ट्रम्प को नोबेल पुरस्कार ?
किसी लेखक, खिलाड़ी, कलाकार, संगीतकार, फिल्मकार को उसके उल्लेखनीय काम के लिए सम्मानित किया जाता है। कोई भी सम्मान छोटा-बड़ा नहीं होता। सम्मान किसी लेखक-वैज्ञानिक या रंगकर्मी को उसकी कला, समाज के साथ उसकी प्रतिबद्धता, रूढ़ियों को तोड़कर आगे बढ़ने की प्रगतिशीलता, संघर्ष और सत्यनिष्ठा को देखते हुए दिया जाता है। हालांकि पतनशीलता सभी क्षेत्रों में आ रही है और कुछ पुरस्कार राजनीतिक कारणों, या किसी वर्चस्ववादी शक्ति व्यक्ति के प्रभावाधीन दिये जाने लगे हैं, लेकिन ऐसे सुनियोजित पुरस्कारों की वह गरिमा भी नहीं रहती। नोबेल पुरस्कार अभी तक अनेक कारणों से चर्चा में है। हालांकि कई बार विवाद से बाहर नहीं रहा, लेकिन इस पिछले कुछ समय से ट्रम्प की बार-बार व्यक्त की गई हार्दिक इच्छा के कारण उसकी विश्व भर में चर्चा है। ट्रम्प ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा-सभी चाहते हैं कि उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिलना चाहिए। क्योंकि मैंने सात महीनों में सात कभी न खत्म होने वाले युद्धों को समाप्त किया। यह ट्रम्प का दावा है, जिसे आप अतिश्योक्ति से भरा, बेहिचक लेकिन सफेद झूठ से भरा वक्तव्य है। एक सर्वेक्षण के अनुसार केवल 22 प्रतिशत अमरीकी व्यस्क मानते हैं कि ट्रम्प को नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिए। 76 प्रतिशत ने कहा कि वह इसके हकदार नहीं। ट्रम्प के अपने देश में लोग यही सोच रहे हैं कि ट्रम्प ने सात युद्ध समाप्त नहीं करवाए। लगता है कि उनके प्रयत्न से एक भी युद्ध खत्म नहीं हुआ।
ट्रम्प आजकल यथार्थ पर कम,कल्पना में अधिक रहते हैं। उदाहरण बहुत से हैं। उन्होंने इजिप्ट और इथिपोपिया के बीच युद्ध खत्म करने का श्रेय लिया। इथिपोयिन ऐनेसा डैम को लेकर द्विपक्षीय तनाव भले ही है, लेकिन कभी युद्ध नहीं हुआ। इसी तरह ट्रम्प ने कोसोबो और सर्बिया के बीच एक काल्पनिक युद्ध को समाप्त करने का दावा किया। शत्रुता के इतिहास के बावजूद 1990 के दशक के बाद से दोनों देशों में युद्ध कभी हुआ ही नहीं। ट्रम्प ने जो युद्ध हुआ ही नहीं उसको कैसे और क्यों खत्म करवा दिया। यह काफी आसान नहीं कि जो युद्ध हुआ ही नहीं, उसको रुकवा कर श्रेय अपने नाम कर लो।
भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध खत्म करवाने का दावा भी अजीब है। देश के प्रधानमंत्री घोषणा कर चुके हैं कि भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध रुकवाने में किसी देश के किसी नेता का कोई दखल नहीं हुआ। हालांकि विपक्ष ट्रम्प की बात को सही मानकर भारतीय नेतृत्व को घेरने की कोशिश करता रहा।
आर्मेनिया और कम्बोडिया के बीच युद्ध के बारे में ट्रम्प का दावा सबसे अधिक काल्पनिक लगा। इन दोनों देशों के बीच की दूरी लगभग 6500 किलोमीटर है। उनके बीच संघर्ष कभी हुआ ही नहीं। आर्मेनिया का इस वर्ष पड़ोसी अजरबैजान के साथ टकराव ज़रूर हुआ था और ट्रम्प ने दोनों देशों का संघर्ष खत्म करने संबंधी संयुक्त घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर करने के लिए राजी करवा लिया, लेकिन उसका हुआ क्या? उसका अनुपालन रुक गया है।
ट्रम्प महोदय का एक ओर दावा इज़रायल और ईरान के बीच युद्ध रुकवाने का रहा है, लेकिन सत्य कुछ और है। सच यह है कि उन्होंने ही इज़रायल को ईरानी ठिकानों पर हमला करने की अनुमति दी थी। इज़रायल को ईरानी हमलों से बचाने के लिए उन्होंने अपने सैन्य उपकरण तैनात कर दिए थे। इतना ही नहीं ईरानी परमाणु ठिकानों पर बमबारी का आदेश भी इन्हीं का था। क्या इसी को शांति स्थापना की कोशिश कहा जाना चाहिए?
नोबेल के लिए ट्रम्प ने युद्ध कैम्पेन की है। यह तरीका जाना पहचाना है। पहले एक समस्या बनाओ और फिर उसे सुलझाने का दावा करो और पुरस्कार मांग लो। ट्रम्प शांति बहाली के लिए नहीं, सिर्फ सुर्खियों में रहने का प्रदर्शन कर रहे हैं। उन्हें नोबेल की चाहत है, परन्तु चाहत काम नहीं करती। सभी ठीक से समझ सकते हैं कि वह नोबेल पुरस्कार के लिए योग्य है या नहीं।