आत्मिक उजाले का महापर्व है दीपावली
दीपावली केवल दीपों का ही पर्व नहीं बल्कि यह आत्मा के भीतर बसे अंधकार को मिटाने की साधना का अनुष्ठान है। यह भारतीय संस्कृति की आत्मा है, जो जन-जन के जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली का उजास फैलाती है। पांच दिवसीय इस उत्सव की श्रृंखला धनतेरस से आरंभ होकर भाई दूज तक चलती है, पर इसका अर्थ केवल उत्सव नहीं, बल्कि एक गहन आध्यात्मिक यात्रा है। दीपावली केवल एक त्योहार नहीं, इसका धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व भी है। दीपावली का संदेश है कि सच्चा उजाला बाह्य नहीं, बल्कि भीतर में होना चाहिए। हमारी आंतरिक ‘उज्ज्वलता’ ही सच्ची ‘धन्यता’ है, वही हमारे कर्म, करुणा और विवेक का उजाला है। दीपावली का मूल भाव है, अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, नकार से स्वीकार की ओर बढ़ना। जब लाखों दीप जलते हैं, तो वे केवल घरों को नहीं, हृदयों को भी प्रकाशित करते हैं। प्रत्येक दीप हमें यह संदेश देता है कि परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों, जीवन में धर्म के दीप जलाते रहना है, बुझना नहीं चाहिए।
दीपावली का संबंध अनेक ऐतिहासिक, धार्मिक और दार्शनिक प्रसंगों से जुड़ा है। इसी दिन भगवान रामचंद ्रजी चौदह वर्ष के वनवास और रावण पर विजय प्राप्त कर अयोध्या लौटे थे। यह धर्म, मर्यादा और सत्य की विजय का प्रतीक बना। प्राचीन हिन्दू महाकाव्य महाभारत के अनुसार को 12 वर्षों के वनवास व एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद पांडव बन्धु इसीदिन प्रकट हुए थे। जैन परंपरा में यह दिन अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक है, क्योंकि इसी दिन भगवान महावीर निर्वाण को प्राप्त हुए थे। इसीलिए इसे महावीर निर्वाण दिवस कहा जाता है। महावीर का निर्वाण केवल देह का अंत नहीं था, बल्कि आत्मा की पूर्ण जागृति का क्षण था, जब उन्होंने संसार के अंधकार में मोक्ष का शाश्वत दीप प्रज्वलित किया। बौद्ध परंपरा में यह दिन बुद्धत्व की स्मृति का प्रतीक है। वहीं सिख परंपरा में यह दिन श्री गुरु हरगोबिंद साहिब जी के कारावास से मुक्ति दिवस के रूप में मनाया जाता है, जब उन्होंने अन्य 52 राजाओं कैदियों को भी मुक्त कराया था। इन सभी प्रसंगों में एक अद्भुत एकता झलकती है-अंधकार से मुक्ति, ज्ञान से आलोक और अहंकार से आत्मा की ओर यात्रा। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात अंधकार की ओर नहीं, प्रकाश की ओर जाओ, यह उपनिषदों की आज्ञा है।
दीपावली अब केवल राष्ट्रीय ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय पर्व बन गया है। दीपावली को विशेष रूप से हिंदू, जैन और सिख समुदाय के साथ विशेष रूप से दुनिया भर में मनाया जाता है- श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया, सिंगापुर, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, फिजी, मॉरीशस, केन्या, तंजानिया, दक्षिण अफ्रीका, गुयाना, सूरीनाम, त्रिनिदाद और टोबैगो, नीदरलैंड, कनाडा, ब्रिटेन, संयुक्त अरब अमीरात, और संयुक्त राज्य अमरीका। भारतीय संस्कृति की समझ और भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक प्रवास के कारण दीपावली मनाने वाले देशों की संख्या धीरे-धीरे बढ़ रही है। कुछ देशों में यह भारतीय प्रवासियों द्वारा मुख्य रूप से मनाया जाता है। अन्य दूसरे स्थानों पर यह सामान्य स्थानीय संस्कृति का हिस्सा बनता जा रहा है।
एक पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु ने नरसिंह रूप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। कई लोग दीपावली को धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी से जुड़ा हुआ भी मानते हैं। आज दीपावली का स्वरूप भले ही भव्य और चकाचौंध से भरा हो, पर इसका सच्चा अर्थ है भीतर के दीप को जलाना। जैसे हम घरों की सफाई करते हैं, वैसे ही अपने मन की सफाई भी आवश्यक है। ईर्ष्या, क्रोध, स्वार्थ और असत्य का अंधकार मिटे, और उसकी जगह सच्चाई, सहिष्णुता, करुणा और सेवा का उजास फैले-यही दीपावली का सार है। महात्मा गांधी ने कहा था, ‘सच्चा दीपक वही है जो अंधकार में राह दिखाए, न कि केवल सजावट बने, यदि हम एक दीप अपने भीतर जलाएं-मानवता का, विनम्रता का, और सहअस्तित्व का तो यही सबसे बड़ा पूजन होगा। दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए ज़रूरी है, दीये बाहर के ही नहीं, दीये भीतर के भी जलने चाहिएं। दीया कहीं भी जले, उजाला देता है। दीए का संदेश है-हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें।