अभी पंजाब में नहीं आ रहे विदेशी विश्वविद्यालय ?
उनके बस में है नहीं ये हमको भी मालूम है,
फिर भी उनसे चांद की हम जुस्तजू करते हैं क्यों?
कई बार पता होता है कि इन तिलों में तेल नहीं, परन्तु फिर भी व्यक्ति बार-बार कोशिश करता है कि शायद इस बार तेल निकल ही आएगा। ऐसी ही आदत मुझ जैसे लेखकों की बन जाती है जो बार-बार वक्त के शासकों को कुछ करने के लिए कहते रहते हैं, चाहे उनके कहने का वे एक कौड़ी मूल्य भी न डालते हों। शिक्षा के बारे में महान इऩ्कलाबी नेल्सन मंडेला के शब्द हैं, ‘ज्ञान वह सबसे शक्तिशाली हथियार है, जिससे आप पूरी दुनिया बदल सकते हो।’
भारत की परम्परा रही है कि तालिब-ए-इल्म (विद्यार्थी) तक्षशिला तथा नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों (यूनिवर्सिटियों) में जाकर उच्च शिक्षा हासिल करते थे। पंजाब तथा सिखों के लिए भी शिक्षा का क्या महत्व है, इस बारे में गुरबाणी में साफ वर्णन है और साहिब श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के चुनिंदा सिखों को भारतीय दर्शन तथा संस्कृत की शिक्षा प्राप्त करने के लिए काशी भेजना (काशी उस समय भारतीय दर्शन तथा शिक्षा हासिल करने का केन्द्र था) भी इसका एक उदाहरण है। वर्तमान युग में पंजाब के विद्यार्थी देश के तीन पहले राज्यों में आते हैं जो पढ़ने के लिए विदेश जाते हैं, परन्तु अफसोस कि उनमें से अधिकतर पढ़ने के लिए नहीं, अपितु सिर्फ पी.आर. तथा फिर नागरिक बनने के लिए जाते हैं और उनकी पहली पीढ़ी पंजाब में आए पूर्वी मज़दूरों के भांति मज़दूरी ही करती है। ़खैर, यह आज का विषय नहीं है। विषय तो पंजाबियों को लिए विश्व स्तर की शिक्षा का है, जिसमें हमारा पंजाब लगातार पिछड़ता जा रहा है। इसमें दोष सिर्फ मौजूदा सरकार का ही नहीं, अपितु पूर्व की सरकारों का भी है।
विगत दिवस राष्ट्रीय समाचार पत्रों में एक समाचार देखा, जो पंजाब के अधिकतर समाचार पत्रों में दिखाई नहीं दिया। हालांकि पंजाब में इसे पंजाब के दृष्टिकोण से अधिक महत्व मिलना चाहिए था और इस समाचार की ओर पंजाब सरकार का ध्यान जाना भी ज़रूरी है। समाचार यह है कि विश्व की शीर्ष लगभग 17 यूनिवर्सिटियां भारत में अपने कैम्पस खोल रही हैं और इनमें से एक भी पंजाब में नहीं खोला जा रहा।
वास्तव में भारत सरकार की नई शिक्षा नीति एन.ई.पी.-2020 तथा यूटिवर्सिटी ग्रांट कमिशन द्वारा ‘भारत में विदेशी उच्च शैक्षणिक संस्थानों के कैम्पस की स्थापना तथा संचालन’ के लिए निर्धारित किए गए दिशा-निर्देशों के बाद विश्व के 500 उच्च दर्जे के विश्वविद्यालयों के लिए मार्ग प्रशस्त किया गया है कि वे भारत में अपने ‘भौतिक’ कैम्पस बनाएं। ये नियम 2047 तक विकसित तथा शिक्षित भारत के लक्ष्य की प्राप्ति का हिस्सा हैं। ये कैम्पस भारतीय विद्यार्थियों को विश्व दृष्टिकोण, एक्सपोज़र तथा नये अनुसंधानों के समकक्ष बनाने का अवसर प्रदान करेंगे। यहां शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को विदेशों में जाकर मज़दूरी नहीं करनी पड़ेगी। वे अपने देश में भी उच्च दर्जे के रोज़गार के हकदार बन जाएंगे और बाहरी देश भी उन्हें सीधी पी.आर. ही नहीं देंगे, अपितु नौकरी की पेशकश करना भी उनकी ही ज़रूरत होगी, क्योंकि इन कैम्पस में डिग्री प्राप्त करने वाले विद्यार्थी की डिग्री सिर्फ भारत में ही मान्यता-प्राप्त नहीं होगी, अपितु उस देश में भी मान्य होगी, जिस देश की यूनिवर्सिटी का सम्बद्ध कैम्पस होगा। इन कैम्पस में आन-लाईन तथा दूर रह कर पढ़ाई अर्थात डिस्टैंस शिक्षा के लिए कोई विशेष स्थान नहीं होगा, अपितु विद्यार्थियों को कैम्पस में रह कर पढ़ाई करनी पड़ेगी।
उल्लेखनीय है कि अब तक भारत में लगभग 17 यूनिवर्सिटियां जिनमें, क्वीन्स यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ सरी, कान्वैंट्री यूनिवर्सिटी, यूनिवर्सिटी ऑफ लिवरपूल, यूनिवर्सिटी ऑफ साऊथैम्पटन, यूनिवर्सिटी ऑफ एडरबीन, यूनिवर्सिटी ऑफ योर्क जो यू.के. की यूनिवर्सिटियां हैं, यूनिवर्सिटी ऑफ व्लौनगौंग, यूनिवर्सिटी ऑफ वैस्टर्न आस्ट्रेलिया, विक्टोरिया यूनिवर्सिटी तथा वैस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी जैसी आस्ट्रेलियाई यूनिवर्सिटियों के अतिरिक्त इलीनाइज़ इंस्टीच्यूट ऑफ टैक्नोलाजी (यू.एस.ए.), इंस्टीच्यूट ऑफ यूरोपीन डिज़ाइन (इटली), लिंकनड यूनिवर्सिटी (मलेशिया) तथा ला-ट्रोब यूनिवर्सिटी भी शामिल हैं, ये भारत में या तो कैम्पस खोल चुकी हैं या जल्दी ही खोल रही हैं। इनमें से 6 या 7 तो अकेले गुजरात में तथा 3 से 4 अकेले महाराष्ट्र में कैम्पस खोल रही हैं, जबकि एक तमिलनाडु, एक उत्तर प्रदेश, एक हरियाणा में, एक तेलंगाना में और दो कर्नाटक में कैम्पस बना रही हैं, परन्तु अफसोस कि पंजाब में एक भी यूनिवर्सिटी अभी तक नहीं आई।
परन्तु अभी अवसर है कि पंजाब सरकार अपने तौर पर कुछ विश्व प्रसिद्ध यूनिवर्सिटियों के साथ सम्पर्क करके यहां उनके कैम्पस खुलवाए ताकि पंजाबी, जो शिक्षा के क्षेत्र में पहले ही इतने पिछड़ गए हैं कि आज वे आई.ए.एस., पी.सी.एस. तथा अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं में बिहार जैसे राज्यों से भी बहुत पीछे हैं। यदि हमने यह अवसर न संभाला तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा। पंजाबी बहुत पिछड़ जाएंगे।
अभी भी वक्त है तुम सोच लो
एक बार फिर से मेरे हमदम,
अरे ताऱीख के माथे के
द़ागों में गिने जाओगे तुम भी।
—लाल फिरोज़पुरी
शिरोमणि कमेटी प्रधान का चुनाव तथा नया अकाली दल
शिरोमणि कमेटी के प्रधान का चुनाव तीन नवम्बर को हो रहा है। इस बार भी जीत अकाली दल बादल की होना सुनिश्चित है, क्योंकि कमेटी में बादल दल के चुने सदस्यों की ही बहु-संख्या है। शिरोमणि कमेटी में बादल दल का प्रमुख विरोधी दल नया बना ‘अकाली दल (पुनर-सुरजीत)’ अभी तक प्रधान के चुनाव लड़ने या न लड़ने की दुविधा में फंसा दिखाई दे रहा है। चाहे इस दल के प्रधान ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने हमें बताया है कि इस बारे में फैसला दीवाली के बाद पार्टी की बैठक में लिया जाएगा, परन्तु जो सूचनाएं हमारे पास हैं, उनके अनुसार इस पार्टी में इस चुनाव को लेकर बिल्कुल अलग-अलग सोच वाले दो गुट हैं। एक बड़ा गुट चाहता है कि जब हमें यह पता है कि हम जब तक जनरल हाऊस का पुन: चुनाव नहीं करवा लेते, जीत ही नहीं सकते तो इस चुनाव में भाग लेने का कोई मतलब ही नहीं, परन्तु एक दूसरा गुट मौदान खाली छोड़ने के पक्ष में नहीं है। हमारी जानकारी के अनुसार पार्टी में दबाव बन रहा है कि प्रधानगी चुनाव का बहिष्कार करके पार्टी के प्रमुख नेता उस दिन दिल्ली में रोष प्रकट करें और शिरोमणि कमेटी के जनरल हाऊस के नये चुनाव की मांग करें। हालांकि यह चर्चा भी है कि इस बार यदि अकाली दल (पुनर-सुरजीत) ने प्रधान का चुनाव लड़ने का मन बनाया तो शायद बीबी जगीर कौर इस बार उम्मीदवार नहीं होंगी, जबकि एक अन्य पूर्व प्रधान गोबिन्द सिंह लौंगोवाल के उम्मीदवार होने के आसार बन सकते हैं।
यह मुद्दा, मुद्दा ही नहीं होना चाहिए
हैरानी की बात है कि टी.वी. चैनलों, वैब चैनलों तथा सोशल मीडिया पर छोटी-छोटी ऐसी बातों को इस तरह क्यों पेश किया जाता है, जैसे ये कोई बहुत बड़े मुद्दे हों।
हमारे सामने है कि नवनीत चतुर्वेदी नामक एक राजस्थानी व्यक्ति ने 10 ‘आप’ विधायकों के जाली या असली हस्ताक्षर करवा कर पंजाब की राज्यसभा सीट के लिए नामांकन पत्र भरे थे, परन्तु विधायकों ने कहा कि ये हमारे हस्ताक्षर नहीं हैं। पंजाब पुलिस ने केस दर्ज कर लिया है। चंडीगढ़ पुलिस चतुर्वेदी को गिरफ्तारी से बचाने के लिए काफी सक्रिय दिखाई दी। यह ठीक है कि मामला बहुत नाटकीय रूप धारण कर गया है, परन्तु सारे घटनाक्रम से इस तरह ही प्रतीत होता है कि कोई पक्ष इस मुद्दाविहीन मामले को बड़ी चर्चा में लाना चाहता है, चाहे कि इससे पंजाब की राजनीति, पंजाब के हितों या आम आदमी पार्टी की हार-जीत को कोई फर्क नहीं पड़ेगा। फिर लगातार इस पर बहस क्यों की जा रही है, यह बात समझ में नहीं आई। इस समय बहस का विषय तो यह होना चाहिए कि किस तरह के उम्मीदवार राज्यसभा में भेजे जा रहे हैं और क्यों? कहीं यह बहस इसी वृत्तांत को भटकाने तथा पीछे डालने की नूरा-कुश्ती तो नहीं? यह लोगों के वास्तविक मुद्दों से दूर करके ड्रामेबाज़ी में उलझाने की कोई चाल तो नहीं? अत: हमारे पंजाब-परस्त मीडिया को ऐसे मुद्दाविहीन मुद्दों को बहस का विषय बनाने से गुरेज करना चाहिए।
बेमतलब बातें करते रहते हो,
किसका मतलब पूरा करते रहते हो।
-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड, खन्ना-
-मो. 92168-60000