बिहार चुनाव की गतिविधियां

जैसे-जैसे बिहार विधानसभा के चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे ही दिल्ली और पटना में राजनीतिक गतिविधियों में तेज़ी आ रही है। एक तरफ नितीश कुमार की जनता दल (यू) पार्टी है, जिसका भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) के साथ समझौता है। गठबंधन में चिराग पासवान के नेतृत्व वाली लोक जन शक्ति पार्टी, उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा पार्टी और जीतन राम मांझी की हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा (सैकुलर) आदि पार्टियां शामिल हैं। दूसरे महागठबंधन में तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनता दल (राजद), कांग्रेस और कुछ वामपंथी पार्टियां शामिल हैं।
इस समय बिहार में नितीश कुमार मुख्यमंत्री हैं। भाजपा उनकी सहयोगी पार्टी है। पिछली बार चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने आज़ाद रूप से चुनाव लड़ा था। उन्हें चाहे कोई सीट तो नहीं मिली थी परन्तु इससे जनता दल (यू) को भारी नुकसान हुआ था, जिसकी पहले जीती हुई 71 सीटों में से सिर्फ 43 सीटें ही रह गई थीं। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने तब नितीश कुमार का खेल एक तरह से खराब कर दिया था, परन्तु अब होने जा रहे चुनावों में इस समय तक राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) की चुनाव गतिविधियां बढ़ती दिखाई दे रही हैं। भाजपा ने अपनी सभी सहयोगी पार्टियों को उनकी बनती सीटें देकर सन्तुष्ट कर दिया है। इस तरह अब भाजपा और जनता दल (यू) दोनों पार्टियां 202 सीटों अभिप्राय 101 सीटों पर जनता दल (यू) और 101 सीटों पर भाजपा चुनाव लड़ेगी। राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 6 सीटें और हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा को भी 6 सीटें दी गई हैं। सीटों के इस विभाजन पर सभी सहयोगी पार्टियां सन्तुष्ट हैं। बिहार विधानसभा   की कुल 243 सीटें हैं। इसके दो चरणों में चुनाव होने जा रहे हैं। पहले चरण 6 नवम्बर से शुरू होगा और दूसरा चरण 11 नवम्बर को होगा। मतों की गिनती 14 नवम्बर को की जाएगी। दूसरी ओर महागठबंधन, जिसमें राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस, कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (एम.एल.) और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ लिबरेशन, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी और एक अन्य वामपंथी पार्टी शामिल हैं, के बीच सीटों का विभाजन स्पष्ट रूप में नहीं हो सका। इसके बाद इस गठबंधन को नुक्सान का सामना करना पड़ सकता है। वैसे राहुल गांधी इसके लिए अपना पूरा यत्न कर रहे हैं। इस बार बिहार की राजनीति में एक और पहलू भी उजागर हुआ है। प्रशांत किशोर ने प्रत्यक्ष रूप से अपनी जन सुराज पार्टी बना कर इन चुनावों में कूदने का फैसला किया है। प्रशांत किशोर ने एक वर्ष पहले अपनी पार्टी की घोषणा की थी।
चाहे उनकी पार्टी का संगठन के पक्ष से ज्यादा उभार दिखाई नहीं देता परन्तु उन्होंने नए पटल पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। विगत अवधि में वह कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों के चुनाव नीति निर्धारण का काम करते रहे हैं। कांग्रेस, ममता बैनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के लिए भी उन्होंने प्रभावी चुनाव नीतियां बनाई थीं, जिनका उन्हें भारी लाभ मिला था। उन्होंने इस बार अपनी पार्टी के लिए प्रचार करते हुए बिहार वासियों को जाति और धर्म से ऊपर उठ कर स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार आदि मुद्दों पर मतदान करने का आह्वान किया है। वह जहां तेजस्वी को परिवारवाद का चेहरा और नालायक कह रहे हैं, वहीं वह कांग्रेस को भी अतीत हो गई पार्टी कहते हैं।
नितीश कुमार विगत 20 वर्षों से, समय-समय पर भिन्न-भिन्न गठबंधनों में शामिल होकर मुख्यमंत्री बनते आ रहे हैं। 20 वर्ष बाद आज उनकी अवसरवादी राजनीति के कारण, उनका प्रभाव बहुत कम होता दिखाई दे रहा है, परन्तु केन्द्र में मोदी सरकार होने के कारण विगत अवधि में प्रधानमंत्री द्वारा बिहार के लिए जहां 62 हज़ार करोड़ रुपए की योजनाओं की घोषणा की गई है, वहीं 1 करोड़ 20 लाख रुपए महिलाओं के बैंक खातों में 10 हज़ार रुपए प्रति खाता भी डाले गए हैं। इसके साथ-साथ अन्य अनेक योजनाओं की भी घोषणा की गई है। तेजस्वी यादव ने इस चुनाव प्रचार के दौरान प्रत्येक घर को सरकारी नौकरी देने सहित अन्य अधिक वित्तीय लाभ देने वाली योजनाओं की घोषणाएं की हैं। दूसरी तरफ नितीश कुमार, लालू प्रसाद यादव के दस वर्षों के शासन को ‘जंगल राज’ कह रहे हैं और अपने शासन को ‘सुशासन का राज’ का नाम दे रहे हैं। नि:संदेह नितीश कुमार के समय में बिहार का प्रत्येक पक्ष से  बहुत विकास हुआ है परन्तु विपक्षी पार्टियां उनकी उम्र और स्वास्थ्य को लेकर ज़रूर सवाल उठा रही हैं। 
नि:संदेह अब यह चुनावी दंगल जहां पूरी तरह गर्म हो गया है, वहीं पार्टियों का आपसी टकराव और एक दूसरे पर आरोप लगाने वाले बयानों में भी तेज़ी आ रही है। बिहार के इन विधानसभा चुनावों को आगामी वर्ष पश्चिम बंगाल और केरल के विधानसभा चुनावों के साथ भी जोड़ कर देखा जा रहा है। ये चुनाव केन्द्र की प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार  की छवि के लिए भी विशेष महत्त्व रखते हैं।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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