दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश पूजन का महत्व

दीपावली का नाम लेते ही आंखों के सामने रोशन दीपकोत्सव की लड़ी का उजास फैल जाता है। दीपों की पंक्तियां, गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां और परिवार का हर्षोल्लास झिलमिलाने लगता है। लेकिन यदि हम इस पर्व के गहरे धार्मिक और सांस्कृतिक पंच पर्व की पड़ताल करें, तो पाते हैं कि दीपावली सिर्फ एक दिन की लक्ष्मी-गणेश पूजा का पर्व नहीं है बल्कि यह पांच धार्मिक अनुष्ठानों की एक आनुशंगिक श्रृंखला है, जिसे भारतीय संस्कृति ने पंच पर्व कहा है। दीपावली के इन पांच दिनों में शरीर, मन, परिवार और समाज सबकी शुद्धि और सबकी आत्मिक व आध्यात्मिक उन्नति का भाव समाहित होता है। 
लक्ष्मी-गणेश पूजन का शुभ दिन है दीपावली
कार्तिक अमावस्या की घोर अंधेरी रात दीप पर्वों से जगमगाती दीपावली की रात होती है। इस दिन अंधकार को भगाने के लिए हम दीपों की जो लड़ियां जलाते हैं, वे हमारे अंदर का आत्मबल और दृढ़ संकल्प होता है कि हम हर तरह के अंधकार से लड़कर उसे प्रकाश पर्व में बदलने के लिए कटिबद्ध हैं। इस दिन भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और माता लक्ष्मी को शुभ-समृद्धि की अधिष्ठात्री देवी मानकर पूजा करते हैं। भगवान गणेश बुद्धि और विवेक के प्रतीक हैं, तो मां लक्ष्मी श्रम और शुभ्रता से अर्जित धन का पर्याय हैं। जब हम इन दोनों की पूजा करते हैं, तो हमें धन और बुद्धि दोनो की संतुलित समृद्धि प्राप्त होती है। दीपावली की यही प्रेरणा और यही सीख है। 
दीपावली यानी अंधकार से प्रकाश की यात्रा
दीपावली शब्द ‘दीप’ और ‘अवली’ (पंक्ति) से बना है जिसका मतलब है रोशन दीयों की कतार। वैसे हाल के सालों में दिवाली या दीपावली शब्द का उच्चारण करते ही अयोध्या में दीपों की अनंत कतार के दृश्य आंखों के सामने घूम जाते हैं। लेकिन दीपावली केवल दीयों की कतार या बाहरी प्रकाश का उत्सव नहीं है बल्कि यह इंसान की आंतरिक ज्योति का जागरण पर्व है। जब जीवन में अंधकार, अज्ञान, आलस्य, ईर्ष्या और लोभ का वास होता है, तब दीप का जलाना इस बात का संकल्प या अंत: प्रतिज्ञा होती है कि हम अपने भीतर ज्ञान, संयम और सदाचार की लौ प्रज्जवलित करेंगे। जहां तक दीपावली पर्व के पीछे मौजूद पौराणिक कहानी की बात है तो इस दिन भगवान राम 14 वर्ष के बनवास के बाद अयोध्या वापस लौटे थे और अयोध्यावासियों ने इस खुशी में घी के दीये जलाये थे लेकिन दिवाली से जुड़ी कहानियां और सांस्कृतिक विरासतें यहीं खत्म नहीं होतीं। वास्तव में दीपावली भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी के विवाह का प्रतीक पर्व भी है और यही दिन जैन परंपरा में भगवान महावीर के निर्वाण का दिन है। इसलिए यह सत्य, धर्म और आत्मज्ञान का उत्सव भी है। दीपावली के साथ उल्लास, प्रकाश और हर्ष की अनेकानेक कहानियां जुड़ी हैं, तो फिर भला यह पर्व जगमग क्यों न हो।
पंच पर्वों की लड़ी
दीपावली का पर्व आत्मशुद्धि से समृद्धि तक वास्तव में पंच पर्वों की लड़ी है, जिसकी पहली लड़ी या कड़ी धनतेरस है। धनतेरस को स्वास्थ्य और शुद्धता का पर्व भी कहते हैं। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी को मनाया जाने वाला धनतेरस का पर्व भगवान धनवंतरि के जन्म या अवतरण का दिवस है और जैसा कि भारतीय समाज में मान्यता है कि स्वास्थ्य ही पहला धन है। इसलिए दीपावली पर सबसे पहले स्वास्थ्य रूपी धन के उल्लास का जश्न मनाया जाता है। इस दिन लोग घर की सफाई करने के बाद नई वस्तुओं की खरीदारी करते हैं। लेकिन नई वस्तुओं का मतलब सिर्फ सोने चांदी से नहीं है। आपके जीवन में कोई भी महत्वपूर्ण चीज़ इस दिन खरीदी जा सकती है। मूलत: यह दिन आरोग्य और आत्मबल का है। 
नरक चतुर्दशी यानी अंधकार के शमन का दिन
धनतेरस से अगला दिन हमारे भीतर के अंधकार या नकारात्मकताओं के शमन के पर्व के रूप में मनाया जाता है। इसे छोटी दिवाली या रूप चतुर्दशी भी कहते हैं। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। यह घटना इस अवधारणा की प्रतीक है कि हर व्यक्ति को अपने भीतर के नरकासुर यानी क्रोध, अहंकार और ईर्ष्या का वध करना चाहिए। इस दिन स्नान, सुगंध, दीप दान और स्वच्छता का संदेश दिया जाता है। जैन और बौद्ध धर्मों में भी रूप चतुर्दशी का दिन बहुत पवित्र और आत्म अनुशासन के पर्व के रूप में मनाया जाता है। 
गोवर्धन पूजा 
दीपावली के अगले दिन कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा या अन्नकूट उत्सव मनाया जाता है। इस पर्व का गूढ़ अर्थ यह है कि मनुष्य को प्रकृति और पर्यावरण की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि प्रकृति और पर्यावरण ही हमारे सच्चे पालनहार हैं। इस दिन ग्रामीण क्षेत्र में गौ-पूजन और अन्नकूट प्रसाद का वितरण होता है। यह समूचा पर्व हमारी कृषि परम्परा की समृद्धि और उसके प्रति ईमानदार संकल्पना का पर्व है। 
भाईदूज यानी स्नेह और पारिवारिक एकता का पर्व
दीपावली के पंच पर्वों की श्रृंखला का अंतिम पर्व भाईदूज है। कार्तिक शुक्ल द्वितीया को बहनें अपने भाइयाें के कल्याण की कामना करती हैं। यह महज एक पारिवारिक रस्म नहीं बल्कि रक्षात्मक प्रेम और सामाजिक एकता का प्रतीक है। इस दिन का संदेश है कि संबंधों की पवित्रता ही समाज की सबसे बड़ी पूंजी है। इस तरह पंच पर्वों की इस लड़ी दीपावली का अर्थ है। दीपावली का पर्व महज गणेश-लक्ष्मी पूजन तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह पर्व हमारे व्यापक जीवनदर्शन को समृद्ध करता है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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