रैबीज़ मुक्त देश का लक्ष्य

आवारा कुत्तों और उनके द्वारा काटे गये लोगों में रैबीज़ रोग की बढ़ती संख्या को लेकर केन्द्र और प्रदेश की सरकारें एक बार फिर दो-चार होने को विवश हैं। यह समस्या इस बार इसलिए अधिक गम्भीर हो जाती है कि केन्द्र सरकार ने स्वयं प्रदेश सरकारों को इस संबंधी एक विस्तृत कार्य-योजना तैयार करके केन्द्र सरकार तक पहुंचाने हेतु कहा है। इसके साथ ही केन्द्र ने इस कार्य की सम्पन्नता के लिए 31 अक्तूबर तक का अल्टीमेटम भी दिया है। केन्द्र के इस अल्टीमेटम की महत्ता इसलिए भी बढ़ जाती है कि सरकार ने अगले पांच वर्ष तक देश को रैबीज़ मुक्त बनाने हेतु एक सबल नीति बनाने की घोषणा की है। इस कार्य योजना में आवारा कुत्तों की बढ़ती संख्या, कुत्ता-काटे लोगों और उनमें बढ़ते रैबीज़ रोगियों की संख्या का पूर्ण विवरण सम्बद्ध प्रदेश सरकार को दर्ज करना होगा। उल्लेखनीय है कि इस समस्या ने लोगों को चिरकाल से परेशान कर रखा है। कुत्तों के आतंक को लेकर अक्सर केन्द्र और राज्यों की सरकारें अब तक प्राय: निद्रा-ग्रस्त रही हैं। यहां तक कि अभी पिछले ही मास देश की सर्वोच्च अदालत ने दिल्ली और आस-पास के क्षेत्रों को कुत्ता-आतंक से मुक्ति हेतु एक बड़ा आदेश पारित किया था। बेशक सर्वोच्च अदालत ने बाद में इस आदेश में संशोधन करके इसे फिलहाल वापिस ले लिया था, किन्तु सरकारें अदालत की इस दरिया-दिली को पूर्ववत हवा में उड़ाते हुए एक बार फिर निद्रा-ग्रस्त होने लगी थीं।
सम्भवत: इसीलिए केन्द्र ने एक बार फिर प्रदेश सरकारों और केन्द्र शासित क्षेत्रों के प्रशासनों को चेताया है कि इससे पूर्व कि अदालत एक बार फिर निर्णायक रौअ में आए, इस समस्या पर विचार-विमर्श अवश्य शुरू कर दिया जाना चाहिए। केन्द्र सरकार ने इस निर्देश के साथ यह भी जोड़ा है कि रैबीज़ रोग के संबंध में केन्द्र की ओर से दी जाने वाली सहायता राशि को अगले वर्ष से इस समस्या के निवारण हेतु किये गये प्रयासों के साथ जोड़ कर देखा जाएगा। जिन राज्यों की कार्य योजना अधिक स्पष्ट और कार्यशील होगी, उन्हें सहायता-राशि वितरण में प्राथमिकता अथवा अधिमान दिया जाएगा। केन्द्र सरकार की यह पहल इसलिए अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती है कि सर्वोच्च अदालत के निर्देश के बावजूद देश के अनेक राज्यों में न केवल आवारा कुत्तों की संख्या बढ़ी है, अपितु कुत्तों द्वारा काटे जाने की घटनाओं तथा इस कारण रैबीज़ का शिकार हुए लोगों की संख्या में बड़ा इज़ाफा हुआ है। 
इस समस्या की गम्भीरता देश के बाहर अर्थात विदेशों में पहुंच जाना भी एक चिन्ताजनक मुद्दा बन जाता है। अभी पिछले ही मास यानि 27 सितम्बर को राजधानी दिल्ली के स्टेडियम में दो विदेशी कोचों को दो भिन्न घटनाओं में आवारा कुत्तों ने स्टेडियम परिसर में ही काट लिया। इनमें एक महिला और एक पुरुष कोच थे। इधर न्यायालय परिसर में ही घटित हुए एक अन्य घटनाक्रम में पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा आवारा कुत्तों संबंधी सभी अवमानना याचिकाओं को सर्वोच्च न्यायालय में भेजे जाने संबंधी फैसले ने भी मामले को विस्तारित किया है। इससे सर्वोच्च न्यायालय के खिन्न होने और कोई नया आदेश जारी किये जाने की आशंकाएं भी बढ़ते प्रतीत होने लगती हैं। 
हम समझते हैं कि नि:संदेह यह समस्या अतीत में निरन्तर गम्भीर हुई है। एक आकलन के अनुसार देश में प्रत्येक वर्ष 20 हज़ार से अधिक लोग रैबीज़ का शिकार होकर मरते हैं। लाखों अन्य लोग भी कुत्तों के काटे जाने का शिकार होते हैं। यह भी तय है कि रैबीज़ हो जाने पर अन्तिम क्षण मृत्यु ही होता है। इसका कोई उपचार आज तक उपलब्ध हुआ ही नहीं। इससे बचने हेतु एकमात्र उपाय पूर्व सुरक्षा और बचाव के अन्य तरीके अपनाना ही है। ऐसी स्थिति में आवारा कुत्तों की नसबंदी, आबादी के बाहर उनके पुनर्वास हेतु अन्य उपाय तलाश करना आदि अपना कर रैबीज़ रोग से सुरक्षित होना सम्भव हो सकता है। हम समझते हैं कि केन्द्र सरकार के रैबीज़-मुक्त भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु ऐसे उपाय जितनी शीघ्रता से किये जाएंगे, उतना ही देश के लिए अच्छा होगा।

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