दोहरी नीति पर चल रहे हैं डोनाल्ड ट्रम्प
धमकाने और धौंस की नीति पर चल रहे अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प अपनी झूठी चौधर और खनिजों सम्पदा के लिए लगता है दुनिया के देशों में अमरीकी विरोधियों की बड़ी फौज तैयार कर रहे हैं। शांति के नोबेल पुरस्कार का ट्रम्प का सपना धरा का धरा ही रह गया है और अब 30 प्रतिशत टैरिफ के अतिरिक्त 100 प्रतिशत और यानी कि 130 प्रतिशत टैरिफ लगाकर चीन के खिलाफ भी आर्थिक क्षेत्र में खुली जंग शुरू कर दी है। कनाडा को अमरीका का नया राज्य बनाने और रूस-यूक्रेन युद्ध के पीछे के अमरीकी एजेंडे को आज दुनिया के देश समझ ही चुके हैं।
पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष के साथ डिनर करने से अमरीका के गिरते स्तर को दुनिया के देश देख ही चुके हैं। भारत जैसे देश के साथ ट्रम्प का रवैया सबके सामने हैं। खनिजों के लिए पाकिस्तान पर डोरे डाले जा रहे हैं। दुनिया के देशों के बीच युद्ध समाप्त करवाने का श्रेय लेने के प्रयास और शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए नोबल संस्था तक को धमकाने के कुत्सित प्रयास से ट्रम्प स्वयं और अमरीका दोनों की ही हेठी कराने में कोई कमी नहीं छोड़ी है। ट्रम्प द्वारा भारत पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाना और वीज़ा नियमों में बदलाव करना अपने ही पांवों पर कुल्हाड़ी मारने के समान है। हालांकि भारत किसी भी तरह से ट्रम्प के दबाव में नहीं आया और उसने नये बाज़ार की संभावनाएं को तलाशना आंरभ कर दिया। ट्रम्प भारत को तो रूस से तेल खरीदने से मना कर रहे हैं, लेकिन वह स्वयं रूस के साथ व्यापार तथा कारोबार बढ़ाने के इच्छुक हैं। विश्व के अन्य देशों को भी रूस के साथ व्यापार न करने को कहते रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने इस संबंध में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ फोन पर बात भी की है। वैसे भी अमरीका कई महत्वपूर्ण वस्तुओं का रूस से लगातार आयात कर रहा है। आर्थिक विश्वलेषकों का मानना है कि चीन पर भारी अमरीकी टैरिफ का भारत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और भारत का निर्यात बढ़ने की संभावनाएं बढ़ सकती हैं। स्वाभाविक है चीन के उत्पाद महंगे हो जाएंगे और भारतीय उत्पाद कपड़ा, हैंडीक्राफ्ट, खिलौने आदि तुलनात्मक रूप से सस्ते हाेंगे तो भारतीय उत्पादों की मांग कम होने के स्थान पर बढ़ जाएगी। जानकारों का मानना है कि अमरीकी टैरिफ युद्ध का अमरीका पर ही विपरीत प्रभाव पड़ेगा। आज अमरीका भारतीय प्रतिभा का लाभ उठा रहा है, परन्तु नए वीज़ा नियमों और विदेशियों के वहां से पलायन से प्रतिभावान लोगों की कमी हो आएगी। लगता तो यहां तक है कि आने वाले समय में अमरीका विदेशी प्रतिभा के मामले में शून्य हो जाएगा और अमरीकी प्रतिभा का आगे आना इतना आसान भी नहीं होगा।
ट्रम्प को समझना यह होगा कि टैरिफ की मार का सबसे नकारात्मक प्रभाव अमरीका पर ही पड़ेगा। विदेशी उत्पाद महंगे होंगे तो दूसरी और अमरीकी अर्थ-व्यवस्था पर भी निश्चित रूप से विपरीत प्रभाव पड़ेगा ही। अमरीका दरअसल दूसरे देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करना चाहता है परन्तु वह यह भूल रहा है कि अर्थव्यवस्था एक-दूसरे की सहायता से आगे बढ़ती है। देशी-विदेशी मांग को बढ़ाना ही होता है। स्थानीय के साथ ही विदेशों में भी बाज़ार खोजना होता है। ऐसे में बड़े-बड़े व्यापार समझौते देशों के बीच होते हैं। अमरीका ने जिस तरह से व्यापार समझौतों को दरकिनार कर टैरिफ वार और तरह-तरह के अवरोध खड़े करने के प्रयास किये हैं, उनका असर अंततोगत्वा अमरीकी अर्थव्यस्था पर भी पड़ेगा। लगता है ट्रम्प अमरीका को आत्मघाती गोल की तरफ ले जा रहे हैं। दुनिया के देशों को वैश्विक ग्राम की परिकल्पना को ही आगे बढ़ाना होगा। आज दुनिया के देश कहां खड़े हैं, यह कोरोना काल में सबको पता चल चुका है। इसके साथ ही जिस तरह से युद्ध और वैष्विक अशांति के कारण पलायन का दौर चला है, उसका खमियाजा कई योरोपीय देश भुगतने लगे हैं। ऐसे में समय रहते नीतियों में बदलाव ज़रूरी हो जाता है। जिस तरह से तकनीक ने एक-दूसरे को नज़दीक लाने का प्रयास किया है, उसे आगे बढ़ाना वैश्विक नेताओं का दायित्व हो जाता है। वर्तमान में ‘अकेले चलो’ की नीति से आगे बढ़ने और कुछ पाने की कल्पना करना बेमानी होगा, इस बात को देर-सबेर समझना ही होगा।