नाममात्र क्षेत्रफल को छोड़ कर तकरीबन सारी बिजाई सिंचाई वाला क्षेत्र होती है।
विशेषज्ञों के अनुसार यदि गेहूं की फसल को 30 से 50 प्रतिशत धान के अवशेष उपलब्ध हो जाएं तो ज़मीन की उपजाऊ शक्ति में अधिक वृद्धि होगी। किसानों को खाद डालने की भी वैज्ञानिक तकनीक अपनानी चाहिए। उनको सिफारिश की गई मात्रा से अधिक खाद नहीं डालनी चाहिए। जैसे कि वह चार-चार और पांच-पांच थैले धान और गेहूं की फसल में यूरिया के डाले जाते हैं और डी.ए.पी. भी विशेषज्ञों की सिफारिश से अधिक डाले जा रहे हैं। इससे किसानों का खर्चा बढ़ता है और कीड़े-मकौड़े और ज़मीन से संबंधित अन्य समस्याएं होती हैं। बिजाई दो-तरफा करने से भी उत्पादन में वृद्धि होती है। बिजाई के समय ज़मीन पूरे समय पर होनी चाहिए। बैड्डां पर बिजाई करने के लिए केवल पांच सैंटीमीटर की सिंचाई ही चाहिए, जबकि समतल खेत में कहीं अधिक सिंचाई आवश्यक है।