‘खुशवंत सिंह साहित्य उत्सव’ में साका नीला तारा तथा भारत-पाक संबंध छाये रहे

हिमाचल प्रदेश के सोलन ज़िला में पड़ते पर्वती ठिकाने कसौली को ‘खुशवंत सिंह साहित्य उत्सव’ ने लेखकों, बुद्धिजीवियों तथा विचारवानों के मन में बसा दिया है। 14 वर्ष से यह उत्सव अक्तूबर महीने के चुनिंदा दिनों में नये विषयों की महफिल का केन्द्र बनता आ रहा है। 2025 वाले उत्सव में भविष्य में आने वाली मुश्किलों से निटपने के ढंग-तरीकों पर चर्चा करना था। चर्चा करने वाले महारथियों में जनरल एम.एम. नरवाने, अमोल पालेकर, पी. चिदम्बरम, शोभा डे, मणिशंकर अय्यर, ए.एस. दुल्लत, पूजा बेदी, हरिन्दर बवेजा, संदीप भमर तथा संगीता वाल्डर्न थे। यह बाद अलग है कि सबसे अधिक चर्चा पी. चिदम्बरम की साका नीला तारा बारे टिप्पणी तथा भारत-पाक के आपसी संबंधों के बारे में हुई।
पी. चिदम्बरम ने अपनी टिप्पणी में साका नीला तारा के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सहित सेना, पुलिस, खुफिया तथा उस समय के प्रशासनिक अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया, जिनकी सलाह के कारण इंदिरा गांधी ने खाड़कुयों को हरिमंदिर साहिब की परिक्रमा में से निकालने के लिए सैन्य कार्रवाई की। पी. चिदम्बरम की इस टिप्पणी को कांग्रेसी नेता राशिद अल्वी ने भाजपा की सोच करार देकर अपने टिप्पणीकार को ऐसा घेरा कि पंडाल में हलचल पैदा हो गई। बोलने लगे शायद उन्हें पता नहीं था कि यही टिप्पणी खुशवंत सिंह स्वयं भी अपनी सिख हिस्ट्री की दूसरी जिल्द में 1984 की घटनाओं को ‘आत्म गिणती-मिणती’ कह कर इसी तरह लिख चुके थे जैसे कि :
‘किसी भी गिणती-मिणनी के अनुसार संत भिंडरावाले के पास सशस्त्र सहायकों की संख्या तीन-चार सौ से अधिक नहीं थी। ज़्यादातर जब वह पत्रकारों या दूसरे मुलाकात करने वालों को मिलते थे तो उनके पास इनमें से 10-12 लोग ही उपस्थित होते थे। हौसले वाले कमाडोज़ का सिर्फ एक ही दस्ता सादा कपड़ों में जाकर उनहें नियंत्रित कर सकता था, परन्तु सरकार ही जानती होगी कि क्यों उसने अकाल तख्त साहिब पर धावा बोलने के लिए अपनी सेना को इतनी तोपों तथा टैंकों सहित भीतर भेजा। यहां सिखों का यह सोचना कि इंदिरा गांधी ने यह सब कुछ सिखों को सबक सिखाने के लिए किया समझ आता है। सिख स्वभाव के लिए साका नीला तारा से दूर या निकट संबंध रखने वाले किसी व्यक्ति को भूलना तथा माफ करना संभव नहीं था। सरकार को इस घातक आकलन का बहुत भंयकर मूल्य देना पड़ा, सबसे अधिक लोकप्रिय इंदिरा गांधी की हत्या के रूप में।’ 
साका नीला तारा को वर्तमान नेता तथा टिप्पणीकार इतिहास के पृष्ठों में से नहीं मिटा सकते। यह एक ऐसा सच है, जिसे मस्सा रंगड़ के हरिमंदिर साहिब में अश्लील नृत्य कराने से तौला जाता है, जबकि बाबा महताब सिंह तथा भाई सुक्खा सिंह ने मस्से की हत्या करके प्रशंसा प्राप्त की थी।
पी. चिदम्बरम की भांति पूर्व केन्द्रीय मंत्री मणिशंकर अय्यर ने उस समय के सैन्य अधिकारियों को कोसा, जिन्होंने इंदिरा गांधी के आदेश पर अमल करते हुए उचित योजनाबंदी तथा सुझबूझ नहीं बरती। उन्होंने अपने भाषण में राजीव गांधी वाले पंजाब तथा कश्मीर समझौतों की विफलता का भंडा भी संत लौंगोवाल तथा शेख अब्दुल्ला के सिर पर फोड़ कर राजीव गांधी का पक्ष लिया। कहने वाले कुछ भी कहें, ‘खुशवंत सिंह साहित्य उत्सव’ में इन शब्दों ने उत्सव का दायरा ही विशाल नहीं किया, इसे चर्चा में भी लाया गया है। शुरू से ऐसे विचार उत्तम साहित्य का स्रोत बनते आए हैं। 2025 वाला उत्सव भावी पीढ़ी का मार्ग-दर्शक बन सकता है। 
यह भी अच्छी बात है कि इस उत्सव में भारत-पाक संबंधों पर भी खूब चर्चा हुई। इस चर्चा का स्रोत भी खुशवंत सिंह की रचना उनका नावल ‘ ट्रेन टू पाकिस्तान’ था, जिसे उत्सव में उतारने वाले रॉ के पूर्व प्रमुख ए.एस. दुल्लत थे। यदि मैंने अपनी पीठ थपथपानी हो तो कह सकता हूं कि पंजाबी के पाठक दास द्वारा किए गए इस नावल के पंजाबी अनुवाद को सत्तर वर्षों से पढ़ते तथा आनन्द लेते आ रहे हैं। मणिशंकर अय्यर का विचार है कि भारत-पाक संबंधों का सुधरना अलगाववादियों के लिए बढ़िया सबक है, चाहे वे जम्मू-कश्मीर के हों, लेह-लद्दाख के या द्रावड़ के। इस प्रसंग में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भी प्रशंसा की, जिन्होंने कारगिल युद्ध के कर्ता-धर्ता जनरल मुशर्रफ को आगरा वार्तालाप में शामिल होने का विशेष रूप से निमंत्रण दिया था। अय्यर की धारणा पर मुहर लगाते हुए प्रसिद्ध अदाकार अनूप सोनी ने भी जम्मू-कश्मीर में मन की दूरी मिटाने की अपील की।
इसी प्रकार पत्रकार हरिन्दर सिंह बवेजा ने इस प्रसंग को सांस्कृतिक फ्रेम में फिट करके मन की दूरी को मिटाने का संदेश दिया। उनका कहना था कि पंजाब, जम्मू-कश्मीर तथा लेह-लद्दाख गले लगने के इंतज़ार में हैं और दूरियों से मुंह मोड़ने के लिए तरसते हैं। उन्होंने कश्मीरियों को हौवा बना कर पेश करने की धारणा को निरर्थक तथा व्यर्थ कहा। यह भी कि ऐसी दूरियां ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी चालों से मिटने वाली नहीं। सबूत के रूप में उन्होंने जम्मू-कश्मीर की एक ओर से दूसरी ओर तक ताज़ा तिरंगा यात्रा का उदाहरण दिया। यह पहली बार है कि इस तीन दिवसीय उत्सव में खुशवंत सिंह अनुपस्थित होकर भी पूरी तरह हाज़िर प्रतीत हो रहे थे, अपनी दो जिल्दों वाली ‘सिख हिस्ट्री’ तथा नावल ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ अर्थात ‘पाकिस्तान मेल’ के रूप में। ज़िन्दाबाद! 
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